राजीव लोचन साह
एक सितम्बर से नया मोटर वैहिकल एक्ट लागू होने के साथ ही देश भर में एक बहस छिड़ गई है। एक ओर इसे टैªैफिक के क्षेत्र में मौजूद घोर अराजकता का सम्पूर्ण इलाज माना जा रहा है। इस कानून के कारण देश को आर्थिक अस्थिरता की ओर धकेलती केन्द्र सरकार के सारे अपराध गौण हो गये हंै। दूसरी ओर इस कानून को आजादी के बाद का सबसे दमनकारी कानून बताया जा रहा है। प्रश्न यह है कि आम नागरिक में कानून का सम्मान करने की भावना पैदा किये बगैर क्या भयभीत करने की दृष्टि से जुर्माने का भार बढ़ा देने मात्र से अपराधों पर नियंत्रण लग सकता है या कि इसके लिये कानून लागू करने वाली संस्थाओं में ईमानदारी और इच्छाशक्ति ज्यादा जरूरी है ? क्या मौजूदा ट्रैफिक कानून अपर्याप्त था ? कुछ वर्ष पूर्व हल्द्वानी जैसे ‘ट्रैफिक के जंगल’ में सिटी पेट्रोल यूनिट के अवतरण से एकाएक अनुशासन पैदा हो गया था। लोग हैलमेट पहनने लगे थे, सीट बैल्ट बाँधने लगे थे, वाहनों की गति नियंत्रित हो गई थी। साल बीतते न बीतते अज्ञात कारणों से यह सीपीयू निष्क्रिय हो गई। नया कानून लागू होने के बाद अब वहाँ से एक बार फिर कल्पनातीत जुर्माने लगाये जाने की अतिशयोक्तिपूर्ण खबरें मिल रही हैं। जैसा कि हमारे प्रशासन का चरित्र है, बहुत अधिक वक्त नहीं लगेगा जब नया मोटर वैहिकल एक्ट भी या तो सजावट की वस्तु बन जायेगा या फिर भ्रष्टाचार का एक और जरिया। हम प्रायः देखते हैं कि पुलिस या तो ‘यातायात सप्ताह’ मनाते हुए एक सिरे से नियम तोड़ने वालों का चालान करती है या फिर नियम तोड़ने वालों की पूरी तरह अनदेखी करती है। यदि हर पुलिसकर्मी हर वक्त मुस्तैद रहता और लगातार नियम भंग करने वालों का चालान करता रहता तो ऐसे कानून की जरूरत ही नहीं पड़ती। सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान निषेध का कानून दस वर्ष से लागू है। जरा पता लगाइये कि अब तक कितने लोगों का चालान किया गया। क्या सड़कों पर बीड़ी-सिगरेट पीने वाले अब नहीं दिखाई देते ?
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।