नवीन जोशी
कुछ ही दिन पहले, चार दिसम्बर 2019 को अपना 90वां जन्म दिन मनाते हुए वे चहक रहे थे. हाथ में माइक लेकर अपने उन पुराने साथियों तथा परिचितों की विशेषताएं बता रहे थे जो खूबसूरत गुलदस्तों, उपहारों और दुआओं के साथ उन्हें झुककर सलाम कह रहे थे. हरी दूब के उस बागीचे में गुनगुनी धूप खिली थी और सफेद-घनी दाढ़ी में उनका चेहरा दमक रहा था. हम आश्वस्त थे कि वे अभी लम्बे समय तक हमारे बीच रहेंगे. पिछले बाईस साल से कष्टकारी अपंगता का बहादुरी से मुकाबला करते हुए उन्होंने अपना मन-मस्तिष्क सचेत और सक्रिय रखा था.
वह के के नय्यर, शायर, संस्कृतिकर्मी, पंजाबी एवं उर्दू साहित्य के विद्वान और किसी जमाने में रेडियो यानी आकाशवाणी की बेहतरीन आवाज अब हमारे बीच नहीं हैं. गुरुवार, 16 जनवरी की शाम चंद रोज की बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. उनके ही लफ़्जों में –‘उसने कुछ मुझसे कहा हो जैसे/ एक परिंदा-सा उड़ा हो जैसे.’ चुपचाप उड़ गए वे, पीछे अपने तमाम यादगार कामों की अनुगूंज छोड़ते हुए.
16-17 साल के थे जब देश का विभाजन हुआ और उन्हें लाहौर छोड़कर भारत आना पड़ा. वे सहमते हुए उस मार-काट के बारे में बताते थे और उस इनसानी भरोसे का जिक्र करते समय उनकी आंखों में चमक आ जाती थी जब ‘विधर्मी’ और ‘काफिर’ होकर भी पड़ोसी एक-दूसरे की जान बचा रहे थे. उनकी आंखों के सामने चलचित्र-सा चलता जो उनके शब्दों के जादू से हम भी देख पाते थे.
कालांतर में वे आकाशवाणी के मुलाजिम बने और दूरदर्शन के अपर महानिदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए. आकाशवाणी के लखनऊ और श्रीनगर समेत कई केंद्रों का निदेशक रहने के दौरान उनके योगदान को बहुत याद किया जाता है. उनके 90वें जन्म-दिन पर जमा हुए आकाशवाणी के पुराने साथियों ने वह सब खूब याद किया था.
नय्यर साहब रेडियो इण्टरव्यू लेने में उस्ताद थे. आकाशवाणी के लिए उन्होंने पाकिस्तान तक जाकर मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहां से लेकर बेनजीर भुट्टो जैसे कई कलाकारों-नेताओं-खिलाड़ियों के यादगार इण्टरव्यू किए. पृथ्वीराज कपूर, राजकुमार, अमिताभ बच्चन, कपिल देव, आदि के साथ उनकी बातचीत रेडियो पर खूब सुनी गई. आकाशवाणी के संग्रहालय में आज भी वे साक्षात्कार होने चाहिए, जिन्हें यदि अब तक डिजिटल रूप न दिया गया हो तो अवश्य किया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी साक्षात्कार लेने का वह कौशल सीख सके. कहना न होगा इन बातचीत में खुद नय्यर साहब की विद्वता बोलती थी जो सामने वाले से अपना पूरा व्यक्तित्त्व खुलवा लेती थी. भारत-पाक युद्ध के दौरान युद्ध-बंदियों के उनके इण्टरव्यू ‘मैं खरियत से हूं’ शीर्षक से सीमा के दोनों तरफ बराबर उत्सुकता और सराहना के साथ सुने गए थे.
उनके पास स्मृतियों का विरल खजाना था और उनको सुनना लगभग एक सदी से गुजरना होता था. नूरजहां ने जब बातचीत के बाद उनसे पूछ लिया था कि आप कहां के रहने वाले हैं. नूरजहां पाकिस्तान जाने के बाद कैसे भारत और बम्बई की फिल्मी दुनिया को याद करती थी, और उन्हें मूल लाहौर का जानकर कैसे उर्दू छोड़्कर धाराप्रवाह पंजाबी बोलने लगी थी, यह सब बताते हुए नय्यर साहब उन्हें युवा दिनों में लौट जाते थे.
सितम्बर 1998 में श्रीनगर (कश्मीर) रेडियो स्टेशन का स्वर्ण जयंती समारोह था. नय्यर साहब को उसके लिए विशेष रूप से बुलवाया गया था. मंच पर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज और फारूक अब्दुल्ला विराजमान थे. वहीं अपना मार्मिक वक्तव्य देते हुए नय्यर साहब को ब्रेन-स्ट्रोक हुआ. जान बच गई लेकिन उनका आधा शरीर निष्क्रिय हो गया. अपने गजब के जीवट से वे अन्त तक जीवंत और यथासम्भव सक्रिय बने रहे.
(सिटी तमाशा, नभाटा, 18 जनवरी, 2020)