प्रमोद साह
नशा भारत में एक ऐसी बढ़ती हुई प्रवृत्ति है जिसने आज आने वाली पीढ़ियों के लिए संकट खड़ा कर दिया है हमारे देश का युवा जो कि इस देश का मानव संसाधन है जिसकी शुद्धता पर ही देश का भविष्य निर्भर है आज बहुत जबरदस्त तरीके से नशे की गिरफ्त में है भारत में ,16-17 % ब्यक्ति यानि 20 करोड़ से अधिक की आबादी किसी न किसी रूप में नशे की गिरफ्त में है। हमारी कुल आबादी का 5.2% यानी 7 करोड लोग शराब के नशे की गिरफ्त में है .2.6 % तीन करोड़ लोग भांग और उसके उत्पाद चरस गांजा आदि के नशे में हैं 2.2% 2 करोड़ 60 लाख लोग अफीम और स्मैक के नशे में है एक करोड लोग इनहेलर का इस्तेमाल कर रहा है।
कुल मिलाकर भारतीय समाज की यह भयावह स्थिति है ,और यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब बात सिर्फ अफीम कोकीन स्मैक जैसे मनो प्रभावी नशे की होती है । यानी वह नशे जो न केवल आपको शारीरिक रूप से कमजोर करते हैं बल्कि वह आपके मन मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डालते हैं कि आप सामान्य जीवन नहीं जी पाते पूरी दुनिया में नशे का यह कारोबार बड़ी तेजी से फैला है और नशे का यह अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार 500 बिलियन डॉलर का है जो कि ,तेल और शस्त्रों के बाद तीसरे नम्बर का है .। नशे के परिणाम कितने घातक होते हैं इसे भारत के सबसे खुशहाल राज्य पंजाब की कहानी से समझा जा सकता है आज पंजाब को नशे का राज्य कहा जाता है यहां दो लाख 32 हजार ड्रग्स एडिक्ट की पहचान की गई है.
जिन युवाओं पर कभी देश को फक्र होता था आज वह राज्य नशे की गिरफ्त में है ।
पंजाब के बाद महाराष्ट्र , दिल्ली, मेघालय मणिपुर गोवा केरल जैसे राज्यों का नंबर आता है और उत्तराखंड नशे की गिरफ्त के मामले में लगभग बीच में है अभी यहां हालात बिगड़े नहीं है लेकिन जिस प्रकार पूरे भारतवर्ष में पिछले 10 वर्ष में 30% नशे के एडिक्शन में वृद्धि हुई है और आज नशे के कारण रोज 10 व्यक्ति आत्महत्या कर रहे हैं.
उत्तराखंड की तराई में जिस प्रकार ड्रग्स का नशा अपनी जड़े जमा चुका है उससे यहां की स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती है राज्य में बड़ते हुए नशे की प्रवृत्ति को देखते हुए एक्टिविस्ट श्वेता मासीवाल ने उच्च न्यायालय नैनीताल में एक पीआईएल दाखिल की जिसमें माननीय न्यायालय द्वारा बहुत महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सभी विद्यालयों में एन्टी ड्रग क्लब बनाने और प्रत्येक जनपद की पुलिस को एंटी ड्रग टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए जिसके बाद ड्रग्स के सवाल पर समाज में बहुत चेतना जागी है । जगह-जगह विद्यालयों में नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। बड़ी मात्रा में ड्रग्स की बरामदगी भी हुई है लेकिन अभी भी हालत खतरे से बाहर नहीं है इस बात को समझते हुए 29 सितंबर को प्रदेश के उच्च न्यायालय नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश रंगनाथन ने नशे के खिलाफ एक बहुआयामी अभियान छेड़ने के लिए “संकल्प :नशा मुक्तदेवभूमि ” देहरादून में लांच किया और इस पूरे कार्यक्रम की निगरानी स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी S L S A को दी है. जो जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से इस पूरे कार्यक्रम पर नजर रखेगा और ड्रग्स के खिलाफ निगरानी के लिए पंचायतों को भी एक जिम्मेदार एजेंसी के रूप में विकसित करना इसका उद्देश्य है ।अगले चरण में ड्रग्स एडिक्ट की पहचान उनका बेहतर पुनर्वास यह सब इस संकल्प अभियान का हिस्सा है जिसमें रिहबलेशन सेंटर की प्रत्येक तहसील स्तर पर स्थापना को लक्ष्य रखा गया है ।कुल मिलाकर के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी जा रही है वह तब तक अधूरी रहेगी जब तक आम आदमी समाज का हर व्यक्ति इस सामाजिक और राष्ट्रीय संकट के विरुद्ध जागरूक ना हो ।
कारण और पहचान :
1-नशे का सबसे बड़ा कारण वर्तमान में बढ़ रही प्रतियोगिता और उससे उत्पन्न तनाव है
2-अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों में दोनों पति-पत्नी का सर्विस में होना और बच्चों का अकेले रह जाना भी एक कारण है
3-सामाजिक रिश्तों का कमजोर होना
क्षज्यादातर 15 से 30 वर्ग के युवक, कुछ मामलों में युवतियां भी इसके शिकार होती है हालांकि 9 वर्ष का बच्चा भी नशा करते रिपोर्ट किए गए हैं ।
लक्षण :
1- खोया खोया और कमजोर होना
2- दैनिक दिनचर्या के प्रति लापरवाह होना स्कूल ना जाना
3- पुराने दोस्तों से दूरी बना लेना
4- नजरें चुरा कर बात करना ,
5- पूछे गए सवाल का गोलमोल भ्रम पैदा करने वाला जवाब देना
6- अचानक गुस्से में रहना और फिर उदास हो जाना
7- पूरे वाक्यों का न बोल पाना
उपचार :
नशा करते हुए बच्चा अगर शुरू में ही पकड़ में आ जाए तो काउंसलिंग और निगरानी से सुधार होता है
यदि पहचान करने में 1 माह से अधिक का समय लग जाता है तो ऐसे केसेज में बगैर दवा के उपचार करना संभव नहीं होता और ड्रक्स की जो दवा है वह कोई भी मनोचिकित्सक उपलब्ध कराता है ।
एडिक्ट होने पर :
ड्रग डिपेंडेंस सेंटर, एम्स नई दिल्ली राज नगर गाजियाबाद एम्स ऋषिकेश तथा सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी में उपचार संभव है यदि खुले में उपचार से लाभ ना हो तो किसी भी पुनर्वास केंद्र में दो अथवा तीन माह के लिए भर्ती करना एक अच्छा विकल्प है रिहेब सेंटर के विषय में कई गलत धारणाएं प्रचलित है जो कि सच नहीं है।
नशे के खिलाफ यह लड़ाई पीड़ित अकेले नहीं लड़ सकता पूरे परिवार को उसके साथ खड़े होना पड़ता है साथ ही प्रत्येक दशा में उसे भावनात्मक सहयोग करना होता है मरीज के ऊपर आरोप नहीं बल्कि उसे अभ्यास से जिम्मेदारी देनी चाहिए ड्रग एडिक्शन का उपचार एक दो तीन अथवा 6 माह का नहीं है। इसमें तीन-चार साल तक गहरी निगरानी की आवश्यकता होती है । दो अथवा तीन साल में जब मरीज पूरी तरह ठीक दिखता है लेकिन वह अपनी पुरानी क्षेत्र से जुड़ा रहता है पुरानी आदतों से जुड़ा रहता है तो उसके पुनः इस नशे में लौट आने की संभावनाएं बढ़ जाती है इसलिए स्थान परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण उपाय है ।
कानूनी प्रावधान :
एनडीपीएस एक्ट 1985 एक कठोर कानून है जिसका निर्माण भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय संधि के उपरांत किया है यह एक ऐसा कानून है । जिस का कड़ाई से पालन करना न्यायालय के लिए भी अधिकारी है लेकिन इसके जो वाद हैं। उन्हें पूरी तरह कानूनी प्रावधानों के तहत संदेह से परे साबित करना अभियोजन का कर्तव्य है इसमें धारा 17 व 18 एनडीपीएस के तहत तीन श्रेणी के दंड है।
1- उपभोग एवं अल्प मात्रा के लिए 3 वर्ष का कारावास व जुर्माना
2- मध्य मात्रा 3 से 10 वर्ष के मध्य कठोर कारावास व जुर्माना
3- व्यवसायिक मात्रा 10 से 20 वर्ष तक का कारावास व 5 लाख तक जुर्माना
यदि नाबालिग नशा करता हुआ पकड़ा जाता है तो धारा 64 ए में उसका यह अधिकार है कि वह न्यायालय से स्वयं को उपचार के लिए पुनर्वास हेतु आवेदन करें और न्यायालय जिसे स्वीकार करेगा
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 77 व78 इस बात के प्रावधान करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी किशोर का इस नशे के कारोबार को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करता है. उकसात है ,कैरियर बनाता है. तो उस व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कर उसे 7 वर्ष तक की सजा के प्रावधान है।
इस प्रकार एनडीपीएस एक्ट एक कठोर कानून है जिसमें बहुत सख्त सजाएं हैं उसका मकसद यही है कि भविष्य की मानव पीढ़ी को समाप्त करने वाला यह नशा जितनी जल्दी जहां बहुत तेजी से नशा फैल रहा है वही इस नशे का एक अच्छा पहलू यह है कि इसकी गिरफ्त में आए पीड़ित में से 70 फ़ीसदी इससे बाहर निकलने का प्रयास करते हैं । यदि परिवार और समाज का सहयोग मिले तो वह नशे के विरुद्ध जंग जीत सकता है कुल मिलाकर यह एक ऐसी लड़ाई जिसे पीड़ित स्वयं की इच्छा शक्ति से ही जीत सकता है
इसके लिए दवा ,ध्यान, व्यस्त दिनचर्या और आध्यात्म का सहारा महत्वपूर्ण उपचार हैं ।