देवेश जोशी
कर्म ही पूजा है, दीवारों की शोभा बढ़ाती ये सूक्ति कई जगह देखी पर जब ज़मीन पर देखी तो वो सब भूल गया। मुनाफा यूं तो हर तिज़ारती बंदे के जेहन में होता है पर कुछ के लिए कस्टमर वास्तव में भगवान का दर्जा रखता है। ऐसे लोग कस्टमर की हैसियत के हिसाब से क्वालिटी तय नहीं करते। उनके लिए क्वालिटी उनकी साख होती है जिसे वे किसी भी कीमत पर गिरने नहीं देते।
गोपेश्वर से स्थानान्तरित होने के बाद जिन चीजों के छूटने का सर्वाधिक मलाल रहा उनमें पहले नम्बर पर वहां का बेजोड़ सुहाना मौसम था और पांचवे नम्बर पर बलबीर की चाय। पहले पर शायद किसी को ऐतराज़ न हो पर पांचवें का महत्व वही जान सकता है जिसने उसका आनंद लिया हो। अब ऐसी भी क्या चाय पर बलबीर की चाय पीते हुए उसकी निर्धारित क़ीमत का भुगतान करते हुए अपराधबोध हमेशा रहा कि नहीं ये चाय इससे कई अधिक की हक़दार है।
कभी गोपेश्वर के मंदिर मार्ग की रौनक बलबीर के पकोड़ों से हुआ करती थी। जाने क्या-क्या कूटा करता था इमामदस्ते में कि ग्राहक बस उंगलियां ही चाटता रह जाता था। पर शहर की प्राइम लोकेशन में टिके रहने के लिए हुनर नहीं तिकड़म की जरूरत होती है जो उसके पास थी नहीं इसलिए उसने अपना टिन-टप्पड़ उठा के एक गुमनाम सी जगह(शिक्षा संकुल भवन परिसर) को अपना नया ठिकाना बना लिया।
हरा-भरा गांव छोड़कर शहर में आने की भी बलबीर बड़ी रोचक कहानी बताता है। कि साहब था अपना ही रिश्तेदार एक जिसने पढ़ाने के लिए साथ गोपेश्वर चलने का प्रस्ताव रखा तो लगा कि ऊपर वाले ने कोई फरिश्ता भेजा है और बम्बई में हीरो बनने का मेरा सपना इसी के हाथों पूरा होना है। जब तक बलबीर को रिश्तों की असलियत समझ आयी बहुत देर हो चुकी थी। न तो स्कूल ही उसके भाग्य में लिखा था और न गांव।
फिर अपने पैरों पर खड़े होना ही एकमात्र रास्ता था। और वो हुआ भी अपने सपने को भी जीवित रखते हुए। चाय-पकोड़ी बेच के जो चार पैसे बचते उन्हें ले के पहुंच जाता स्टूडियो। एक नए अंदाज़ में फोटो खिंचाने। कमाल का फोटोजेनिक चेहरा है बलबीर का और गज़ब की मिमिक्री कर लेता है। हीरो होने के लिए और चाहिए भी क्या होता है। बस एक अदद गॉडफादर और चुटकी भर भाग्य। पर जैसे लाखों को नहीं मिलता बलबीर को भी नहीं मिला और फिर वो अपने चायवाले के किरदार में ही रम गया।
उस दिन उसने दिन के तीन बजे ही दुकान बढ़ा ली थी। अगले दिन जिज्ञासा का समाधान भी उसी ने किया।…………….मूड खराब हो गया था साहब। सीधे एक कच्ची की बोतल ली और चढ़ा के सो गया।…………पर आखिर हुआ क्या था।…………….मज़ाक की भी हद होती है साहब………….। फलां आया दुकान में और कहने लगा कि नरेन्द्र सिंह नेगी का मार्केट डाउन हो गया है।
आजकल……….लोग अब नए गायकों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। मैंने कहा, इसमें मूड खराब होने वाली क्या बात है। कलाकार और खिलाड़ियों के करियर में उतार-चढ़ाव होता रहता है। वो बोला मैं कुछ नहीं जानता पर मैं ये नहीं सुनना चाहता। नरेन्द्र सिंह नेगी नम्बर वन हैं तो हैं……..बस।
बलबीर के पास नेगीजी के सारे ही एलबम्स का संग्रह है। रोटी और नेगीजी की कैसेट में से एक को ही खरीदने के पैसे होने पर भी वो हमेशा पहले उनका कैसेट खरीदता रहा। और उनकी कैसेटों के पोस्टर भी उसके घर और दुकान की शोभा बढ़ाते रहते हैं। अब लोगों ने उसकी नस पकड़ ली है। नरेन्द्र सिंह नेगी की चर्चा करके भी लोग चाय की क्वालिटी और बलबीर के मूड को रेगुलेट करते रहते हैं।
कई बार नरेन्द्र सिंह नेगी जी पर काफी दबाव भी रहता है कि उन्हें किसी घटना विशेष पर भी गीत लिखने चाहिए। पर मेरा मानना है कि एक अच्छा रचनाकार किसी राजनीतिक या सामाजिक समूह के दबाव में कभी नहीं लिख सकता। हां दबाव बलबीर जैसे फैन्स का हो तो बात और है। हर चायवाला खुशनसीब नहीं होता पर बलबीर नेगी जैसा चायवाला हरदिलअज़ीज जरूर होता है।
(आज नरेन्द्र सिंह नेगी जी का जन्मदिन है और तीन दिन पूर्व उनके अद्भुत फैन बलबीर नेगी का। नेगी बंधुओं को शुभकामनाएं। अपने-अपने क्षेत्र में दोनों सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करें। नरेंद्र सिंह नेगीजी के आरोग्य और दीर्घायु की कामना है।
नेगीजी की सर्वाधिक लोकप्रिय कैसेट्स में से एक वो भी है जिसमें नौछमी नारायण गीत है।गढ़वाल में नौछमी नारायण, कृष्ण भगवान को कहते हैं।
आज जन्माष्टमी का भी संयोग है,सभी को शुभकामनाएँ। )