विनीता यशस्वी
पूरे उत्तराखंड में भाद्रपद शुक्ल पक्ष में नन्दा देवी मेले का आयोजन बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ किया जाता है। नन्दा देवी हिमालय की एक चोटी होने के अलावा उत्तराखंड के लोगों की कुलदेवी भी हैं। वेदों के अनुसार देवी नंदा हिमालय की पुत्री हैं। उत्तराखंडवासी नंदा देवी को अपनी बहन और बेटी की तरह से मानते हैं और नंदा देवी की पूजा के लिये मेलों का आयोजन करते हैं।
गढ़वाल के पंवार राजाओं और कुमांऊ के चन्द राजाओं की कुलदेवी नंदा ही हैं इसलिये दोनों मंडलों में ही नन्दा को कुलदेवी का दर्जा हासिल है। मान्यताओं के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं और कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश की भी इष्टदेवी हैं और इन्हें राजराजेश्वरी कहकर भी सम्बोधित किया जाता है. कहीं—कहीं नन्दा को पार्वती की बहन माना जाता हैं तो कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है.
नन्दादेवी के मेलों का आयोजन नैनीताल, अल्मोड़ा, कोटमन्या, भवाली, बागेश्वर, रानीखेत, चम्पावत व पूरे गढ़वाल में आयोजित किये जाते हैं।
मान्यताओं के अनुसार चमोली के घाट ब्लॉक में स्थित कुरड़ गांव को नन्दा का मायका और थराली ब्लाक में स्थित देवराडा को उनकी ससुराल माना जाता है और कहा जाता है कि नंदादेवी भी छ: महीने अपने ससुराल औऱ छ: महीने मायके में रहती हैं.
नैतीताल में नन्दादेवी मेले की शुरूआत 1918 सन् में हुई और तब से आज तक यह मेला बगैर किसी बाधा के सम्पन्न होता रहा है। नैनीताल में मूर्तियां बनाने के लिये केले के पेड़ गौलापार हल्द्वानी से लाये जाते हैं और पुजारी ज्योलीकोट से आते हैं।
षष्ठी को पूरे विधि विधान के साथ नंदा—सुनंदा की मूर्ति बनाने के लिये केले के पड़ों का चयन की प्रक्रिया शुरू होती है। षष्ठी के दिन पुजारी गोधूली के समय चन्दन, अक्षत, लाल एवं सफेद वस्र लेकर केले के पेड़ के पास जाते हैं और पूजा के बाद अक्षत केले के पेड़ों पर फेंके जाते हैं. जो पेड़ पहले हिलता है उससे नन्दा की मूर्ति बनती है। जो पेड़ दूसरी नम्बर पर हिलता है उससे सुनन्दा तथा तीसरे नम्बर पर हिलने वाले पेड़ से देवी के हाथ—पैर बनाये जाते हैं.
केले के वृक्षों को लाने के बाद नन्दा—सुनन्दा की प्रतिमाओं का निर्माण होता है. मूर्ति निर्माण में स्थानीय शिल्पी भाग लेते हैं। मूर्तियों का आकार नन्दादेवी पर्वत जैसा ही बनाया जाता है। मूर्ति बन जाने के बाद अष्टमी के दिन इन प्रतिमाओं को मंदिर में लाया जाता है और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। जिसके बाद मूर्तियां सार्वजनिक कर दी जाती हैं और श्रद्धालु दर्शन करके पूजा अर्चना करते हैं। इसी दिन से मुख्य मेला शुरू हो जाता है।
इस बार नन्दा अष्टमी 6 सितम्बर को है और आज से ही मुख्य मेले की भी शुरूआत हो जायेगी। 8 तारिख को मूर्तियों को नगर भ्रमण कराने के बाद रात में नैनी झील में विसर्जित कर दिया जायेगा।
घुमक्कड़ी और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी नैनीताल समाचार की वैब पत्रिका ‘www.nainitalsamachar.org’ की वैब सम्पादक हैं।