रिया चंद
कक्षा 11, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल
मैदान खाली न सही, लेकिन पूरा भरा भी नहीं है। चहारदीवारी की एक दीवार के पास फिसलपट्टी लगी है। एक बच्चा बुलबुले फुला रहा है। दो झूले भी हैं। एक झूले में बच्चा झूल रहा है। दूसरा झूला अपने किसी साथी के आने के इंतज़ार में है।
बुलबुले फुलाता बच्चा फूले नहीं समा पा रहा है। उसके पास वो है जो फ़िलहाल आस पास के किसी बच्चे के पास नहीं। बुलबुले फुलाने वाला ‘यंत्र’। ये यंत्र उसका ज़ाती है। फिसलपट्टी के तख़्त पर बैठा यह बच्चा खुदको सबसे ताकतवर समझ रहा है। मसरूफ़ है अपनी दुनिया में। एक हाथ में बुलबुले फुलाने वाले डंडे को थामे उसे डिब्बे में रखे लिक्विड में डुबा रहा है। झट से डंडा निकालकर इस तरह अपने होंठों को घुमाकर उसमें हवा भर रहा है मानो ऐलान कर रहा हो कि मेरे से खुशनसीब आज कोई नहीं।
अरे ये क्या! एक बच्चा अचानक फिसलपट्टी में चढ़ने की कोशिश करता दिख रहा है। उफ्फ! नन्हें से कदम सीढी के बजाय वहाँ से चढ़ना चाह रहे हैं जहाँ से अक्सर बच्चे फिसलकर नीचे आते हैं। उसकी हर कोशिश नाकामयाब हो रही है। वह चिल्ला रहा है – “मुझे भी फुलाने दो”। “बस एक ही बार दे दो ना।” ऊपर बैठा बच्चा और खिलखिलाहट से भर गया है। “मैं फुला रहा हूँ, तुम इन बुलबुलों को फोड़ो। बाद में दूँगा”
बच्चे के लिए ये इतना भी बुरा न था। ज्यों ज्यों वह बुलबुले फुला रहा है दूसरा बच्चा भाग रहा है उन बुलबुलों को पकड़ने। इस बीच, दौड़ में दो से चार कदम हो गए। दोनों बच्चे बुलबुले पकड़ने की चाह में मैदान का अर्ज़-ओ-तूल नापने लगे हैं। पर अफ़सोस! बुलबुले उनके हाथों में आने से पहले ही फूट जा रहे हैं। ऊपर बैठा बच्चा बड़े ही मज़े से हर ओर बुलबुले उड़ाने लगा है। दोनों बच्चे हर उस ओर दौड़ रहे हैं जहाँ बुलबुले उड़ रहे हैं।
बच्चों के क़दमों की रफ़्तार और दिशा दोनों ही ऊपर बैठा वह बच्चा तय कर रहा है। चेहरों पर मुस्कान तो है, लेकिन एक भी बुलबुला न पकड़ पाने का दुख भी। उन बुलबुलों में भी ऊपर बैठे बच्चे के आश्वासन की तरह केवल हवा भरी है। हाथ में आते ही अनंत आसमां में विलीन।
यही हाल हमारे गाँव, कस्बे, शहर, राज्य, देश और दुनिया का है।
~ रिया (11वीं)
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल
(पोलिंग बूथ नगला, नानकमत्ता से।)