विजय प्रताप
आज 7-30 बजे प्रातः मैत्री आश्रम लखनऊ के साथी डा सत्यव्रत सिंह ने दुखद् समचार दिया कि राजीव जी हम लोगों के बीच नहीं रहे। तभी से उनकी से जुड़ी यादों के चित्रों का कोलाज बार-2 आखों के सामने तैर रहा है।
कल 4 अक्तूबर आधी रात को आलोक सिंह से बात से ही अंदाज हो गया था कि अब –राजीव गाँधी – जे पी प्रेरित धारा और खास तौर से छात्र युवा संघर्ष- वाहिनी के मजबूत स्तम्भ थे। वाहिनी नायक मंडली में जो सब गुण हैं, उन सभी से तो वह सम्पृक्त थे ही, किन्तु वह कुछ विशेष गुणों के कारण हम सबसे कुछ अलंग दीखते थे।
आमतौर से हम लोग अपने हमउम्र साथियों को हल्के से लेते हैं। राजीव अपनी जमात के हीरे-मोतियों की पहचान उनके दुःख दर्द, तकलीफ, जरूरतों और अभावों को समझ कर चुपचाप उनकी मदद को तत्पर रहते थे। ज़मीनी स्तर पर अपने को खपाने वाले साथिर्यो से सदा-सम्पर्क संवाद और सहकार / सहयोग के लिए एकतरफा पहल करते रहते थे। यह सब सहज जिम्मेवारी का हिस्सा मान बिना किसी श्रेष्ठता के भाव के !
उनके बारे श्री रमेश दीक्षित-सुश्री वंदना मिश्र ने ठीक ही लिखा है, “संवेदनशील, सामजिक सरकारों से लबरेज़ शालीन, मित्र वत्सल, विनम्र और बेहतरीन इंसान — सामाजिक परिवर्तन के लिए पूरी तरह समर्पित आंदोलनकारी “व्यक्तिगत् स्तर पर विनम्रता के साथ-साथ वाहिनी परम्परा के उज्जवल पक्ष के बारे में उनके मन में बहुत गौरव का भाव था। वाहिनी के सामूहिक गौरव एवं उसकी परम्परा के बारे में बहुत सजग थे।
हॉल ही में उनके एक मित्र समूह द्वारा वाहिनी के पूर्व संयोजक श्री अमर हबीब सम्मानपूर्वक न बुलाये जाने के प्रश्न पर लखनऊ की पूरी टीम के टिकट रद्द कर दिये। उनका मानना था वाहिनी गौरवशाली परम्परा को पुनः सशक्त बनाने की ज़रुरत है, न कि उसे विस्मृत करने की।
अपनी परम्परा में इस प्रकार के स्वाभिमान के भाव के बावजूद वह अन्य धाराओं से संवाद एवं जहां संभव हो वहाँ सहकार के लिए सदा तत्पर रहते थे। साझे लोकपक्षी एजेंडे के आधार पर उन्होंने ऐसे राजनैतिक सम्बन्धों की जीवन भर निभाया।
युवाओं को राजनैतिक प्रशिक्षण उनके काम का मुख्य हिस्सा रहा है। आजकल वह अपनी टीम के साथ नवभारत संवाद केन्द्र (लखनऊ) के माध्यम से एक साल में बेरोजगारी और गरीबी मुल भारत” अभियान के सृजन में जुटे थे। जीवन भर वह गांधी-जे.पी. के विचारों पर आधारित एक व्यापक और मजबूत राजनैतिक औज़ार गढ़ने के लिए रास्ते खोजते रहे। 1980 से 1989 के आसपास तक सम्पूर्ण क्रांति मंच के माध्यम से, उसके बाद युवा संवाद की प्रक्रिया के माध्यम से, फिर लोक राजनीति मंच – इन सभी पहलों में तलाश एक ही थी, राष्ट्र निर्माण के एक मजबूत और व्यापक राजनैतिक औज़ार बनाना। इन सभी पहलों केन्द्र में होते हुए इनका मूल लक्ष्य से इधर-उधर भटकना उन्हें बर्दाश्त न था वह आमतौर से बिना वाद- विवाद के अपने को अलग कर लेते थे। बेरोज़गारी और गरीबी मुक्ति अभियान में वह सम्पूर्ण समाज की भागीदारी सुनिश्चत करना चाहते थे, अपने मूल लक्ष्यों से समझौता किये बगैर ।
राजीव अपनी उम्र से बड़े साथियों प्रति एक सरंक्षक का भाव रखते थे, जैसे परिवार का कोई बड़ा बुजुर्ग ध्यान रखता / रखती है। अपनी माता जी के अंतिम दिनों में जिस एकनिष्ठा से देखभाल की, वह अपने आप में एक अनुकरणीय उदाहरण है। चंद महीने पहिले माता जी के देहावसान के बाद वह पूरी उर्जा के साथ गरीबी और बेरोज़गारी से मुक्ति के अभियान में जुट गये थे। एक मज़बूत लोकतांत्रिक समाजवादी दल के निर्माण के अंतिम लक्ष्य को पाने लिए के वैचारिक रूप से प्रशिक्षित युवाओं की एक बड़ी फौज की ज़रूरत को वह आवश्यक शर्त मानते थे, एवं अपनी समझ से वह इस काम में पूरी तरह जुट गये थे। वैचारिक खूंटे के बतौर वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी जैसा मंच बनाने की जरूरत को रेखांकित किया करते थे। उनके न रहने पर उनके समग्र व्यक्तित्व के स्मरण से हमें भविष्य के दिशा संकेत मिलते रहेंगे।