जगमोहन रौतेला
उत्तराखण्ड आन्दोलन के आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का मुद्दा एक बार फिर गर्मी गया है। इस बार यह मुद्दा आंदोलनकारियों को किस तरह से आरक्षण दिया जाए? इस बारे में विधानसभा की प्रवर समिति के कार्यकाल को एक बार फिर बढ़ाए जाने के बाद से चर्चा में है। आंदोलनकारी प्रवर समिति के कार्यकाल को बढ़ाए जाने पर नाराज हैं और उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है।
राज्य विधानसभा की अध्यक्ष ऋतु खण्डूरी भूषण ने संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की अध्यक्षता में गठित प्रवर समिति का कार्यकाल गत 23 अक्टूबर 2023 को 2 महीने के लिए आगामी 25 दिसम्बर तक बढ़ा दिया है। प्रवर समिति का कार्यकाल 25 अक्टूबर को खत्म हो रहा था। यह दूसरी बार है जब प्रवर समिति का कार्यकाल बढ़ाया गया है। इससे पहले गत 25 सितम्बर 2023 को एक महीने का कार्यकाल बढ़ाया गया था। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने कहा कि मुझे प्रवर समिति का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ था। जिसके बाद मैंने दो महीने के लिए कार्यकाल बढ़ाने की अनुमति दी है। प्रवर समिति के अध्यक्ष संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कार्यकाल बढ़वाए जाने के सवाल पर कहा कि प्रवर समिति की अब तक हुई बैठकों में कई महत्वपूर्ण सुझावों पर चर्चा हो चुकी है। आगे होने वाली बैठकों में इस बारे में निर्णय होगा, क्योंकि प्रवर समिति ने अभी अपनी अंतिम रिपोर्ट तैयार नहीं की है, इसी कारण उसका कार्यकाल बढ़ाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया गया था।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड की अन्तरिम सरकार के मुख्यमन्त्री नित्यानन्द स्वामी ने राज्य आन्दोलन के शहीदों के आश्रितों को सीधे नौकरी देने का आदेश दिया था। इसके बाद मार्च 2002 में राज्य की पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी। तिवारी सरकार ने 11 अगस्त 2004 को घायल और जेल गए आन्दोलनकारियों को सीधे सरकारी सेवा में लेने और चिन्हित राज्य आन्दोलनकारियों को 10% क्षैतिज आरक्षण देने का आदेश जारी किया। उसके बाद भाजपा की निशंक सरकार चिन्हित आन्दोलनकारियों और उनके आश्रितों को शासनादेश के माध्यम से क्षैतिज आरक्षण के दायरे में लाई।
इस आदेश के खिलाफ 9 मई 2010 को करुणेश जोशी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने घायलों और जेल गए आंदोलनकारियों को सीधे नौकरी देने वाला शासनादेश निरस्त कर दिया। उसके बाद सरकार ने एक नियमावली बनाई और उसके माध्यम से आन्दोलनकारियों को आरक्षण देना जारी रखा। करुणेश जोशी एक बार फिर 20 मई 2010 को बनाई गई सेवा नियमावली के खिलाफ उच्च न्यायालय चले गए। उन्होंने पुनर्विचार याचिका दाखिल की। इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद उच्च न्यायालय ने 26 अगस्त 2013 को आंदोलन कार्यों को दिए जाने वाले आरक्षण पर रोक लगा दी। इसके बाद याचिका पर अंतिम सुनवाई करते हुए 7 मार्च 2018 को उच्च न्यायालय ने क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश और नियमावली को निरस्त कर दिया।
साथ ही उच्च न्यायालय ने इस नियमावली के तहत नौकरी पाए आन्दोलनकारियों को भी हटाने को कहा। इसके बाद से आरक्षण के आधार पर नौकरी पाने वाले आन्दोलनकारियों की नौकरी पर बर्खास्तगी की तलवार लटक गई। आरक्षण को वैधानिक रूप देने के लिए आन्दोलनकारी लगातार प्रदेश सरकार पर दबाव बनाते रहे। इस बीच प्रदेश सरकार ने दिसम्बर 2018 में विधानसभा से इस बारे में एक विधेयक पारित कराकर राजभवन भेजा, लेकिन राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी नहीं दी और न ही उस विधेयक को वापस लौटाया। तब से यह विधेयक राज भवन में लम्बित पड़ा था। गत सितम्बर 2022 में मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर इस विधेयक को राजभवन से आंशिक संशोधन के लिए वापस मंगा लिया गया। उसके बाद मन्त्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक सब कमेटी गठित की गई। सब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमन्त्री को सौंप दी। जिसके आधार पर ही गत मार्च 2023 में गैरसैंण में हुई मण्त्रिमन्डल की बैठक में सब कमेटी की सिफारिशों को लागू करने एवं नए सिरे से संशोधित विधेयक लाए जाने को मंजूरी दी गई।
आंदोलनकारियों के लगातार दबाव बनाने के कारण गत 1 सितम्बर 2023 को प्रदेश मन्त्रिमण्डल ने लम्बित चिन्हित राज्य आन्दोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी सेवा में सीधी भर्ती के पदों पर 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने वाले विधेयक को मंजूरी दी। मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि विधानसभा के मानसून सत्र में इस विधेयक को पारित कर लिया जाएगा। प्रदेश सरकार ने अपनी घोषणा के अनुरूप गत 6 सितम्बर को विधानसभा सत्र के दौरान सदन में विधेयक को रखा।
विधेयक में प्रावधान है कि आन्दोलन के दौरान घायल हुए और 7 दिन अथवा उससे अधिक अविधि तक जेल में रहे आंदोलनकारियों को लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर समूह “ग” व “घ” के पदों में की सीधी भर्ती में आयु सीमा और चयन प्रक्रिया में 1 साल की छूट दी जाएगी। इसके अलावा उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार नियुक्तियां देने का प्रावधान है। अगर ऐसे चिन्हित आंदोलनकारी की आयु 50 वर्ष से अधिक हो या शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम होने के कारण खुद नौकरी करने के लिए अनिच्छुक होंगे तो उनके किसी एक आश्रित को उत्तराखंड की राज्यधीन सेवाओं में नौकरी के लिए 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जाएगा।
विधेयक के अनुसार, सरकार को अधिसूचना के माध्यम से अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा। अधिनियम के तहत बनाए जाने वाले प्रत्येक नियम को राज्य विधान मंडल के समक्ष रखा जाएगा। विधेयक के अनुसार, आरक्षण गत 11 अगस्त 2004 से लागू समझा जाएगा। विधेयक में कुछ वैधानिक कर्मियों को देखते हुए 8 सितम्बर को प्रवर समिति को सौंप दिया गया। समिति को 15 दिन के भीतर विधेयक की खामियां दूर कर विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे जाने पर सहमति बनी।
संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की अध्यक्षता में बनी प्रवर समिति में विधायक मुन्ना सिंह चौहान, विनोद चमोली, उमेश शर्मा “काऊ”, मोहम्मद शहजाद, मनोज तिवारी और भुवन कापड़ी को सदस्य बनाया गया है। प्रवर समिति की पहली बैठक गत 18 सितम्बर को हुई। जिसमें राज्य के अधीन लोक सेवा आयोग व अन्य आयोगों की भार्तियों को भी विधेयक में शामिल करने का निर्देश दिया गया। समिति ने माना कि यदि विधेयक में यह संशोधन नहीं होता है तो आंदोलनकारी आरक्षण कोटे में पहले से कार्यरत 1,700 लोगों के नौकरी पर संकट खड़ा हो सकता है। समिति ने आश्रित श्रेणी में तलाकशुदा व परित्यक्ता पुत्री को भी शामिल करने को कहा है।
गति 11 अक्टूबर को प्रवर समिति की दूसरी बैठक हुई। जिसमें विधेयक के संशोधित ड्राफ्ट पर न्याय विभाग से परामर्श से लेने का फैसला किया गया। जब 25 अक्टूबर को प्रवर समिति का कार्यकाल खत्म हो रहा था तो उससे पहले समिति विधायक का अंतिम ड्राफ्ट तैयार नहीं कर पाई। इसके बाद प्रवर समिति का कार्यकाल 2 महीने बढ़ाने का फैसला लिया गया। जिसे विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने मंजूरी दे दी और अब प्रवर समिति का कार्यकाल आगामी 25 दिसम्बर 2023 तक होगा।
प्रवर समिति का कार्यकाल बढ़ाए जाने पर चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति के केंद्रीय संरक्षक धीरेंद्र प्रताप ने कहा कि सरकार इस मामले में राजनीति कर रही है और प्रवर समिति के माध्यम से आरक्षण विधेयक को जबरदस्ती लटकाया जा रहा है। राज्य आन्दोलनकारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी ने भी प्रवर समिति का कार्यकाल बढ़ाए जाने के निर्णय की निंदा की है। उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले में आन्दोलनकारियों के साथ छल कर रही है।
प्रवर समिति की बैठक शीघ्र करने की मांग को लेकर गत 25 अक्टूबर को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारी संसदीय कार्य मन्त्री प्रेमचंद अग्रवाल से मिले और उनसे प्रवर समिति की बैठक तुरन्त बुलाने की मांग की, ताकि विधेयक जल्दी से जल्दी कानून का रूप ले सके। आन्दोलनकारियों की मांग के बाद संसदीय कार्य मन्त्री प्रेमचंद अग्रवाल ने घोषणा की कि आगामी 31 अक्टूबर 2023 को प्रवर समिति की बैठक होगी। जिसमें विधेयक के और दूसरे प्रावधानों पर चर्चा होगी। इसके बाद से राज्य आन्दोलनकारियों की निगाहें अब 31 अक्टूबर को होने वाली प्रवर समिति की बैठक पर लगी हुई हैं। देखना है उसे दिन प्रवर समिति क्या निर्णय करती है?