बृजमोहन जोशी
होली, ऋत परिवर्तन को अभिव्यक्त करने का उत्सव है। कुमाऊँ अंचल में पौष मास को, विशेष रूप से इसके प्रथम रविवार को बहुत ही पवि़त्र माना जाता हैं। लोक देवताओं की पूजा ‘बैसी’ के लिये भी इस मास को बहुत ही पवित्र माना जाता है। अतः पूस मास के प्रथम रविवार से बैठ होली का श्रीगणेश, देवस्थलों और घरों में प्रारम्भ हो जाता हैं।
इस अंचल के आंचलिक विभूतियों ने बैठ होली गायन का शुभारम्भ करने के लिये करने के लिये पूस का प्रथम रविवार ही क्यों रखा? कोई अन्य मास या दिवस क्यों नहीं चुना? प्रकाश का देवता सूर्य, उर्जा का स्रोत है, इसलिये सूर्य को भारत की आचार्य परम्परा का प्रतीक भी माना गया है। इसके अधिक देर तक चमकने से ही प्राणी जगत को कार्यशक्ति की उर्जा प्राप्त होती है। हमारी संस्कृति में सूर्य का विशेष महत्व है। सूर्य से ही वार प्रवेश माना जाता है। ‘रवि‘ सूर्य का ही पर्यायवाची है अतः रविवार का अर्थ सूर्यवार भी है। सभी ग्रहों के स्वामी सूर्य के लिये काल माधव-ब्रहम् स्फुट-सिद्धांतविदां भरण, प्र्र्र्रभृति, ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में स्पष्ट कहा गया है कि- ‘‘विश्व की उत्पत्ति सूर्य से ही हुई है।” अतः वार प्रवेश भी सूर्योदय से ही होता है।
पूस मास के रविवार के व्रत अत्यन्त कठिन होते हैं। कहा जाता है कि राम-रावण के समय महर्षि अगस्तय ने रामचन्द्र जी से रविवार का व्रत करने एवं सूर्य भगवान का ध्यान करने का उपदेश दिया था। अर्थात संयम पूर्वक किये गये इस व्रत से शत्रुओं का समूल नाश होता है प्राकृतिक चिकित्सा में भी सूर्य की किरणों का अत्यन्त महत्व है। कई-कई रोग सूर्य की किरणों के सेवन से नष्ट होते हैं।
जिनकी ईश्वर में आस्था है वे सभी लोग सूर्य को शक्ति का एक स्वरूप मानकर उसकी आराधना पूजा व्रत करते हैं। मेरा मानना है कि यही सोचकर इस अंचल के आंचलिक विभूतियों ने क्रमबद्ध रूप में बसन्त, शिवरात्रि और फाल्गुन मास से होली के दम्पत्ति टीके की बैठक तक प्रायः भक्ति रस, ऋंगार रस और धूम की होलियों का वर्गीकरण किया। यही कुमाउंनी होली की सबसे बड़ी विशेषता है। अतः पूस की होलियों में केवल भक्ति रस का गायन किया जाता है और भक्ति रस में भीगी यह होलियां बसन्त पंचमी तक गायी जाती हैं।
भक्ति संगीत से जुड़ी कुछ होलियाँ
खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर
दर्शन दीजो माई अम्बे-झुलती रहो जी।
तील को तेल कपास की बाती
जगमग जोत जले दिन राती-झुलती रहो जी।
खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर
दर्शन दीजो माई अम्बे-झुलती रहो जी।
खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर
दर्शन दीजो माई अम्बे-झुलती रहो जी।
जय जय महादेव, सुनो विनय हमारी
जय जय महादेव
भव बाधा सब पल हरत हो
माया नित्य नवीन,
आदि तुमसे अंत तुम्ही से,
त्रिपुर तुमरे अधीन सुनो विनय हमारी
जय माता महाकाली, जय जय खप्पर वाली,
जय माता महाकाली
षिव अर्धागिनी हे महामाया,
तूने रूप धरा था नवीन
महिषासुर का शमन किया था,
कष्ट हरा था भारी, जय मां खप्पर वाली।
One Comment
कृष्णानंद सिन्हा
पूस मास के प्रथम अथवा अन्तिम रविवार ; किस रविवार को ? इस वर्ष और गत वर्ष किस तारीख से आरंभ हुई थी बैठकी होली ?