प्रभात डबराल
अरे भाई, किसे बेवक़ूफ़ बना रहे हो कि किसान अब जहां चाहे जाकर अपना माल बेच सकता है… कितने किसान हैं जो अपना उत्पाद लेकर चार पाँच सौ किलोमीटर दूर उस बाज़ार में ले जाएँगे जहां ज़्यादा दाम मिल रहा है.
वो तो अपने नज़दीक की मंडी में बेचेंगे. सरकार नहीं लेगी तो औने पौने में किसी आढ़ती को बेच देंगे…. मुझे याद है कि २००३ में जब नया मंडी क़ानून बना और किसानों को जिस मंडी/ बाज़ार में चाहे अपना उत्पाद बेचने की छूट मिली तो हमने सहारा समय उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड चैनल में एक नया काम किया. हमने अपने चैनल में उत्तर प्रदेश की सभी मंडियों में चल रहे ताज़ा भाव देने शुरू किए. आइडिया ये था कि किसान हमारे चैनल में भाव देखें और उस मंडी में जाकर बेचें जहां उस दिन उस समय अच्छा दाम मिल रहा हो. ये दाम एक पट्टी में लगातार चलते रहते थे.
कुछ समय बाद में हमने अपने संवाददाताओं से फ़ीड्बैक लिया तो पता चला कि किसान मंडियों के भाव तो देखते हैं पर जाते उसी मंडी में हैं जो नज़दीक होती है और जहां वो सबको जानते हैं…बात सही भी है. दूर ले जाने में खर्चा लगता है. वहाँ कोई जानता पहचानता भी नहीं. ऊँच नीच हुई तो कौन साथ देगा. सौ में कोई एकाध किसान होगा जो अपनी मंडी के अलावा कहीं और जाकर अपना उत्पाद बेचेने की सोचेगा. एक तो उसे फ़ौरन पैसा चाहिए, भरोसे वाला ख़रीददार चाहिए. और फिर वो किसान है, व्यापारी नहीं. उसका मिज़ाज अलग है.
जो हो नहीं सकता, जो होगा नहीं, जो किसी ने माँगा नहीं वो देने की बात कर रहे हो. अहसान किसान पर जता रहे हो और फ़ायदा दिला रहे हो अड़ानी को.
किसान को क्या चाहिए…?
सिर्फ़ एक चीज़….उन्हें उनकी नज़दीक वाली मंडी में सही दाम यानी MSP मिल जाए और टाइम पर पैसा मिल जाए…इतना तो हो नहीं रहा और लगे हो ईरान तूरान की हांकने….साफ़ साफ़ बोलो ना कि किसानों की परेशानी का फ़ायदा उठाना है….आपदा में अवसर ढूँढने की आदत पड़ गई है….