राजीव लोचन साह
पिछले दिनों बने तीन नये कृषि कानूनों के विरोध में हो रहे किसान आन्दोलन के तहत राजधानी दिल्ली के घेराव को लगभग एक महीना होने को आ रहा है। कड़कड़ाती ठंड में लगभग दो दर्जन किसान अपनी जान भी गँवा चुके हैं, मगर किसानों का जोश खत्म नहीं हो रहा है। इस आन्दोलन के समानान्तर केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित एक अन्य किसान आन्दोलन भी शुरू हो गया है, जिसमें सरकार की तर्ज पर इन कानूनों को किसानों के लिये लाभदायक बताया जा रहा है। यह पहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा किसी जनान्दोलन को तोड़ने के लिये इस तरह के प्रयास हो रहे हों।
हरियाणा में भाजपा ने सतलज के पानी का विवाद उठा कर पंजाब और हरियाणा के बीच वैमनस्य पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी है। उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से असंतुष्ट किसानों को आन्दोलन से विरत रखने के लिये वहाँ अनेक तरीके अपनाये गये हैं, जिनका खुलासा छिप-छिपा कर दिल्ली पहुँचे किसानों ने किया है। बाहरी दिल्ली के सिंघु और टिकरी बाॅर्डर पर, जहाँ किसानों का सबसे बड़ा जमावड़ा है, जैमर लगा दिये हैं, ताकि वहाँ से बाहर सम्पर्क करना कठिन हो जाये।
सोशल साईट फेसबुक पर दबाव डाला गया है कि वह आन्दोलन को लेकर किये जा रहे किसी ‘फेसबुक लाईव’ कार्यक्रम को ‘कम्युनिटी गाईडलाइन्स’ का बहाना बना कर रोक दे। हालाँकि सोशल मीडिया पर और छोटे-छोटे टीवी चैनल्स पर इस आन्दोलन को लेकर काफी सूचनायें हैं, मगर मुख्यधारा के ‘गोदी मीडिया’ को लेकर आन्दोलनकारी किसानों में इतनी नाराजी है कि उन्होंने न सिर्फ अनेक पत्रकारों को अपने बीच से खदेड़ दिया है, बल्कि अपना एक स्वयं का अखबार ‘ट्राॅली टाइम्स’ भी शुरू कर दिया है। इस सारे घटनाक्रम के बीच जो बात सबसे ज्यादा अखर रही है, वह यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों से बातचीत करने क्यों नहीं आ रहे हैं और क्यों नरेन्द्र तोमर जैसे अपने कृषि मंत्री, जिनकी हैसियत एक प्यादे से ज्यादा नहीं है, को बातचीत में लगा कर मामले को उलझा रहे हैं।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।