देवेश जोशी
गाँधी के जन्म के 150वें साल में अगर एक प्रख्यात इतिहासकार लेखक के व्याख्यान का विषय ही हो कि क्यों गाँधी अभी भी महत्व रखते हैं, तो समकाल की नब्ज़ को परखना आसान हो जाता है।
अवसर था देहरादून में द्वितीय कमल जोशी स्मारक व्याख्यान और वक्ता थे प्रख्यात इतिहासकार लेखक, चिंतक रामचंद्र गुहा, इंडिया आफ्टर गाँधी जैसी बहुचर्चित दर्ज़न भर कृतियों के सृजक। गाँधी के जरिए आधुनिक भारत की पड़ताल करती उनकी पुस्तकें जितनी लोकप्रिय हैं उससे भी बढ़ कर अनुभव उन्हें रू-ब-रू सुनना है। क्रिकेट सम्बंधी पुस्तक लेखन के लिए भी प्रख्यात रामचंद्र गुहा बोलते भी तूफानी गति से हैं। देहरादून एफआरआई परिसर में पले-बढ़े और दून व कैम्ब्रियन हाॅल स्कूल में पढ़े गुहा विश्व के कई नामी विश्वविद्यालयों-संस्थानों में अध्यापन-व्याख्यान का अनुभव भी रखते हैं।
रामचंद्र गुहा ने अपने व्याख्यान को दस बिंदुओं में खूबसूरती से समेटा और अपनी मौलिक शैली में दस ऐसे कारणों की अनुपम स्थापना दी जो गाँधी की प्रासंगिकता और योगदान को बिना भावनाओं में बहे समझने में मददगार हो और बिना किसी रंग के चश्मे से दिखायी देता हो।
द्वितीय कमल जोशी व्याख्यान सत्र का सफल-रोचक संचालन प्रो शेखर पाठक के द्वारा किया गया जबकि अध्यक्षता दून लाइब्रेरी के निदेशक डाॅ बी के जोशी द्वारा की गयी। डाॅ जोशी ने ये रोचक तथ्य भी श्रोताओं को बताया कि उन्होंने 1948 में गाँधीजी को मसूरी में तब देखा था जब वे 6 साल के थे।
देश-प्रदेश के विभिन्न भागों से आए कमल जोशी के मित्र प्रशंसकों ने अत्यंत आत्मीय और बौद्धिक तरीके से अपने लापरवाह-आवारा-घुम्मकड़ फोटो-जर्नलिस्ट साथी को याद किया। गीता गैरोला जी की मेहनत से, कमल जोशी के बेतरतीब-बिखरे लेखन का पुस्तकाकार उपहार (चल मेरे पिट्ठू दुनिया देखें) भी साथियों को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के अगले सत्र में कमल जोशी पुरस्कार चर्चित फोटो-जर्नलिस्ट पार्थ जोशी को दिया गया जिनका चयन प्रो पुष्पेश पंत की अध्यक्षता वाली समिति ने किया। इस सत्र के प्रमुख वक्ता प्रख्यात सिनेमेटोग्रैफर ए.के. बीर थे और संचालक प्रो पुष्पेश पंत। कार्यक्रम का आयोजन हम, पहाड़ संस्थाओं और कमल जोशी के परिजनों ने संयुक्त रूप से किया था। कमल जोशी के अनुज पद्मश्री अनिल जोशी इस आयोजन के विचार को निरंतर गति और रूप देने वाले सूत्रधार हैं।
कैमरे और कलम के हुनर के ऐसे बेजोड़ समन्वयन का साकार रूप था कमल जोशी जिसकी फितरत में आवारगी थी, जो सारे जमाने का दर्द अपने अंदर समेट कर ताउम्र खुशी लुटाता रहा। जिसके खींचे हर चित्र में एक कहानी होती थी, एक कविता भी और ग्राउण्ड ज़ीरो का एक विश्वसनीय दस्तावेज़ भी।
दूसरी याद के अवसर पर विनम्र श्रद्धांजलि।