अतुल सती
पिछले एक पखवाड़े में सम्पूर्ण जोशीमठ में ही नया धंसाव नई दरारें देखने में आई हैं। बरसात ने पुराने धंसाव को और गहरा किया है, जिससे नई घर, मकानों में दरारें आई हैं। जोशीमठ बद्रीनाथ मार्ग थाना चौराहे के शुरू में ही धंस गया है। जो सिंहधार वाले सबसे गंभीर भू धंसाव वाले क्षेत्र में है। जिससे उसके नीचे की बस्ती को और बांकी सड़क का भी भविष्य में खतरे में चला गया है। मनोहर बाग, जो दूसरा संवेदनशील क्षेत्र है, वहां भी जमीन के नये क्षेत्र में नया धंसाव हुआ है जिसका असर आस-पास के घरों में हो रहा है। नए घरों में दरारें आई हैं। पुरानी सामान्य दरारें ज्यादा गहरी और गंभीर हुई हैं।
सिंहधार में तो लगातार ही खतरा बढ़ता जा रहा है। गांधीनगर के भी नए क्षेत्र में गंभीर भू स्खलन हुआ है। जिसमें नरसिंह मंदिर के पीछे व महाविद्यालय के आसपास स्थिति नाजुक हुई है। दौड़ील/सुनील में तो पिछले माह ही नए गड्डे बनने की खबरें थीं जो अब नए रूप में सामने आ रहे हैं। दौडिल में घरों में पानी भी निकलने लगा है। जोशीमठ की जड़ में अलकनंदा नदी के ऊपर भू कटाव बढ़ गया है। जिससे भूस्खलन सक्रीय हो गया है। जहां से लगातार मिट्टी और पत्थर खिसक कर अलकनंदा में जा रहे हैं। यह अगर यह तेज होता है और ऐसे ही जारी रहता है तो स्थिति कभी भी भयावह हो सकती है।
यही स्थिति जोशीमठ के अन्य वार्ड में है। रविग्राम में नए घरों में दरारें हैं। पुरानी दरारें गहरी चौड़ी हुई हैं। मारवाड़ी वार्ड की भी यही स्थिति है। आपदा का नया दौर शुरू है। यह किसी भी अतिवृष्टि में बड़ी आपदा का रूप ले सकता है। इसके बरक्स सरकार प्रशासन की प्रतिक्रिया न सिर्फ सुस्त, लापरवाही भरी है बल्कि गैर जिम्मेदाराना भी है। अब तक लोगों की पुरानी मांगों पर ही कार्यवाही नहीं है। यहां तक कि वैज्ञानिक सर्वेक्षणों की रिपोर्ट पर भी सरकार ताला मार के बैठ गई है। जब आपदा का सच ही सामने नहीं आएगा तो जनता सवाल और मांग ही क्या करेगी ? तथ्य ही नहीं होंगे तो किस कार्यवाही की मांग करेंगे ?
पिछले एक माह से कहा जा रहा है कि नए सिरे से व नए क्षेत्रों घरों के सर्वे के लिए टीम आ रही है, परंतु उसका कोई अता-पता नहीं है। एक विस्थापन पुनर्वास दफ्तर खुलना था। उसके लिए बड़ी मुश्किल से एक कर्मचारी देहरादून से रवाना हुआ था, पर सुना है कि रास्ते से ही लौट गया। जैसे मार्च महीने में आपदा राहत का एक ट्रक मुख्यमंत्री जी ने रवाना किया था, जो आज तक ठेठ जोशीमठ तक नहीं पहुंच पाया।
अब केंद्र सरकार का कहना है कि जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही है। हम तो सिर्फ मदद कर सकते हैं। वैसे जो मदद पैसे की इधर के छोटे इंजन ने मांगी थी, वह भी बड़े इंजन से अभी आई नहीं। वैसे हमने फरवरी में प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन भेज कर मांग की थी कि, जोशीमठ के पुनर्निर्माण का कार्य व विस्थापन पुनर्वास का कार्य केंद्र अपने हाथ में ले। हालांकि नई सांसद और चार धाम सड़क निर्माण का कार्य देख के तो संशय ही है पर फिर भी लड़ाई तो अभी जारी है ही।