नैनीताल का एक अदना सा नागरिक :
राजीव लोचन साह
प्रति,
जिलाधिकारी, नैनीताल
महोदया,
अभी कनाडा में ही हूँ। आज किसी ने अखबार की यह कतरन मुझे भिजवा दी। मैं क्षोभ से भर गया।
ताकुला के बारे में आप लोग जानते क्या हैं ? क्या जानना भी चाहते हैं ? मैं गांधी शताब्दी वर्ष, 1969 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई से ताकुला के बारे में मिला था। इन पचपन सालों में पहले मैं उत्तर प्रदेश की सरकारों के सामने अपनी बात करता रहा हूँ और फिर उत्तराखंड की सरकारों के। मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को और बाद में राज्यपाल मोतीलाल वोरा को बाकायदा ताकुला ले गया। मोतीलाल वोरा जी ने ताकुला को गांधी ग्राम घोषित करवाया और कुमाऊँ मंडल विकास निगम के माध्यम से हमारे पास मौजूद पुराने फोटोग्राफ्स के अनुसार ऐतिहासिक ‘गांधी मंदिर’, जिसका शिलान्यास मेरे नाना गोविन्द लाल साह सलमगढ़िया की प्रार्थना पर वर्ष 1929 में बापू ने स्वयं किया था, का पुनर्निर्माण करवाया। बाद में मैं इंद्र कुमार गुजराल, जब वे प्रधानमंत्री पद से मुक्त हो गये थे, को भी ताकुला भ्रमण पर ले गया था। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तो न जाने कितने नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों, जिलाधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखता रहा हूँ। मगर ताकुला का दुर्भाग्य है कि वहाँ कुछ सकारात्मक होता ही नहीं। शैलेश बगौली ने एक बार कुछ पहल की थी और प्रो. गिरिजा पाण्डे जैसे विशेषज्ञों को साथ लेने की कोशिश की थी। मगर वह कोशिश न जाने कहाँ जाकर अटकी। जबकि ‘गांधी मंदिर’ दुनिया का शायद एकमात्र भवन है, जिसका न सिर्फ शिलान्यास गांधी जी ने किया, बल्कि दूसरी बार ताकुला आने पर वर्ष 1931 में वहाँ निवास भी किया। ताकुला संबंधी तमाम artifacts हमारे पास हैं। वह चांदी की कन्नी, जिससे गांधी मंदिर का शिलान्यास किया गया था; वह काँसे की थाली, जिसमें बापू भोजन करते थे आदि आदि। मेरे नाना को लिखे गये बापू के अनेक पोस्टकार्ड भी थे, जो दुर्भाग्य से अब मिल नहीं पा रहे हैं। उनकी प्रतियां गांधी स्मारक निधि, राजघाट में अवश्य होनी चाहिए। देवदार का वह वृक्ष, जिसके नीचे बापू अपनी सुबह और शाम की प्रार्थना करते थे, अभी मौजूद है। गांधी मंदिर का ‘विकास’ कर रहे एक ठेकेदार ने तो इस ऐतिहासिक पेड़ का जड़ से उन्मूलन कर ही दिया था, अगर मैं ठीक वक़्त पर पर पहुँच कर उसे रोक न देता। उस दौर के बेशकीमती फोटोग्राफ मैंने अभी-अभी अशोका यूनिवर्सिटीज के archives से ठीक करवाये हैं।
पिछले एक दशक से नई-नई बातें सुन रहा हूँ कि ताकुला में यह होगा, ताकुला में वह होगा। गुस्से और हताशा में अपने बाल नोंचता हूं। अब बीस साल पहले जैसी शक्ति तो है नहीं कि आंदोलन खड़ा करूँ, धरना दूँ, उपवास करूँ। मगर फिर भी चाहता हूँ कि शक्ति संचय कर एक बार फिर से आवाज उठाऊँ और गांधी पर आस्था रखने वालों को एकजुट करूँ।
आप लोग भाग्य विधाता हैं। संविधान प्रदत्त अधिकार तो आपके पास हैं ही, कई बार लगता है कि ईश्वर प्रदत्त अधिकार भी आपके पास हैं। आप लोग अपनी मनमर्जी से जो चाहें, कर सकते हैं। सामान्य जन आपके लिए सिर्फ कहने को stakeholder होता है। आपसे कोई मिल नहीं सकता। फोन आपने उठाना नहीं है। पहले आप व्हाट्सएप संदेशों का जवाब देने की सौजन्यता निभाती थीं, अब उसकी जरूरत भी नहीं समझतीं। इसीलिये कहा कि IAS बन जाने के बाद आपको न सिर्फ संविधानप्रदत्त अधिकार मिल जाते हैं, बल्कि आप लोग मानने लगते हैं कि ईश्वर ने आपको इस धरा पर मानव जाति के कल्याण के लिए भेजा है।
बहरहाल, आप जो भी करें, आपको आगाह करना चाहता हूँ कि ताकुला की पुण्य भूमि से खिलवाड़ करना बन्द करें।