गोविन्द पंत ‘राजू’
त्यौहार होली का हो तो बात टोपियों की क्यों न हो भला ! पहाड़ में तो होली का टोपियों से बड़ा गजब का रिश्ता है। आज तो तमाम तरह की अजब-गजब टोपियां और हैट आदि होली के दौरान लोगों के सिरों पर सजे दिखाई देते हैं लेकिन एक वक्त था जब होल्यारों के सर पर सिर्फ सफेद रंग भरी टोपियां ही दिखाई देती थीं। कुमाऊं में टोपियों को सामाजिक और जातिगत श्रेष्ठता के पैमाने पर भी देखा जाता था और आजादी की लड़ाई में गांधी टोपी तो एक तरह से आजादी के लड़ाकों की पहचान ही बन गई थी। बहरहाल वह तो हो गई गुजरे जमाने की बात, आज के जमाने में तो ‘इसकी टोपी उसके सर’ करने और ’टोपियां पहनाने’ की कला को ही सफलता का पैमाना माना जाने लगा है। हमारे नए-नए जवान हो रहे उत्तराखंड राज्य में भी टोपियों के कलाकारों की कोई कमी नहीं रही है। औरों की बात क्या करें हमारे तो मुख्यमंत्रियों तक में टोपी पहनाने की होड़ लगी रही है। नारायण दत्त तिवारी के जमाने में गांधी टोपी को उत्तराखंड की पहचान बनाने की कोशिश की गई तो रमेश पोखरियाल निशंक और भुवन चंद्र खंडूरी ने उत्तराखंडियों को हिमाचल वाली गोल टोपी पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल के दौर में बीजेपी ने जिस तरह उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदले उसी तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों में टोपियां बदलने की होड़ शुरू हो गई। नतीजा आज जिस टोपी को उत्तराखंड की पहचान बनाया जा रहा है वह कभी-कभी सर्कस के जोकर या फौज की किसी टुकड़ी की जैसी टोपी लगने लगती है। तमाम अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इन रंग बिरंगी टोपियों को पहनकर उत्तराखंड के हमारे देदीप्यमान मुख्यमंत्रीगण बड़ी सुंदर-सुंदर तस्वीरों में मुस्कुराते दिखाई देते हैं। हमारा कुछ भला हुआ हो या ना हुआ हो लेकिन होली के इस रंग भरे माहौल में रंग बिरंगी टोपियों को देने वाली हमारी सरकारों के लिए थ्री चीयर्स कहना तो बनता ही है।
टोपियां हमेशा से हमारे लिए सिर की शान समझी जाती रहीं हैं। पाग और पगड़ी की तो शान ही निराली है। हमारे एक दोस्त शायर खुशवीर सिंह शाद ने एक बार पाकिस्तान में सभागार की पहली पंक्ति में बैठे तत्कालीन प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ को लक्ष्य करके एक शेर पढ़ा था ’यह तेरा ताज नहीं मेरी पगड़ी है यह सिर का हिस्सा है सिर के साथ ही उतरेगी’। लेकिन राजनीति करने वाले धंधे वालों के लिए चाहे पगड़ी हो चाहे टोपी, उनके सिर का हिस्सा नहीं उनके गिरगिटीयारंग का एक धोखा ही होती है। अपने गेटअप का बहुत ख्याल रखने वाले हमारे प्रधानमंत्री तो हर बड़े मौके पर टोपियां और पगड़ियां बदलते ही दिखाई देते हैं। इधर आपके जादूगर की टोपी ने कुछ ऐसा कमाल दिखाया है कि तमाम राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं की पहचान के लिए अलग-अलग रंगों की टोपियां पहनने पर काफी ध्यान देने लगे हैं। यूपी में लाल, हरी, नीली, पीली और सफेद टोपियां खूब चलन में दिखती हैं। मतलब यह कि यहां भी राजनीति में सारा जोर टोपियां पहनाने पर ही है। होली की खुमारी में यह तो कहा ही जा सकता है कि इन दिनों हमारा देश अभूतपूर्व ढंग से दुनिया में अपना सिर ऊंचा उठाने में जुटा है। इकोनॉमी तीसरी पायदान पर पहुंचने जा रही है, करोड़ों लोगों को मुफ्त का अनाज मिल रहा है, दवाइयां और इलाज मुफ्त मिल रहा है, लोगों को रामराज्य जैसी फीलिंग आने लगी है तो जाहिर है कि ऐसे में जिनके हाथ से सत्ता दूर हो चुकी है वो देशाटन के अलावा और करें भी तो क्या करें ? सो वे भारत जोड़ने में जुट गए हैं। जोड़ने की ऐसी कोशिश जिसे गांधी जी की दांडी यात्रा जैसा बताया जा रहा था लेकिन जोड़ने वाले कलाकारों के पास न तो कोई एजेंडा था, न देश की समस्याओं के लिए कोई वैकल्पिक समाधान। कहने को ठोस बात भी कोई नहीं थी, फिर भी यह यात्रा देश की जनता के लिए खासी मनोरंजक रही। अगले लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह की और मनोरंजक यात्राएं देश की जनता को देखने को मिलती रहें इसलिए ऐसी यात्राएं करने वाले तमाम कलाकार भी जी रौं लाख सौ बरीस।
मोदी सरकार ने अपने दो कार्यकालों में कुछ किया हो या न किया हो लेकिन दो उद्योगपति परिवारों को खूब गालियां पड़वाई हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले राफेल के नाम पर दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुके अनिल अंबानी की बारी थी तो इस बार मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का नंबर है। तो गालियां देने और खाने वाले सभी गण भी जी रौं लाख सौ बरीस।
देश की सारी समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए अपने स्टूडियो में बुलाकर अलग-अलग पार्टी के प्रवक्ताओं के बीच गाली गलौज करवा कर टी आर पी बटोरने वाले टी वी चैनल भी जी रौं लाख सौ बरीस। गोदी मीडिया, जेबी मीडिया, वहां मीडिया और विरोधी मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया कहलाने वाले तमाम तत्व भी जी रौं लाख सौ बरीस ।
उत्तराखंड राज्य के उजड़ते गांव जी रौं लाख सौ बरीस। विकास को आसमान चढ़ाते हमारी सरकारों के प्रयासों की बलि चढ़ता हमारा प्राचीन शहर जोशीमठ भी जी रौ लाख सौ बरीस। जोशीमठ की तरह के ही हमारे दूसरे गांव-शहर भी जी रौं लाख सौ बरीस।
तमाम निराशा, हताशाओं, संघर्षों और विषम परिस्थितियों से जूझकर लड़ते रहने वाली हमारी बहादुर जनता, हमारी मां-बहन-बेटियां भी जी रौं लाख सौ बरीस।
सबसे पहली बधाई नैनीताल समाचार के सम्पादक ज्यू को कि इस होली में वे नाती-नातिन के साथ पोती वाले भी हो गए। इन दिनों दुनिया के साथ नैनीताल फ्लैट्स में दादागिरी के साथ लगाये गये एक रंगीन झंडे की चिंता में डूबे संपादकश्री राजीव लोचन साह सपत्नीक जी रौं लाख सौ बरीस, समाचार टीम के विचार संपादक पवन राकेश अपने बांट-तराजू के साथ जी रौं लाख सौ बरीस, हल्द्वानी में निर्वासित लंबी दाढ़ी वाले हरीश पंत जी रौं लाख सौ बरीस, जमीनी पर्यावरण पर पकड़ रखने वाले विनोद पांडे जी रौं लाख सौ बरीस, कैमरे और कलम दोनों पर बराबर पकड़ रखने वाली विनीता यशस्वी जी रौं लाख सौ बरीस, समाचार के पुराने दगड़ी महेश जोशी और दिनेश उपाध्याय जी रौं लाख सौ बरीस, परम विद्वान और हाल के दिनों में राहुल की भारत जोड़ने वाली यात्रा में लंबे डग भरते देखे गए शेखर पाठक जहां कहीं भी हों वहीं जी रौं लाख सौ बरीस, पिछले कई वर्षों से नैनीताल समाचार की निबंध प्रतियोगिता को इत्मीनान के साथ सम्पन्न कराने वाले नवीन कफ्लटिया, अरुण रौतेला, दीप पंत जी रौं लाख सौ बरीस। नैनीताल शहर में नैनीताल समाचार परिवार के जहूर आलम, शीला रजवार, बसंती पाठक, उमा भट्ट, जी रौं लाख सौ बरीस, फिलहाल कनाडा में छटपटा रहे पेमा सिथर जी रौं लाख सौ बरीस, राजहंस प्रेस को संभाले श्याम दाज्यू और हर जगह काम आ जाने वाला कंचन कूरिया जी रौं लाख सौ बरीस। समाचार में काम करने वाले खाती जी जी रौं लाख सौ बरीस हर आड़े वक्त में काम आने वाले अशोक होटल के सभी कर्मचारी जी रौं लाख सौ बरीस, इन दिनों समुद्र तटों को निहार रहे और देश की चिंता में जवान होते जा रहे रामनगर के घुमन्तू मास्साब रमदा जी रौं लाख सौ बरीस। रामनगर के ही मनीष सुंदरियाल जी रौं लाख सौ बरीस, पिथौरागढ़ में विजय वर्धन उप्रेती, ललित पंत, ललित खत्री, गोविन्द कफलिया, महेश पुनेठा जी रौं लाख सौ बरीस। बागेश्वर में आंखों की परेशानी से जूझ रहे जुझारू केशव भट्ट, पंकज पाण्डे जी रौं लाख सौ बरीस।
थ्रीस कपूर जी रौं लाख सौ बरीस। अल्मोड़ा में विलक्षण रचनाकार शम्भू राणा, जय मित्र और अजय मित्र सिंह बिष्ट, कपिलेश भोज, पीसी तिवारी, दयाकृष्ण कांडपाल जी रौं लाख सौ बरीस। भवाली के गजब उद्यमी फ्रूटेज वाले संजू भगत जी रौं लाख सौ बरीस, भवाली भीमताल के ही तरुण जोशी, विनीत फुलारा और राजशेखर पंत जी रौं लाख सौ बरीस। हल्दानी के बहुमुखी कलाकार पंकज उप्रेती जी रौं लाख सौ बरीस हल्द्वानी में ही देवेन्द्र नैनवाल, दिनेश दरम्वाल, सतीश जोशी, प्रभात उप्रेती, डी एन पन्त, भाष्कर उप्रेती, प्रयाग जोशी, ताराचन्द्र त्रिपाठी, महेश बवाड़ी, ओ पी पांडे जी रौं लाख सौ बरीस। बिन्दुखत्ता से पुरुषोत्तम शर्मा जी रौं लाख सौ बरीस, समाज को जोड़ने में महारत रखने वाले रुद्रपुर के हेम पंत और पलाश विश्वास जी रौं लाख सौ बरीस, कोटद्वार के ……. जी रों लाख सौ बरीस। पौड़ी के विलक्षण कलाकार अध्यापक आशीष नेगी और उनकी जोड़ीदार प्यारी रैमासी जी रौं लाख सौ बरीस,पौड़ी के ही सूरी भाई, विमल नेगी, कमलेश कुमार मिश्र, अरविन्द मुद्गल, अनसूइया प्रसाद घायल, श्रीनगर से गंगा असनौड़ा, इन्द्रेश मैखुरी, रुद्रप्रयाग से गजेन्द्र रौतेला, जोशीमठ से योद्धा अतुल सती, टिहरी से महिपाल नेगी, उत्तरकाशी से सूरत सिंह, यशपाल उभान, चमोली के संजय चौहान, देहरादून से चन्द्रशेखर तिवारी, गीता गैराला, अरूण कुकसाल, नरेन्द्र सिंह नेगी, ब्रजमोहन शर्मा, सुनील कैंथोला, दीपू सकलानी, दिल्ली के देवेन मेवाडी, चन्दन डांगी, प्रकाश उपाध्याय, सुभाष तराण जी से रौँ लाख सौ बरीस। इनके अलावा भांँग के नशे में हम जिन-जिन के नाम भूले जा रहे हैं, वे नैनीताल समाचार के रचनाकार साथी जी रौं लाख सौ बरीस।
पिछली होली से इस होली के बीच जो गिदार, होल्यार, समाज के जिम्मेदार, रचनाकार, पत्रकार और भाल मनखी हमारा साथ छोड़ गए उनकी स्मृतियाँ जी रौं लाख सौ बरीस।
आज को बसंत कै का घरा ?
आज को बसंत देश के
सबै नागरिक जनन का घरा !
आज को बसंत कै का घरा ?
आज को बसंत सब जीव जंतु
और पेड़ पौधनाक घरा !
आज को बसंत कै का घरा ?
आज को बसंत सबै गाड़ गध्यार, हाव पाणिक कै घरा !
हो हो होलक रे !!
हमेरि धरतीक यो गोल रूप यों ही जी रौ लाख सौ बरीस!
हो हो होलक रे !!
फोटो : इंटरनेट से साभार