राजीव लोचन साह
2024 का लोकसभा चुनाव देश की आजादी के 77 वर्षों का शायद सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण चुनाव है। भारत का लोकतंत्र कभी इतनी खतरनाक हालत में नहीं था। हमारे पूर्वजों ने हजारों कुर्बानियाँ देकर आजादी दिलायी थी और देश चलाने के लिये एक संविधान बनाया था। अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बदले उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वाले सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेता कह रहे हैं कि हमें लोकसभा में 400 सीटें दे दीजिये, हम इस संविधान को बदल देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मोदी सरकार ने सम्पूर्ण विपक्ष को तहस-नहस करना शुरू कर दिया है। भारत के इतिहास में पहली बार एक सत्ताधारी मुख्यमंत्री को जेल में बन्द किया गया है। ठीक चुनाव से पहले सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया है, ताकि उसके पास चुनाव लड़ने के लिये संसाधन ही न रहें और उधर भाजपा ने चुनावी बांड के माध्यम से बड़ी-बड़ी कम्पनियों को डरा कर अथवा लालच देकर 7,000 करोड़ से भी अधिक का चन्दा बटोरा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित कर दी गई ‘चन्दा दो या जेल जाओ, चन्दा दो धंधा लो’ वाली इस चुनावी बांड परियोजना को तो स्वयं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पति, अर्थशास्त्री पराकला प्रभाकर द्वारा इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक घोटाला बताया गया है। दलबदल का मर्ज देश में पहले से ही था, मगर अब तो ‘ऑपरेशन लोटस’ के नाम पर चुनी हुई सरकारें तक पैसे के जोर से बदल दी जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पलट दिया गया चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव का हास्यास्पद नजारा देश भर में देखा गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के इस बिगड़े हाल को देख कर जर्मनी और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने चिन्ता व्यक्त की है।
टूट की कगार पर खड़ा देश
देश का संघीय ढाँचा चरमरा रहा है। ऐसा लग रहा है मानो केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच तलवारें खिंच गईं हों। एक ओर गैर भाजपा शासित प्रदेशों को केन्द्र सरकार द्वारा उनके हक का वाजिब पैसा तक नहीं दिया जा रहा है और दूसरी ओर स्वयं को फकीर कहने वाले प्रधानमंत्री ने अपने लिये बेबात में 8,600 करोड़ रुपये की कीमत से दो वायुयान खरीद डाले हैं। पड़ौसी देशों के साथ हमारे रिश्ते कभी इतने खराब नहीं थे। प्रधानमंत्री अपने को विश्वगुरु कहते हैं, मगर मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान जैसे देश तक अब भारत से अपनी दूरी बना रहे हैं। चीन ने भारत की दो हजार वर्ग किमी जमीन पर कब्जा कर लिया है। लद्दाख का अस्तित्व बचाने के लिये अभी-अभी 21 दिन का उपवास कर चुके प्रख्यात पर्यावरणविद सोनम वांगचुक इस खतरनाक स्थिति पर देश का ध्यान खींचने के लिये चीन की सीमा तक ‘पश्मीना मार्च’ कर रहे हैं, मगर कभी दुश्मनों की ‘आँख निकाल देने’ का दावा करने वाले छप्पन इंच छाती के हमारे प्रधानमंत्री कायरता के साथ इस सच्चाई से मुँह चुरा रहे हैं। कुपोषण का पैमाना हो या बेरोजगारी का, खुशहाली का पैमाना हो या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का, कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश अब दुनिया में सबसे नीची पायदान पर है।
देश का संघीय ढाँचा चरमरा रहा है। ऐसा लग रहा है मानो केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच तलवारें खिंच गईं हों। एक ओर गैर भाजपा शासित प्रदेशों को केन्द्र सरकार द्वारा उनके हक का वाजिब पैसा तक नहीं दिया जा रहा है और दूसरी ओर स्वयं को फकीर कहने वाले प्रधानमंत्री ने अपने लिये बेबात में 8,600 करोड़ रुपये की कीमत से दो वायुयान खरीद डाले हैं। पड़ौसी देशों के साथ हमारे रिश्ते कभी इतने खराब नहीं थे। प्रधानमंत्री अपने को विश्वगुरु कहते हैं, मगर मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान जैसे देश तक अब भारत से अपनी दूरी बना रहे हैं। चीन ने भारत की दो हजार वर्ग किमी जमीन पर कब्जा कर लिया है। लद्दाख का अस्तित्व बचाने के लिये अभी-अभी 21 दिन का उपवास कर चुके प्रख्यात पर्यावरणविद सोनम वांगचुक इस खतरनाक स्थिति पर देश का ध्यान खींचने के लिये चीन की सीमा तक ‘पश्मीना मार्च’ कर रहे हैं, मगर कभी दुश्मनों की ‘आँख निकाल देने’ का दावा करने वाले छप्पन इंच छाती के हमारे प्रधानमंत्री कायरता के साथ इस सच्चाई से मुँह चुरा रहे हैं। कुपोषण का पैमाना हो या बेरोजगारी का, खुशहाली का पैमाना हो या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का, कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश अब दुनिया में सबसे नीची पायदान पर है।
संसाधनों की लूट मची है। देश की चालीस प्रतिशत सम्पत्ति सिर्फ एक प्रतिशत आबादी के पास सिमट गई है। कुछ ही सालों में चमत्कारिक ढंग से दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो जाने वाले प्रधानमंत्री के मित्र उद्योगपतियों को खदानों से लेकर रेलवे प्लेटफॉर्म, हवाई अड्डे और बन्दरगाह तक कौड़ियों के भाव लुटाये गये हैं। हिडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी के रहस्यों का पर्दाफाश होने के बाद भी सरकार द्वारा उसके विरुद्ध कोई कार्रवाही नहीं की गई है। राजनेताओं द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार आजादी के बाद ही देश की सबसे बड़ी समस्या बना रहा है। मगर अब उसमें यह फर्क आया है कि आप कितने ही गलत ढंग से पैसा कमायें, मगर यदि पकड़े गये तो तुरन्त सत्ताधारी दल में शामिल हो जायें। आम भाषा में इसे मोदी की ‘वॉशिंग मशीन’ कहा जाने लगा है।
अग्निवीर योजना ने नौजवानों के सपने छीन लिये हैं
इस बीच बेरोजगारी पिछले चालीस वर्षों में सबसे अधिक है। पढ़े-लिखे नौजवान नौकरियाँ माँग रहे हैं। परीक्षाओं के पेपर लीक होने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन पर लाठियाँ बरसायी जा रही हैं और मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। सेना में भर्ती की उम्मीद करने वाले नौजवानों के सपनों पर अग्निवीर योजना ने पानी फेर दिया है। सोनम वांगचुक के अनुसार मौत से भी न डरने वाले गुरखा अब भारत छोड़ चीन की फौज में भर्ती हो रहे हैं। निराश नौजवान नौकरियों के लिये या तो अपनी जान जोखिम में डाल कर युद्धग्रस्त इजराइल में छोटी-मोटी नौकरी करने जा रहे हैं या रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस में भाड़े के सिपाही के रूप में भर्ती हो रहे हैं। अपने घर में एक इज्जतदार नौकरी तक की गुंजाइश नहीं बची है। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस आई.आई.टी. में प्रवेश पा लेना ही गौरव की बात मानी जानी जाती है, जहाँ अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये माँ-बाप अपनी जमीनें बेच देते हैं, उसकी मुम्बई शाखा के 30 प्रतिशत होनहार छात्रों को इस साल किसी कम्पनी में नौकरी तक नहीं मिली!
इस बीच बेरोजगारी पिछले चालीस वर्षों में सबसे अधिक है। पढ़े-लिखे नौजवान नौकरियाँ माँग रहे हैं। परीक्षाओं के पेपर लीक होने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन पर लाठियाँ बरसायी जा रही हैं और मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। सेना में भर्ती की उम्मीद करने वाले नौजवानों के सपनों पर अग्निवीर योजना ने पानी फेर दिया है। सोनम वांगचुक के अनुसार मौत से भी न डरने वाले गुरखा अब भारत छोड़ चीन की फौज में भर्ती हो रहे हैं। निराश नौजवान नौकरियों के लिये या तो अपनी जान जोखिम में डाल कर युद्धग्रस्त इजराइल में छोटी-मोटी नौकरी करने जा रहे हैं या रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस में भाड़े के सिपाही के रूप में भर्ती हो रहे हैं। अपने घर में एक इज्जतदार नौकरी तक की गुंजाइश नहीं बची है। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस आई.आई.टी. में प्रवेश पा लेना ही गौरव की बात मानी जानी जाती है, जहाँ अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये माँ-बाप अपनी जमीनें बेच देते हैं, उसकी मुम्बई शाखा के 30 प्रतिशत होनहार छात्रों को इस साल किसी कम्पनी में नौकरी तक नहीं मिली!
कितना शर्मनाक है प्रधानमंत्री का जुमलेबाजी करना
महंगाई आसमान छू रही है। इन दस सालों में, जब कोरोना बीमारी और उसके साथ बेवकूफी से लाये गये जी.एस.टी. ने लाखों कारोबारियों को बर्बाद कर दिया या दिहाड़ी मजदूरों को घर बैठा दिया, आमदनी घट गई, तब गैस सिलिंडर और दालों के दाम कहाँ से कहाँ पहुँच गये, यह बताने की जरूरत नहीं है। खुशहाली तो दूर की बात, अपनी घर-गृहस्थी चला लेना हर आदमी के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष हो गया है। दस साल पहले कैसे-कैसे सपने दिखाये गये थे ? हर व्यक्ति को पन्द्रह लाख रुपये मिलेंगे, हर साल दो करोड़ नौकरियाँ मिलेंगी, हर परिवार के सर पर छत होगी, किसानों की आमदनी दुगुनी होगी, स्मार्ट सिटी होगी, बुलेट ट्रेन चलेगी, हवाई चप्पल पहनने वाला आदमी हवाई जहाज में यात्रा करेगा। आखिर में सब कुछ जुमला निकला। वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे में जो कुछ रियायतें मिलती थीं, वह भी छीन ली गईं। सत्ता के करीबी बैंकों के अरबों रुपये लेकर भाग गये और कर्ज में डूबे किसान और बेरोजगार आत्म हत्या करते रहे।
महंगाई आसमान छू रही है। इन दस सालों में, जब कोरोना बीमारी और उसके साथ बेवकूफी से लाये गये जी.एस.टी. ने लाखों कारोबारियों को बर्बाद कर दिया या दिहाड़ी मजदूरों को घर बैठा दिया, आमदनी घट गई, तब गैस सिलिंडर और दालों के दाम कहाँ से कहाँ पहुँच गये, यह बताने की जरूरत नहीं है। खुशहाली तो दूर की बात, अपनी घर-गृहस्थी चला लेना हर आदमी के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष हो गया है। दस साल पहले कैसे-कैसे सपने दिखाये गये थे ? हर व्यक्ति को पन्द्रह लाख रुपये मिलेंगे, हर साल दो करोड़ नौकरियाँ मिलेंगी, हर परिवार के सर पर छत होगी, किसानों की आमदनी दुगुनी होगी, स्मार्ट सिटी होगी, बुलेट ट्रेन चलेगी, हवाई चप्पल पहनने वाला आदमी हवाई जहाज में यात्रा करेगा। आखिर में सब कुछ जुमला निकला। वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे में जो कुछ रियायतें मिलती थीं, वह भी छीन ली गईं। सत्ता के करीबी बैंकों के अरबों रुपये लेकर भाग गये और कर्ज में डूबे किसान और बेरोजगार आत्म हत्या करते रहे।
प्रधानमंत्री इस बीच क्या करते रहे ? वर्षों की तपस्या के बाद चन्द्रमा पर चन्द्रयान उतारने वाले वैज्ञानिकों के ऊपर अपनी फोटो चिपकाते रहे, विश्व कप फाइनल में पहुँचे क्रिकेटरों के बीच हाथ हिलाते रहे, मोरों को खाना खिलाते रहे, कांजीरंगा में हाथियों की सवारी या लक्षद्वीप में स्कूबा डाइविंग करते रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जब पुलवामा कांड हुआ था, उस वक्त भी प्रधानमंत्री कॉर्बेट पार्क में एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। घण्टों उनसे सम्पर्क ही नहीं हो सका। हालाँकि बाद में प्रधानमंत्री ने अत्यन्त अनैतिक रूप से पुलवामा कांड का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिये किया। जरूरी काम करने के बदले अपनी छवि चमकाने का इतना ज्यादा शौक इससे पहले देश के किसी भी प्रधानमंत्री को नहीं रहा।
एक साल तक एक ऐतिहासिक संघर्ष कर सरकार को झुकाने वाले किसानों को एम.एस.पी. और अन्य माँगों पर दुबारा लड़ाई शुरू करने पर मजबूर होना पड़ रहा है, मगर उन्हें अपनी राजधानी तक नहीं जाने दिया जा रहा है। सड़कों पर कीलें बिछा दी गई हैं और आसमान से आँसू गैस के गोले बरसाये जा रहे हैं। ‘वन रैंक वन पेंशन’ और ‘ओल्ड पेंशन स्कीम’, जिन पर लाखों पूर्व सैनिकों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की आँखें लगी हैं, पर सरकार चुप्पी साधे बैठी है। महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार की घटनायें आये दिन होती रहती हैं।
ज्यादातर घटनाओं में अपराधी सत्ताधारी भाजपा के ही निकलते हैं, जिन्हें न सिर्फ सजा से बचाया जाता है और संरक्षण दिया जाता है, बल्कि महिमामंडित तक किया जाता है। गुजरात दंगों में बिल्कीस बानो पर सामूहिक बलात्कार के दोषियों को न सिर्फ जेल से छुड़ा लिया गया, बल्कि उनका भव्य अभिनन्दन तक किया गया। वह तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का कि उसने इन दुर्दान्त अपराधियों को वापस जेल भिजवा दिया। अंकिता भंडारी की इसलिये हत्या कर दी गई, क्योंकि वह शासक दल से जुड़े एक वी.आई.पी. को ‘स्पेशल सर्विस’ देने से इन्कार कर रही थी। सरकार न इस वी.आई.पी. का नाम बताने को तैयार है और न ही धरना-उपवास कर रहे अंकिता के माँ-बाप को न्याय दिलाने में रुचि ले रही है। मणिपुर में निर्वस्त्र की गई महिलाओं और दिल्ली में सड़कों पर घसीटी गई महिला पहलवानों के शर्मशार कर देने वाले दृश्य तो सारी दुनिया ने देखे।
आतंक के कारण लोगों ने मुँह खोलना तक बन्द कर दिया है
मगर जिस तरह पहले ऐसी समस्याओं पर, देश के हालातों पर खुल कर चर्चा होती थी, अब नहीं होती। इन्कम टैक्स, ई.डी. या सी.बी.आई. जैसी संस्थाओं के आतंक ने सरकार के विरोधियों को चुप रहने पर विवश कर दिया है। पैगासस जैसा सॉफ्टवेयर सत्ता के विरोधियों पर लगातार जासूसी करता है। सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने वालों को देशद्रोही कहा जाता है। सोशल मीडिया पर दो रुपल्ली प्रति पोस्ट की दर पर काम करने वाले भाजपा के आई.टी. सैल के ट्रौल बड़े से बड़े आदमी को गलियाने के लिये चौकस रहते हैं। इसलिये अब महत्वपूर्ण लोग भी अपनी रचनात्मक राय देने के बदले चुप्पी साध लेते हैं। मीडिया अब ‘गोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है, क्योंकि वह मोदी सरकार की गोद में बैठ गया है। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में काम कर रहे लोग बतलाते हैं कि हर रोज सुबह उनके पास प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश आ जाता है कि क्या दिखाया जाना है। यदि मीडिया हाउस अपनी स्वतंत्रता के लिये अड़ें तो उन पर बी.बी.सी., एन.डी.टी.वी. या न्यूज लौंड्री की तरह इन्कम टैक्स, ई.डी. या सी.बी.आई. के छापे पड़ जाते हैं। इसलिये गोदी मीडिया पर आश्रित लाखों लोग सच्चाइयों के रूबरू हो नहीं पाते। अब समझदार लोगों ने विकल्प के रूप में सोशल मीडिया पर जाना शुरू कर दिया है। दर्जनों यू ट्यूबर खतरे उठा कर भी जनता को सच्ची और प्रामाणिक जानकारियाँ दे रहे हैं। देश में बढ़ती तानाशाही को लेकर ध्रुव राठी के बनाये पिछले दो वीडियो तो लगभग अढ़ाई करोड़ लोगों ने देखे। हिन्दी के सारे न्यूज चैनलों की सम्मिलित व्यूअरशिप भी शायद इतनी नहीं होगी। मगर एक नया कानून लाकर सरकार सोशल मीडिया को भी नियंत्रित करना चाह रही है।
मगर जिस तरह पहले ऐसी समस्याओं पर, देश के हालातों पर खुल कर चर्चा होती थी, अब नहीं होती। इन्कम टैक्स, ई.डी. या सी.बी.आई. जैसी संस्थाओं के आतंक ने सरकार के विरोधियों को चुप रहने पर विवश कर दिया है। पैगासस जैसा सॉफ्टवेयर सत्ता के विरोधियों पर लगातार जासूसी करता है। सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने वालों को देशद्रोही कहा जाता है। सोशल मीडिया पर दो रुपल्ली प्रति पोस्ट की दर पर काम करने वाले भाजपा के आई.टी. सैल के ट्रौल बड़े से बड़े आदमी को गलियाने के लिये चौकस रहते हैं। इसलिये अब महत्वपूर्ण लोग भी अपनी रचनात्मक राय देने के बदले चुप्पी साध लेते हैं। मीडिया अब ‘गोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है, क्योंकि वह मोदी सरकार की गोद में बैठ गया है। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में काम कर रहे लोग बतलाते हैं कि हर रोज सुबह उनके पास प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश आ जाता है कि क्या दिखाया जाना है। यदि मीडिया हाउस अपनी स्वतंत्रता के लिये अड़ें तो उन पर बी.बी.सी., एन.डी.टी.वी. या न्यूज लौंड्री की तरह इन्कम टैक्स, ई.डी. या सी.बी.आई. के छापे पड़ जाते हैं। इसलिये गोदी मीडिया पर आश्रित लाखों लोग सच्चाइयों के रूबरू हो नहीं पाते। अब समझदार लोगों ने विकल्प के रूप में सोशल मीडिया पर जाना शुरू कर दिया है। दर्जनों यू ट्यूबर खतरे उठा कर भी जनता को सच्ची और प्रामाणिक जानकारियाँ दे रहे हैं। देश में बढ़ती तानाशाही को लेकर ध्रुव राठी के बनाये पिछले दो वीडियो तो लगभग अढ़ाई करोड़ लोगों ने देखे। हिन्दी के सारे न्यूज चैनलों की सम्मिलित व्यूअरशिप भी शायद इतनी नहीं होगी। मगर एक नया कानून लाकर सरकार सोशल मीडिया को भी नियंत्रित करना चाह रही है।
उत्तराखंड राज्य का गठन जन संघर्षों से हुआ था। मगर 24 साल बाद डबुल इंजन की सरकार ने इसे केन्द्र सरकार का उपनिवेश बना दिया है। नफरत का केन्द्र बन गई इस पवित्र देवभूमि में लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे शब्द जोर-जोर से उछाले जा रहे हैं। यहाँ जरूरत थी एक सशक्त भूमि कानून की, गैरसैंण को राजधानी बनाने की, मगर भाजपा का साम्प्रदायिक एजेंडा पूरा करने के लिये बना दिया गया एक यूनीफॉर्म सिविल कोड कानून। न प्राथमिक शिक्षा की चिन्ता, न स्वास्थ्य की। महिलायें आज भी सड़क पर प्रसव करने को अभिशप्त हैं, गाँव निरन्तर पलायन से खाली हो रहे हैं। मनुष्य और जंगली जानवरों का संघर्ष इतना बढ़ गया है कि एक तरफ ग्रामीणों की जान निरन्तर खतरे में है तो दूसरी ओर खेती चौपट हो गई है। जोशीमठ शहर जमींदोज होने को तैयार है। सरकार इन समस्याओं का समाधान नहीं चाहती। उसे प्रधानमंत्री की तुगलकी जिद पर ऑल वैदर रोड बना कर पहाड़ के अस्थिपंजर ढीले करने हैं। सिलक्यारा की सुरंग में 41 मजदूरों की जान लगभग ले लेने वाली हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग कम्पनी के खिलाफ कोई कार्रवाही इसलिये नहीं की गई, क्योंकि उसने चुनावी बौंड के माध्यम से भाजपा को 55 करोड़ रुपये दिये थे।
इस बार का लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक है। अतः अपने मताधिकार का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करें।
Tags: Chunav 2024