राजीव लोचन साह
धार्मिक आधार पर जिस तरह का विभाजन देश में इस वक्त है, आजादी के ठीक पहले और बाद में शायद वैसा ही रहा होगा। मगर उस वक्त विवेक की आवाजें पर्याप्त सशक्त होने के कारण धर्मान्धता और पाशविकता को निष्क्रिय करने में सक्षम थीं। आज उस तरह का कद्दावर नेतृत्व नहीं है। ऊपर से एक मीडिया नाम की चीज अस्तित्व में आ गया है, जिसका काम ही झूठ फैलाना, गुमराह करना और उत्तेजना बढ़ाना है। वह बहुत जल्दी आपके लिये एक ईश्वर गढ़ लेने में सक्षम है। हिन्दू उग्रवादी यदि इस मीडिया की सवारी कर देश को उन्माद की ओर धकेल रहे हैं तो दूसरा जो वैकल्पिक मीडिया है, वह भी कई बार सीमा का अतिक्रमण करता दिखाई देता है। इससे बुरी स्थिति क्या होगी कि आप शादी-विवाह जैसे सामाजिक समारोहों में भी निश्चिन्तता और उल्लास के साथ नहीं जा सकते।
सी.ए.ए. और एन.आर.सी. जैसे विषय वहाँ भी रंग में भंग करने के लिये मौजूद होंगे। जो आपसे असहमत होगा, वह वैसे तो आपका मित्र या रिश्तेदार होगा और आपकी ही तरह तमाम दुनियावी समस्याओं से परेशान भी। मगर उस वक्त वह देशभक्त होगा और आप उसके दुश्मन, यानी वामी, खांग्रेसी और सेकुलर होंगे। धार्मिक आधार पर देश को विभाजित करने वाले परम संतोष की मुद्रा में हैं। इनको चुनौती देने का एक ही तरीका हो सकता है कि देश की जनता को फिर-फिर वापस रोजमर्रा की समस्याओं की ओर लाया जाये। एक बार जनता का ध्यान महंगाई, बेकारी, बेरोजगारी, आदि पर केन्द्रित होने लगे तो देश के दुश्मनों के हथियार भोंथरे होने लगेंगे। एक और जरूरत दलितों को सवर्णों से अलग करने की है। यदि यह बात भली भाँति उनकी समझ में आ गई कि भले ही वे उग्रवादी हिन्दुओं के हितों के लिये जान देने को भी तैयार हो जायें, मगर वहाँ उनकी जरूरत सिर्फ इस्तेमाल कर फेंक देने के लिये है तो कट्टरपंथियों की ताकत घट कर चैथाई रह जायेगी।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।