देवेश जोशी
श्रीनगर-पौड़ी मोटर मार्ग पर पिछले एक हफ्ते से दहशत का पर्याय बने गुलदार को शिकारी जाॅय हुकिल ने मार गिराया है। ये वही गुलदार था जिसने ठीक जन्मदिन के दिन एक बेटी से उसकी माँ छीन ली थी। इस गुलदार के मारे जाने पर कई तरह की टिप्पणियां सोशल मीडिया पर दिखाई दे रही हैं। कुछ लोगों ने इसे आदमखोर की दहशत से निजात के रूप में देखा है तो कुछ इसे एक निरीह जानवर की हत्या के रूप में देख रहे हैं। शिकारी जाॅय हुकिल के मृत गुलदार के साथ खिंचवाये गए फोटो पर भी आपत्ति की जा रही है।
ये सतही टिप्पणियां तब और भी चिंताजनक हो जाती हैं जब वो गंभीर-प्रतिष्ठित पत्रकारों की तरफ से आती हैं। दरअसल आप लोगों के द्वारा कुछ गंभीर वाजिब सवाल उठाए जाने चाहिए। जैसे कि –
1- किसी भी गुलदार, बाघ आदि हिंसक जानवर को आदमखोर घोषित करते हुए क्या नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथाॅरिटी द्वारा निर्धारित स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्राॅसिजर का वन विभाग द्वारा पालन किया गया है?
2- क्या शूटर को हंटिंग ऑर्डर इश्यू करने से पहले आदमखोर की पहचान ट्रैप-कैम से पुख़्ता कर दी गयी है?
3- क्या मृत्यु-पश्चात परीक्षण और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये पुष्ट हो गया है कि मृत जानवर वही है जो चिह्नित किया गया था?
4-यदि हाँ तो क्या घटनास्थल से प्राप्त आदमखोर के पग-मार्क और मृत जानवर के पग-मार्क टैली कर रहे हैं?
5- क्या मारे गए आदमखोर का अंतिम संस्कार निर्धारित तरीके (उसके अंगों को किसी भी स्तर पर या किसी भी व्यक्ति द्वारा चुराया तो नहीं गया है) से किया गया है?
अगर आदमखोर के शूटर द्वारा मारे जाने के पश्चात ये सवाल पत्रकारों या आरटीआई एक्टिविस्ट्स द्वारा उठाए जाते हैं तो किसी तरह की न तो चूक होगी, न गोलमाल किया जा सकता है और न किसी निरीह जानवर के इंसान द्वारा मारे जाने की कोई संभावना ही रहेगी। और हाँ मृत आदमखोर के साथ शिकारी द्वारा फोटो खिंचाए जाने की परम्परा रही है। ये उसी तरह है जैसे कोई लेखक अपनी रचना पर हस्ताक्षर करना नहीं भूलता। ये वैधानिक अनिवार्यता भी है जो किसी वैधानिक विवाद की स्थिति में प्रमाण के तौर पर पेश की जाती है। इस तरह की फोटो से शिकारी जिम्मेदारी भी लेता है कि मेरे द्वारा मारा गया जानवर चिह्नित आदमखोर ही है।
उत्तराखण्ड के एक प्रख्यात शिकारी लखपत रावत का मैंने भी साक्षात्कार लिया था और जाॅय हुकिल के साक्षात्कार भी पढ़े हैं। इस आधार पर मुझे यकीन है कि जाॅय हुकिल द्वारा भी निर्धारित प्रोटोकॉल का पूरा पालन किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चंद्र जुगराण जी द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार में पढ़ा जा सकता है कि वे भूखे शिकारी की तरह आदमखोर को शूट करने के लिए बेताब नहीं रहते हैं बल्कि पूरी कोशिश करते हैं कि आदमखोर को शूट करने के बजाय केज़ किया जाए।
फिर भी सवाल हर आदमखोर को शूट किए जाने के बाद उठाए ही जाने चाहिए। ऐसे सवाल जो जवाब में तथ्य और प्रमाण मांगें न कि भ्रम का वातावरण बनाएँ।