पंकज उप्रेती
उत्तरायणी के दिन 14 जनवरी 2020 की रात्रि 10 बजे दुःखद समाचार सुनने को मिला कि नैनीताल में के.के.साह जी का निधन हो चुका है। इस बार मैंने तय किया था कि होली में एक शानदार महफिल उनके तल्लीताल आवास पर करेंगे। पिछली होली उनके साथ एक लम्बे साक्षात्कार में उन्होंने नैनीताल शहर की सूखती जा रही होली परम्परा पर चिन्ता जताई थी।
हमने कर लिया था कि इस बार जब नैनीताल समाचार की होली में हर बार की तरह अनुज धीरज और शिष्यों के साथ जाना होगा तो एक दिन पहले ही चले जायेंगे और पहली रात्रि के.के.साह के साथ बैठकर पुरानी महफिलों की यादें ताजा करेंगे लेकिन यह सब नहीं हुआ, वह चल दियेे………
86 वर्षीय साह जी में होली के प्रति जो दीवानगी थी, वह के.के.साह में ही हो सकती है। उन्होंने बातचीज में भरे मन से कहा- ‘‘चलती रहें ये बैठकें, रुके तो अपने बुजुर्गों को क्या जवाब देंगे।’’ वह बेहद चिन्तित थे कि नैनीताल में जिस जुनून की होली बैठकें उन्होंने देखी हैं उसका अंश भर भी नहीं रह गया। बात-बातों में उन्होंने कहा- ‘‘जो लोग खुद में कुछ नहीं करते हैं, आपकी भी आलोचना कर देते हैं। मैं जानता हूँ नई पीढ़ी को जोड़कर इस प्रकार के अभियान बनाये रखना कितना कठिन काम है।’’ साह जी कहते थे- ठाटबाट के साथ होली की महफिलें सजती रही हैं। हालांकि संस्थागत आयोजन के बाद ढोल का एक सुर सुनाई देने वाली स्थिति वर्तमान में हो चुकी है। तल्लीताल में तो कोई बचा ही नहीं। जिस जगह होल्यारों का जमघट लगा रहता था, अब मैं तरस चुका हूँ।
कुमय्या साह का परिवार होली परम्परा से जुड़ा रहा है। इसी के वरिष्ठ सदस्य के.के.साह थे। इस परिवार की बात करें तो गंगा साह प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए हैं। उनके चार पुत्र- दुर्गालाल, श्यामलाल, प्रेम लाल, भवानीदास साह हुए। भवानीदास जी इंस्पेक्टर नाम से ही जाने जाते थे। प्रेमलाल जी के सुपुत्र सुदर्शनलाल साह उच्च प्रशासनिक पदों को सुशोभित करने के साथ ही नैनीताल का गौरव रहे हैं। भवानीदास जी के पुत्र हुए- कृष्णकुमार ओर हरीशलाल। कृष्णकुमार जी को के. के .साह के नाम से नैनीताल में हर कोई जानता और पहचानता था। के.के.साह बचपन से ही होली महफिलों के शौकीन थे। दरअसल उनके पिता के मित्र तारादत्त पन्त जी के वहाँ होली की बैठकें हुआ करती थीं। पौष के प्रथम रविवार से छरड़ी तक होल्यार इसमें जुटते थे।
पन्त जी ने एक दिन साह जी से कहा कि अपने घर में भी इस प्रकार बैठक करवाया करो, उसके बाद इनके यहाँ भी महफिल जमने लगी। अपने बचपन से ही के.के. साह को यह सब देखने-सुनने का अवसर मिला और उनकी होली संगीत के प्रति दीवानगी बढ़ती गई। तब लोगों में इतना ज्यादा प्रेम-व्यवहार था कि बिन बुलाए भी अधिकार पूर्वक घर में आ जाया करते थे। यही अपनापन था कि रात्रिभर महफिलें जमती। अनगिनत महफिलों के गावह के.के.साह जी के पास सैकड़ों रिकार्ड मौजूद थे, जिन्हेें धरोहर के रूप में संभालना चाहिये। संगीत के प्रति उनकी दीवानगी इस कदर थी कि नैनीताल आने वाले किसी भी संगीत उस्ताद को उन्होंने नहीं छोड़ा और अपने घर पर निमंत्रित कर स्वागत किया। होली बैठकों के संरक्षण के लिये आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।