Photo: Pixabay
नासा के उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों और उसके विश्लेषण से पता चला है कि माउंट एवरेस्ट की 20,000 फीट की ऊंचाई पर घास और झाड़ियों की मात्रा में वृद्धि हो रही है
ललित मौर्या
जलवायु परिवर्तन के कारण हिंदू कुश हिमालय में तेजी से बदलाव आ रहा है। जो न केवल पेड़-पौधों को बल्कि पूरे इकोसिस्टम को प्रभावित कर रहा है। माउंट एवरेस्ट और हिमालय के के चारों और ग्लोबल वार्मिंग के असर को साफ देखा जा सकता है। कभी बर्फ की सफ़ेद चादर में ढंके रहने वाले इस क्षेत्र पर अब घास और झाड़ियां नजर आने लगी हैं। जोकि स्पष्ट रूप से इशारा करता है कि जलवायु में आ रहा परिवर्तन इस पर्वत श्रंखला पर विनाशकारी असर डाल रहा है। इसके महत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह क्षेत्र 42 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जोकि एशिया के दस सबसे बड़ी नदियों को पोषित करता है। साथ ही 140 करोड़ लोगों की जल सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करता है। इस विशाल क्षेत्र में उगने वाले पेड़-पौधों की मात्रा को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। इस निर्जन स्थान के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। जहां तक इंसान का पहुंच पाना कठिन है। पेड़ों और बर्फ के बीच का यह क्षेत्र आमतौर पर मौसमी बर्फ से ढंका रहता है| जहां कहीं-कहीं पर छोटे पौधे देखने को मिल जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने उस स्थान का अध्ययन किया है जो पांच से 15 गुना तक स्थायी ग्लेशियरों और बर्फ से ढंका रहता हैं। इसे समझने के लिए एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नासा के लैंडसैट उपग्रह से 1993 से 2018 के बीच प्राप्त चित्रों का विश्लेषण किया है। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने समुद्रतल से 4,150 से 6,000 मीटर ऊंचाई वाले हिस्सों को चार भागों में बांट कर अध्ययन किया गया है। जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि माउंट एवरेस्ट के आसपास के क्षेत्र में पौधे की मात्रा बढ़ रही है। हालांकि अलग-अलग ऊंचाई और स्थान पर पौधों की मात्रा में अंतर पाया गया । 5,000-5,500 मीटर की ऊंचाई पर वनस्पति में सबसे अधिक वृद्धि देखने को मिली। माउंट एवरेस्ट के आसपास शोधकर्ताओं ने वनस्पति में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। झाड़ियों और घास में हो रही इस वृद्धि का क्या प्रभाव होगा, अभी तक साफ नहीं है। लेकिन वैज्ञानिकों का मत है कि यह इस क्षेत्र में बाढ़ के खतरे को बढ़ा सकता है|
अत्यधिक संवेदनशील है हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र
हालांकि यह अध्ययन इन परिवर्तनों के कारणों की जांच नहीं करता। लेकिन निष्कर्ष से पता चलता है कि क्लाइमेट चेंज के चलते हिमालय क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहा है और यही वजह है कि परिस्थितियां पेड़ पौधों के पनपने के अनुकूल बन रही हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भी कई अध्ययन इस ओर इशारा कर चुके हैं कि हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र वनस्पति में आ रहे जलवायु सम्बन्धी बदलावों के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं।
एक्सेटर यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी की डॉ करेन एंडरसन ने बताया कि “हिमालय क्षेत्र में बर्फ के पिघलने पर बहुत सारे शोध किए गए हैं। उनमें से एक अध्ययन में दिखाया गया है कि 2000 से 2016 के बीच हिमालय क्षेत्र में बर्फ के पिघलने की दर दोगुनी हो गई है।” उनके अनुसार दुनिया भर में मुख्य पर्वत श्रंखलाओं पर घटती बर्फ को समझना और उसकी निगरानी करना बहुत जरुरी है। चूंकि यह उप-पारिस्थितिक तंत्र स्थायी बर्फ की तुलना में बहुत बड़े भूभाग पर फैला हुआ है, जिसके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। साथ ही यह जलापूर्ति को किस तरह प्रभावित करता है इसके बारे में भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। यहां मौसम के अनुसार बर्फ गिरती और पिघलती है। हमें नहीं पता कि वनस्पति में आ रहे इस बदलाव का यहां के जल-चक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा? लेकिन इसे समझना बहुत जरुरी है क्योंकि यह क्षेत्र एशिया के वाटर टावर्स के नाम से जाना जाता है। जहां से एशिया की दस प्रमुख नदियां निकलती हैं।
हिन्दी वैब पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ से साभार