राजीव लोचन साह
ताजा खबर है कि नाम बलदने की शौकीन उत्तराखंड की सरकार द्वारा ‘जोशीमठ’ से ‘ज्योर्तिमठ’ कर दिये गये नगर में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट का उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बुरा हाल कर दिया। उन्हें जबर्दस्त लताड़ लगाई गई। तीन दिन पहले जोशीमठ पहुँचे हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ भी शायद यही व्यवहार होता, यदि वे जबर्दस्त सुरक्षा घेरे में नहीं होते।
जब धर्म की अफीम का नशा उतर जाता है, विकास के सपने छलनी हो जाते हैं तो ऐसा ही होता है। हम ऐसा नहीं कह रहे हैं कि आज जोशीमठ में जो हो रहा है, उसके लिये सिर्फ भाजपा की सरकार ही दोषी है। सच तो यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों इस मामले में बराबर के दोषी हैं। फर्क यह है कि कांग्रेस की सरकार कभी-कभी कुछ सुन लेती थी, दिल्ली से निर्देश लेने वाली यह सरकार कहीं ज्यादा बेशर्म है। मुझे याद है कि वर्ष 2018 में वयोवृद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता राधा बहन ऑल वैदर रोड पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के पास गई थीं तो उन्होंने उनके मुँह पर कह दिया था कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है और वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हाल-हाल तक जोशीमठ के आसन्न संकट पर दो मिनट बात करने को तैयार नहीं थे।
नैनीताल समाचार के प्रकाशन शुरू के साल में ही हमने तवाघाट भू स्खलन पर सुन्दर लाल बहुगुणा की रिपोर्ट ‘प्रकृति से छेड़छाड़ के खिलाफ हिमालय ने युद्ध छेड़ दिया है’ प्रकाशित की थी। तब से आज तक इन 46 सालों में हमने हिमालय में विकास के विनाशकारी मॉडल, दैत्याकार जल विद्युत परियोजनाओं और ऑल वैदर रोड पर सैकड़ों पेज की सामग्री प्रकाशित की है। मगर न कुछ होना था और न कुछ हुआ। वर्ष 2013 में केदारनाथ का जल प्लावन भी हमारी सरकारों को कुछ नहीं सिखा सका।
आज जब चण्डी प्रसाद भट्ट भी राज्य बनने के बाद ओढ़ी हुई अपनी 22 साल की चुप्पी तोड़ चुके हैं और देश-विदेश का सारा मीडिया, यहाँ तक कि गोदी मीडिया भी जोशीमठ पर टूट पड़ा है, हम सिर्फ 2008 में ‘नदी बचाओ आन्दोलन’ के दौरान गिरदा द्वारा लिखी गई कविता यहाँ दे रहे हैं :-
बोल व्योपारी तब क्या होगा ?
एक तरफ बर्बाद बस्तियां, एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियां, एक तरफ हो तुम।
एक तरफ हैं सूखी नदियां, एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियां, एक तरफ हो तुम।
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्योपारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती,
महल-चौबारे बह जायेंगे खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब – बोल व्योपारी तब क्या होगा ?
दिल्ली – देहरादून में बैठे योजनकारी तब क्या होगा
आज भले ही मौज उड़ा लो, नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो, लेकिन डोलेगी जब धरती
बोल व्योपारी तब क्या होगा ?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी तब क्या होगा ?
योजनकारी तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
एक तरफ हैं सूखी नदियां एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियां एक तरफ हो तुम।
– गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’