चन्द्रशेखर जोशी
तनाव देश के भीतर भी है, फिलहाल चीन सीमा पर लगभग 45 साल बाद स्थिति ठीक नहीं है। यह भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों की इस तरह शहादत की पहली घटना है। यह सब, हम मार डालेंगे-काट डालेंगी जैसी ओछी, अहंकारी भाषा के परिणाम हैं।
…बताया जा रहा है कि लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात चीनी सैनिकों ने पथराव किया, जिसमें भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए। हिंसक झड़प में चीनी सेना को भी नुकसान की बात कही जा रही है।
..इससे पहले 1975 में अरुणाचल प्रदेश में तुलुंग ला में संघर्ष में चार भारतीय जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद दोनों ओर से कोई गोलीबारी और शहादत की कोई घटना नहीं हुई। बीते पांच हफ्तों से गलवान घाटी समेत पूर्वी लद्दाख के कई इलाकों में बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने आए थे। सेना के बयान के अनुसार चीनी सैनिकों ने पथराव किया, चीन के समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक खबर में दावा किया कि भारतीय सैनिकों ने झड़प की शुरुआत की। लंबे समय से भारतीय और चीनी सेना के बीच पैंगोंग झील, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलतबेग ओल्डी में तनाव चल रहा है।
…इस विवाद को खत्म करने के लिए लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और तिब्बत सैन्य जिले के मेजर जनरल लीयू लिन ने छह जून को करीब सात घंटे तक बैठक की थी। बाद में दिल्ली से बयान आया कि सीमा पर सबकुछ ठीक है, दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखने का समझौता हुआ है। भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा था कि दोनों देशों की सेना चरणबद्ध तरीके से वापस लौट रही हैं।
…खैर जो भी हो, चार दशक बाद अचानक सीमाओं पर तनाव ठीक नहीं है। यह भडक़ाऊ बयानों का परिणाम है। यही हाल रहे तो देश पर चहुंओर से खतरा मंडराएगा। मौजूदा हालातों में हम ही जीतेंगे कहना अहंकार है, आज के दौर में युद्ध और झड़पों में जीत किसी देश की नहीं होती, दोनों पक्ष नुकसान के साथ हारते हैं। चीन और भारत दोनों विकट आर्थिक समस्याओं से घिरे हैं। दोनों के पास बाजार का ठहराव और बेरोजगारी दूर करने का खास इंतजाम नहीं है।
…जब शासक देश की अंदरूनी समस्याएं हल नहीं कर पाते तब बाहरी देशों से झगड़े मोल लेते हैं। इन छद्म युद्धों का देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है।
..सरकार समर्थक हिंसा की असलियत समझें, बिन विचारे भुजाएं न फड़कें, रुधिर शांति से बहने दें..