महेंद्र बिष्ट
आओ नये साल,
स्वागत है तुम्हारा
पर एक मेहरबानी करना यार
कि एक अजनबी या मेहमान की तरह मत आना
कि कालबेल बजाई और सोफे पे बैठे औपचारिक मुस्कान ओढ कर हाय हेलो कर ली.
आओ, तो अपनों की तरह आना
अपनेपन के अधिकार के साथ किवाड खोल कर
सीधे रसोई में पहुंचना
लकडी के धुएं से जूझती ईजा के पास बैठना
ताकि चिन्ता और दुख में घुलते घुटनों को थोडी ताकत मिले
भट्ट के डुबके में जम्बू का बघार लगाने से लेकर
दुनिया जहान की फसक मारना
ताकि ताउम्र बोझ उठा कर झुक गये कन्धों को
जरा राहत मिले.
असोज के घाम में खेत में खटते बाबू के पास जाना
उनके माथे के पसीने को सुखाना ठंडी बयार बनकर
या पेड की छांव में दो घडी बैठ्कर साथ में बीडी पीना
जिगरी दोस्त की मानिन्द
ताकि उनके चेहरे पर खिंच आई फिक्र की लकीरें
कु्छ देर को ही सही- मिट जाएं.
नन्हे- मुन्नों के पास जाना, अपने घुटनों पर उन्हें
घुघूती- बासूती खिलाना
ताकि उनकी खिलखिलाती हंसी गूंजती रहे सालभर.
इस तरह आओ
तो स्वागत है तुम्हारा नये साल
……वरना तो तुम हर साल आने वाले ही ठैरे
और हम भी कहते रहने वाले ठैरे
हैप्पी न्यू ईअर!