रमेश कुमार मुमुक्षु
जब कभी ग्रामीण विकास के विभिन्न आयामों की चर्चा होती है। ग्रामीण कुटीर उद्योग एवं स्थानीय संसाधन के समझदारी से उपयोग की बात होती है। पर्यावरण एवं प्राकृतिक जीवन की चर्चा होती है। राजनीति में ईमानदारी और शांति अथवा अहिंसा की बात होती है, चर्चा गांधी तक स्वयं पहुंच जाती है। लेकिन गांधी की हत्या के बाद गांधी हमेशा खड़े मिले ,लेकिन उनके अपने और उनके विरोधवाले उनसे कन्नी काटने लगे। चाहने वालो ने उनको एक मूर्ति और सुबह शाम की प्रार्थना तक सीमित कर लिया और उनके विरोध वाले उनके विरोध के लिए तथ्य खोजने में लगे रहे। गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर राजघाट तक सीमित कर दिया और स्थानीय स्तर पर मूर्तियों तक सीमित कर दिया। गांधी की नई तालीम जो देश को मिट्टी से जोड़ती थी, वो शिक्षा ऐरकंडिशन कमरों तक सीमित हो गई। मिट्टी से कैसे दूर रहा जाए ,इस पर सबसे अधिक जोर रहा।
गांधी ग्राम जहां पर ग्रामीण संसाधन, मिट्टी की खुशबू की महक थी , पशुधन और जैविक कृषि थी, वो सब कुछ रसायन में विलीन होता गया। गांधी का अर्थ सभी हाथों को काम और सम्मानपूर्वक। हलदर बलराम के देश में किसान आत्महत्या को मजबूर है ,जमीन जहरीली हो गई, जल दूषित हो गया, पशुधन आवारा हो गया, कृषि उत्पाद ज़हर से सराबोर है। ग्रामीण अर्थ तंत्र लगभग दम तोड़ चुका है।
खादी रोजगार परक थी ,अब फैशन हो गई, उसका जन जन तक विस्तार होना था । लेकिन सिमट कर सम्भ्रांत होती गई। गांधी के संस्थान अभी भी मौजूद है,लेकिन गांधी नदारद है। दुनिया के सबसे उपजाऊ देश में जहां पर कृषि असीम हो सकती थी। कुटीर उद्योग सबसे बड़ा व्यापार हो सकता था। लेकिन सब विकास विनाश की रह की ओर बढ़ गया। पेड़ों के पत्तो से बने पत्तल को उपयोग में लाने वाला देश प्लास्टिक और थर्मोकोल में परिवर्तित होता गया। गांधी का गांव सदियों से चली आई परंपरा से युक्त गांव था। जिसमे केवल हमने गतिरोध और पनप गई , कुरीतिओं और बुराइयों को दूर करना था। गांधी का चरखा ग्रामीण और निर्धन के लिए एक आधार था। चरखा एक सांकेतिक टूल था। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आमूल चूल ताबड़ उलट फेर नही ,बल्कि धीमे धीमे विकास करना था । जिससे समय के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि में सुधार आ सकता था । लेकिन हरित क्रांति के आधार पर सदियों से चली आ रही जैविक कृषि को जड़ से उखाड़ना बच सकता था। गांधी धीमे धीमे लगते जरूर है, लेकिन उनकी चाल सतत और नित्य है।
ऐसा नही की विकास की पूरी धारा बेमानी है। लेकिन जल संकट, कृषि भूमि का नष्ट और बंजर होना। बहुआयामी कृषि को एक दो फसल तक सीमित करना गांधी का रास्ता नही है। स्वराज्य केवल शब्द नही, एक अहसास है , जो देश में आपसदारी और सद्भावना पैदा करने का एक मात्र आधार है। स्वराज्य में अंधराष्ट्रवाद के लिए कोई स्थान नही होता । स्वराज्य गर्व पैदा करता है, दम्भ नही। स्वराज्य देश की विभिन्नता को मजबूत करता है, कमजोर नही। मेरा देश बोलते हुए ,गर्व होना चाहिए ,दम्भ नही।
गांधी अहिँसा की बात कहते थे। अहिंसा मात्र हथियार न उठाना ही नहीं, बल्कि मन मैं बैठी हिंसा होती है ,जो युद्ध ही नही प्राकृतिक संसाधन के विरुद्ध भी हिंसा करती है। पिछले पांच दशक में प्रकृति के विरुद्ध हिंसा ने जल ,थल, नभ और भूमिगत सब कुछ निर्ममतापूर्ण लील लिया है। विश्व में हथियारों के जखीरे मन की हिंसा का प्रतिफल है। जिस पर बहुत कम बात होती है।
गांधी की स्वच्छता मन के भीतर से आती थी।, थोपी हुई नही थी। गांधी तन की सफाई के अतिरिक्त मन की सफाई पर जोर देते थे, ताकि गंदगी पैदा ही न हो। ये साफ दिख पड़ता है। दुनिया के हिंसक विकास के मॉडल ने गंदगी के ढेर लगा दिए ,जो विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। ऐसा केवल एक ही कारण से हुआ ,संकुचित सोच ,जिसने समग्र सोच को कुचल कर आगे बढ़ना चाह। गांधी प्रतियोगिता की जगह सामूहिकता और समग्रता की बात करते है। सब एक दूसरे के पूरक है ,न कि प्रतियोगी। मानव और प्रकृति में प्रतियोगिता नही , सामन्जस्य होता है। सतत व समग्र विकास की अवधारणा में चींटी के अस्तित्व की बात भी उतनी महत्व रखती है, जितनी हाथी के संरक्षण की।
गांधी को पूजना और मात्र मानना ही पर्याप्त नही, जो उनकी हत्या के बाद आजकत हो रहा है। गांधी को केवल आत्मसात ही किया जा सकता है। आत्मसात के बाद वो जमीन पर खुद ही दीख पड़ेगा, मूर्ति के रूप में नही ,बल्कि अहिंसक और सतत विकास के रुप में, लहलहाते खेतों में, सेहतमंद पशुधन में और सभी धर्मों अथवा जातियों के बीच सद्भाव और प्रेम के रूप में। गांधी एक शरीर की हत्या हो सकती है,लेकिन गांधी की हत्या लगभग असंभव है क्योंकि गांधी अहिंसा , सद्भाव और प्रेम का परिचायक है, जो अस्तित्व के आधार तत्व है। इतिहास साक्षी है, शांति का कोई विकल्प नही। युद्ध के बाद भी शांति ही एक स्थापित होती है। हिसा से दूर होना ही धर्म और अध्यात्म है। जो पुरातन और सत्य है। गांधी उसी सनातन परंपरा के वाहक है। कृष्ण ने कहां था कि शांति का कोई विकल्प नही। युद्ध केवल संहारक होता है। आज मानव दम्भ भरता है , अपने विकास का और अगर युद्ध हुआ था तो खुद के हथियार मानव जाति को सर्वमुल नष्ट कर सकते है। ये केवल मन की हिंसा का प्रतिफल है। जिसको गांधी ने कम करने का प्रयास किया। लेव टॉल्सटॉय ने गांधी में शांति और अहिंसा की स्थापना की संभावना को 1910 में ही भांप लिया था।
गांधी दर्शन को उनकी हिन्द स्वराज्य में प्रश्नकर्ता द्वारा पूछे गए प्रश्न कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया । उसका जबाव गांधी का मूल दर्शन कहा जा सकता है। उत्तर में गांधी लिखते है ” अंग्रेजो ने नही बल्कि हम खुद ही उनके गुलाम बन गए”, । मुठ्ठी भर अंग्रेज कैसे हमें गुलाम बना सकते थे। लेकिन हम उनकी चीज़े के प्रति प्रभावित होते गए और अपना छोड़ते गए ,बिना किसी आधार के ,ऐसी अवस्था में गुलाम बनना तय है। गांधी की ये बात आज भी सत्य है।
इसलिए गांधी मूर्ति नही ,कोई इमारत या पुस्तक नही ,गांधी केवल होने से ही संभव है और करने से । गांधी 150 में गांधी को मनाने की बजाए ,आत्मसात किया जाए तो जमीन पर वो दिखने लगेगा, ये तय है।