राजीव लोचन साह
पिछले सौ सालों में ऐसा कभी हुआ भी नहीं होगा। पूरा देश लाॅकडाउन में है और अर्थव्यवस्था धूल धूसरित। आर्थिक दृष्टि से ऊपर के 4 प्रतिशत लोगों को छोड़ कर किसी को यह नहीं मालूम कि आगामी साल-छः महीने वे कैसे झेलेंगे। उनकी बचत उन्हें कब तक बचा कर रखेगी। इस विकट संकट से जनता का ध्यान भटकाने के लिये उन्हें हर रोज कोरोना से संक्रमित होने वाले, ठीक होने वाले और मरने वाले लोगों के आँकड़े वन डे क्रिकेट के स्कोर की तरह परोसे जा रहे हैं, जिनसे वे इतने आतंकित हैं कि अपनी वास्तविक स्थिति की समीक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं। उनकी संवेदना इतनी कुण्ठित हो गई है कि वे हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर घर वापस पहुँचने की कोशिश कर रहे मजदूरों की व्यथा भी महसूस नहीं कर पा रहे हैं। असहमति की आवाजें नहीं के बराबर हैं। विदेशों में ‘प्लाण्डेमिक’ जैसे वीडियो बने हैं, जिनमें इस महामारी में बिल गेट्स की भूमिका की पड़ताल की गई है और जिन्हें यू ट्यूब और फेसबुक द्वारा हटा दिये जाने के बावजूद करोड़ों की संख्या में लोग देख रहे हैं। मगर भारत में अभी लाॅकडाउन को लागू करने के वक्त और तरीके को लेकर सवाल उठाने का साहस भी नहीं जग पाया है। इस कठिन वक्त में देश की जनता ने गजब का धैर्य और अनुशासन दिखाया है।
मगर बदले में उसे वह नहीं मिला, जिसकी वह अधिकारी है। देश के प्रधानमंत्री ने दो-तीन बार जनता को सम्बोधित किया। अब वे जनता को उसके हाल पर छोड़ कर अन्तर्धान हैं। उनकी वित्त मंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपये का एक राहत पैकेज देश को दिया है, जो किसी की समझ में नहीं आ रहा है। रोज कुआँ खोद कर रोज पानी पीने वाले ही नहीं, हर माह नपी-तुली तनख्वाह लेकर पहले पिछला उधार चुकता कर फिर बाकी महीना उधारी में गुजारने वाले लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें हँसना चाहिये या रोना। उन्हें नकदी चाहिये मगर इस पैकेज में सिर्फ आने वाले अच्छे दिनों की एक धुँधली तस्वीर है।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।