मुकेश प्रसाद बहुगुणा
बोर्ड इम्तहान होने वाले हैं … मैं देख रहा हूँ कि बच्चों में अब इम्तहानों को लेकर वो उत्साह नहीं रहा ,जो कभी मेरी उम्र के नौजवानों में हुआ करता था I
अपुन के समय में बच्चों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता था I
१. कुछ बच्चे वर्ष भर नियमित रूप से कक्षा में हाजिर रहते थे , इम्तहान से तीन महीने पहले ही चार विषयों में ट्यूशन पढ़ना शुरू कर देते थे और देश दुनिया की चिंता छोड़ स्वयं के लिए प्रथम श्रेणी लाने के निजी स्वार्थ में जुटे रहते थे I आम विद्यार्थियों में ऐसे स्वार्थी बच्चों को अत्यंत ही निकृष्ट भाव से देखा जाता था ,क्योंकि ये निहायत ही डरपोक हुआ करते थे ,चौबीसों घंटे इन्हें परीक्षा का भय सताता था I यही आगे चल कर अधिकारी बने और अब देश की सख्त परीक्षा लेने पर तुले हुए हैं l
२. कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जिन्हें पास होने को लेकर कोई ख़ास रूचि नहीं होती थी ( इन्हें बचपन से ही जमाने के दुष्प्रचार के झांसे में आकर स्कूल की तरफ खदेड़ा गया था ) I ये हर कक्षा में तीन चार वर्ष रहने के बाद विवाह की उम्र प्राप्त कर लेते थे ,फिर अपने घरेलू कामों में लग जाते थे I ऐसे बच्चे इम्तहानों को निर्विकार भाव से देखते थे , न फेल में न पास में ,इन्हें कोई रूचि न होती I ये आगे चल कर आदर्श वोटर बने और आज का लोकतंत्र इनके ही भरोसे दौड़ रहा है, आगे भी दौड़ता ही रहेगा, चाहे कितनी भी सांस फूल जाए, दौड़ना नहीं छोड़ेगा l
३. लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे ,जो वर्ष भर दिन में घंटी टप कर सिनेमाहाल , खेल के मैदान में रहते थे , रात्रि में भगवती जागरण या अखण्ड कीर्तन में समय व्यतीत करते थे,और परीक्षा से ठीक एक दिन पहले पास होने का जुगाड़ निकालने का प्रयास किया करते थे I यही बच्चे आगे चल कर नेता भी बनते थे I यहाँ ऐसे ही बच्चों के प्रयासों के बारे में लिखा जा रहा है I
नक़ल करने के नए और मौलिक तरीके ढूँढने में ऐसे बच्चों का कोई सानी न होता था I इन्हें न कक्ष निरीक्षक का भय , न दुर्दांत फ़्लाइंग दस्ते की फ़िक्र होती थी I परीक्षा से पहले की रात इनके लिए सबसे महत्वपूर्ण हुआ करती थी I नक़ल करने का कौन सा नया तरीका उपयोग में लाया जाय ,इसका सरल समाधान तलाशा जाता था I
उन दिनों स्कूल के गेट पर घुसते ही जांच होती थी I जांच का जिम्मा हमेशा ही ऐसे खूंखार गुरूजी लोगों पर होता था , जिनके बीमार होने की दुआ हर नकलची किया करता था I पर ये ऐसे सख्तजान हुआ करते थे कि गंभीर बीमार होना तो दूर , इम्तहान के दिन जुखाम तक न हुआ करता था इन्हें I तो पहला काम होता था ,इन्हें सफलता पूर्वक चकमा देना I बेल्ट के अन्दर , पजामें के नाड़े , जूते के तले में पर्चियां , ज्योमेट्री बॉक्स के अन्दर आवश्यक निर्देश , जाँघों में बंधी चित्रा गाइड , सर के लम्बे बालों में छुपी महीन पर्चियां , हथेलियों में गणित के सूत्र जैसे अनेकों तरीके निकाले जाते थे I सबसे सरल तरीका होता था कि एक पर्ची ऐसी जगह रखो ,जहाँ वह आसानी से पकड़ में आ जाए I पर्ची पकड़ते ही दुर्दांत गुरूजी खुश कि देखा बच्चू बचकर कहाँ जाओगे “ हमने भी घाट घाट का पानी पी रखा है I और बच्चू इक पर्ची सफलता पूर्वक पकडवाने के बाद शेष पर्चियां ले कर अंदर ( ठीक ऐसे ही जैसे हमारी पुलिस इधर पुरानी पुलिया के पीछे बैठे बदमाशों को चोरी करने की योजना बनाते हुए गिरफ्तार कर लेती है और उधर चौराहे पर बदमाश सरे आम फायरिंग करते हुए फरार हो जाते हैं ) I
अब अन्दर का दृश्य भी बड़ा ही मनोहारी होता था I खासतौर से तब कक्ष निरीक्षक के रूप में गुरूजी के साथ एक मैडम की ड्यूटी भी हो तब I गुरूजी मैडम के साथ मौसम के बारे में विस्तृत चर्चा करने में व्यस्त और इधर हमारे बहादुर नकलची अपने काम में I
एक बालिका बार बार अपने दुपट्टे से आँखें पोंछ रही होती , दुपट्टे में महादेवी का छायावाद लिखा था I मैडम ने देखा तो पूछा आँखों को क्या हुआ है ? लड़की ने बताया कि कविता में जो वेदना है उसका असर है I
उधर कोने में एक लड़के को खुजली की बीमारी थी शायद I कभी इस बांह को खुजलाये तो कभी उस बांह को , कभी दायें टखने को तो बाएं टखने को I दाई बांह की आस्तीन में न्यूटन चुभ रहे थे ,बायीं बांह की आस्तीन में आर्किमिडिज़ बैठे थे I एक टखने में कूलाम्ब का नियम तो दूसरे टखने में फ्लेमिंग का थम्ब रुल I
कक्ष में गुरूजी और मैडम के बीच मौसम की चर्चा अब डीए की घोषणा में देरी और देश की अर्थव्यवस्था के संकट जैसे नाजुक दौर में पहुँच चुकी होती I इधर प्लासी का युद्ध या आग्नेय चट्टानों की बनावट पाजामे के नाड़े से निकल कापी के पन्नो के बीच गायब हो जाते I कुछ बच्चों को बहुमूत्र की बीमारी भी आज ही होनी थी … वे बार बार स्कूल के सुलभ शौचालय की तरफ I शौचालय की दरारों –खिडकियों के पल्लों के पीछे इतिहास –भूगोल ,विज्ञान ,गणित जैसे दुर्लभ सवालों के सुलभ उत्तर भी रहा करते थे I
तभी बाहर दूर से सीटी बजने की आवाज I गुरूजी और मैडम अर्थव्यवस्था के संकट को संकटग्रस्त ही छोड़ मुस्तैद हो जाते हैं , फ़्लाइंग के चरणकमल स्कूल में घुस चुके हैं I उन दिनों फ़्लाइंग मुख्य द्वार से नहीं आती थी , कोई दीवार चढ़ कर , कोई बगीचे की बाड़ फांद कर तो कोई बगल वाले मकानों की छत से सीधे स्कूल की छत पर उतरता था I
बच्चों में खलबली का कोई भाव नहीं I पर्चियां उड़ उड़ कर खिडकियों से बाहर जा रही हैं I दुपट्टे का छायावाद वेदना के आंसुओं में बह ही चुका है , न्यूटन –आर्किमिडिज़ – कूलाम्ब आदि दुनिया छोड़ गए हैं I फ़्लाइंग आंधी की तरह कक्ष में प्रवेश करती है और सबसे पीछे कोने में बैठे बदमाश से दिखाई देने वाले बच्चे पर टूट पड़ती है I कोई उसके बाल खीँच देख रहा है कि असली हैं या नकली ,कोई उसकी जेब में साबुत का साबुत स्वयं घुसने की फिराक में है , कोई उसके जूते –जुराब सूंघ रहा है ,मतलब हरेक को वही शक जैसा जासूसी फिल्मों में इन्सपेक्टर को काले कलूटे से दिखने वाले माली पर होता है I लेकिन लड़के के पास कुछ नहीं , उसने माल पहले ही कक्ष निरीक्षक की टेबल की दराज में तब छुपा दिया था ,जब सीटी बजते ही दोनों निरीक्षक दरवाजों पर मुस्तैद खड़े हो गए थे I बहुमूत्र के मरीज बच्चों को तो कभी कोई चिंता ही नहीं , उन्होंने अपने पास कोई सबूत ही नहीं रखा था I जो फ़्लाइंग आंधी की तरह आई थी वह तूफ़ान की तरह स्टाफ रूम में प्रवेश कर गयी ,जहाँ काजू –अंगूर आदि तेज हवा में उड़ने से बचाए रखने के लिए रखें हैं I
एक बजे इम्तहान समाप्त हो गया , न्यूटन को आस्तीन में समा लेने वाला प्रतिभाशाली बालक सीधा हनुमान मंदिर जाएगा , छायावाद की दुखियारी बालिका संतोषी माँ को प्रसाद चढ़ायेगी , बहुमूत्र के मरीज अब ठीक हो चुके हैं ,वे तीन से छः वाला शो देखने जायेंगे , डॉन फिल्म में जबरदस्त नृत्य किया है हेलन ने , नृत्य –अभिनय को बढ़ावा देना युवाओं की जिम्मेदारी है ,सो यह जिम्मेदारी भी पूरी करनी ठैरी बल I
लेकिन अब कहाँ वो दिन ? अब तो सब कुछ नीरस सा हो गया है , न नक़ल की तमीज और न पास होने के जुगाड़ की तहजीब I नयी शिक्षा नीति ने तो युवा प्रतिभाओं का कबाड़ा ही कर दिया है , पहले पास होने के लिए मेहनत करनी पड़ती है , अब फेल होने का कोई तरीका ही नहीं निकलता I
नोट – ये लेखक के अपने विचार कतई नहीं हैं , सब सुनी सुनाई बातें हैं , और अक्खा इंडिया जानता है कि लेखक सुनी सुनाई बातों को तरजीह नहीं देते जी …कसम से I
2 Comments
नवीन जोशी
वाह, बहुत बढ़िया लिखा है।
Mukesh
धन्यवाद