प्रमोद साह
समूची मनुष्यता को प्रभावित करने वाली ,मनुष्य कीचेतना से प्रस्फुटित दो धाराएं लगातार एक दूसरे से विपरीत दिशा को जा रही हैं . यही कारण है तमाम उपलब्धियों के बाद भी असंतोष और हताशा दुनिया में बड़ती जा रही है ।उसका मुख्य कारण इन दोनों धाराओं द्वारा एक को दूसरे से अलग मान लेना ,एक दूसरे के लिए अछूत सा मान लेना है.
धर्म और विज्ञान की इन दो धाराओं के बीच टकराहट का इतिहास मैक्यावली के राजनीतिक विचार के साथ शुरू होता है जिस विचार के प्रभाव ने यूरोप को पोप की धर्म सत्ता से अलग कर दिया , तब यूरोप तथा दुनिया के अन्य देशों में लोकतंत्र का विस्तार हुआ जिसने विज्ञान और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा दिया ।
पूंजी और सत्ता के घालमेल ने एक बहुत बड़े वर्ग जिसे आमतौर पर वंचित और मजदूर वर्ग कहा जाता है ,का शोषण किया गया । जिसके प्रतिशोध ने दुनिया को #साम्यवादीदर्शन दिया ।
मार्क्स के इस कथन #धर्म जनता की #अफीम है ” ने धर्म और धार्मिक समाज के समक्ष बडी चुनौती पेश की । इस कथन को साबित करने के लिए कम्यूनिसटों ने तर्क और विज्ञान का सहारा लिया . मनुष्यता और समाज की भौतिक उन्नति में इस राजनीतिक विचार तथा विज्ञान की पैरवी का बहुत बड़ा योगदान रहा भी है ।इससे कदाचित इनकार नहीं किया जा सकता । यह सही भी है कि सार्वजनिक जीवन के भौतिक फैसलों में तर्क और तथ्य तो होने हीं चाहिए।
लेकिन सिर्फ तर्क और तथ्यों के आधार पर हम जिस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं ।जिस समाज का हम निर्माण करते हैं ।वह समाज रेगिस्तान की तरह तप्त समाज होता है । जिसमें सब कुछ पा लेने के बाद भी खाली रह जाने का भाव ,एक प्यास मनुष्य के भीतर रहती ही है ।जिसके लिए मनुष्य इस तर्क और विज्ञान की दुनिया में नखलिस्तान ढूंढने के लिए मृग की भांति भागता ही रहता है। जहां उसे सुकून मिले ,जहां शान्ति मिले ,जहां भले ही कोई ना दिखे ,लेकिन उससे कुछ कह जाए ।
दिल को तसल्ली देने वाली , कल्पना की यह दुनिया तर्कों में साबित नहीं की जा सकती है ।लेकिन कल्पना की यह दुनिया ही मनुष्यता का आधार है। जिसने समय-समय पर अपनी परिकल्पना से मनुष्यता के लिए दया और धर्म के मार्ग विकसित किए हैं । यही कारण है कि पश्चिम तमाम भौतिक उन्नति के बाद विज्ञान और तर्क की तपिस में जब झुलसने लगा ,तो बहुत तेजी से पूरब की ओर आया ।आध्यात्मिकता में उसे वह शीतलता प्राप्त हुई ,जो उसके स्व के विकास के लिए आवश्यक थी ।
यहां विज्ञानवादी बहुत चालाकी से एक मास – क्लासिफिकेशन करता है । तमाम धार्मिक गतिविधियों को पाखंड से जोड़ने लगता है . जबकि सही मायने में धर्म और पाखंड साफ तौर पर दो अलग-अलग रास्ते हैं ।
यहां यह समझने में अक्सर भूल हो जाती है ,कि पाखंड का और धर्म का आपस में कोई रिश्ता है भी नहीं ।धर्म के नाम पर पाखंड और आडंबर को बडाने वाले लोग धर्म क्षेत्र में व्यवसायी की तरह हैं ।
आत्मा की शांति और मनुष्यता की उन्नति से उनका कोई सीधा वास्ता नहीं है ।धर्म उनकी आजीविका का साधन भर है ।जब भी धर्म व्यापार और व्यापारी के रूप में सामने आता है। तो पाखंड को ही सहारा बनाता है .पाखंड युक्त धर्म ही आसानी से समझ में भी आता है। इसलिए उसके अनुयायियों की संख्या ज्यादा होती है. उसके जुलूस बड़े होते हैं। उसके द्वारा प्रायोजित हिंसा भी ब्यापक होती है ।
यह सब घटनाएं हम भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में देखते हैं ।इसमें चौकने जैसी कोई बात नहीं है। क्योंकि व्यापार में अनैतिक प्रतियोगिता पूरी दुनिया में ब्याप्त है .लेकिन जिसे हम सही मायनों में धर्म कहते हैं जिसकी बुनियाद तत्व मीमांसा में है । जो बॉडी, सोल और माइंड . अर्थात शरीर, मन और आत्मा !जिस रूप में परिभाषित है वहां जब शरीर की बात आती है .तब तमाम तरीके की भौतिकता जिसमें अधिकांश विज्ञान का ही विषय है शामिल होती है। मन के बहुत बड़े हिस्से में भी विज्ञान की भूमिका है ।लेकिन मन से प्रारंभ होकर आत्मा तक जो सूक्ष्म शरीर है , वही धर्म और आध्यात्म का असली विषय है। उसको पहचानना उसको जागृत करना ,उससे वार्तालाप करने की तमाम पद्धतियां ,धर्म की दुनिया में विद्यमान हैं ।
इन सूक्ष्म तत्वों से ,इस सूक्ष्म शरीर से वार्ता करने के जो तरीके विद्यमान हैं ।वह 100% पाखंड मुक्त हैं ,उन्हें तर्क के आधार पर न तो तो समझा जा सकता है .न साबित किया जा सकता है ।क्योंकि यह मान्यताओं के परे एक अलग संसार है ।विश्वास का संसार ,जितना अधिक आपका विश्वास होगा ,जितनी अधिक आपकी आस्था होगी ,उतनी अधिक उतने गहरे इस मार्ग में आप के पहुंचने की संभावनाएं बड जाएंंगी
मनुष्यता के इतिहास में विज्ञान यानी कार्य और कारण के स्थापित होने के बहुत पहले से विवेचना का यह मार्ग हमारे और दुनिया के तमाम धर्मों में भी मौजूद है ।खासकर जब हिंदू धर्म की बात आती है ,उपनिषदों में जो भगवान की अवधारणा है वह #नेति -#नेति से शुरू है । यानी वह ना तो दिखाई देता है ना छुआ जा सकता है ,लेकिन उसका स्पन्दन होता है ,उसे महसूस किया जा सकता है। ठीक ऐसी ही परिभाषा कालांतर में परमाणु की भी निकल कर आई ।. विज्ञान के बहुत से सिद्धांत कुछ सूत्रों को मान लेने से साबित होते हैं .जैसे सामान्य ताप और दाब .. जो सामान्य तौर पर होता ही नहीं ,ऐसे ही उपनिषदों के बाद हमने #षडदर्शन के रूप में ,सांख्य ,योग ,न्याय, वैशेषिक , मीमांसा और वेदांत के रूप में जो दर्शन दुनिया को दिए उसका कोई भी आधार शायद तर्क से परे हो या ऐसा कुछ उसमें हो जिसके लिए पाखंड की गुंजाइश हो ।
कम्यूनिस्टों के निशाने में भारतीय धर्म : तर्क का संबंध विज्ञान से है ,पाखंड का संबंध धर्म से है । यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश से प्रसारित विमर्श है । दुनिया में कम्युनिस्ट आंदोलन के तेज होने के बाद भारतीय धर्म खासकर हिंदू धर्म इसके निशाने में रहा ,हिंदू धर्म पर निशाना साधते हुए कम्युनिस्टो ने जिन हिंदू परंपराओं को निशाने में लिया वह सही मायने में हिंदू धर्म का हिस्सा हैं ही नहीं
“षड्दर्शन दर्शन की बुनियाद में खड़ी भारतीय धर्म कि भव्य इमारत जिसमें ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग की दो प्रबल शाखाएं हैं । जो समानांतर रूप से बड़ी हैं . दोनों शाखाएं एक दूसरे के विरोधी ना होकर पूरक हैं ज्ञान मार्ग को हम तर्क और मीमांसा पर आधारित वह शाखा कह सकते हैं जिसने अधिक सूक्ष्म तत्वों का गहन विवेचन कर ,परमात्मा को पाने का आध्यात्मिक मार्ग दिया । हर प्रकार के पाखंड और दिखावे का न केवल बहिष्कार किया बल्कि उस पर हमलावर भी रहा । कबीर , तुकाराम ,रैदास इसके प्रतिनिधि हैं।
भक्ति मार्ग में भजन और सेवा का मंत्र देकर सामान्य आदमी जो कि मीमांसा का बोझिल बोझ नहीं उठा सकता था। के लिए पर सेवा और प्रभु भजन अहंकार मिटाने का साधन है ।उसके लिए भी धर्म का मार्ग प्रशस्त किया । साधारण भाषा में कहें व्यक्ति की उन्नति के मार्ग में उसके अहंकार का जो तत्व है वह ज्ञान मार्ग अथवा भक्ति मार्ग की उपासना से मिटाया जा सकता है । उसके बाद व्यक्ति जिस परम तत्व को प्राप्त करता है जिस सुख और शांति की अनुभूति उसे होती है ।
वैसा ही संतोष हर मनुष्य को प्रदान करना भी विज्ञान का लक्ष्य है ।लेकिन विज्ञान संतोष और शांति जैसे दो महत्वपूर्ण तत्व व्यक्ति को देने में असफल रहा है। इसी कारण आइंस्टाइन , जैसे महान वैज्ञानिक भी शांति की खोज में भारतीय आध्यात्म परंपरा में विश्वास रखने लगे । भारतीय धर्म और अध्यात्म की परंपरा का समृद्ध पक्ष यह है यह विरोध और अस्वीकार को भी समाहित करता है . इससे पहले #चार्वाक , फिर शंकराचार्य और #वीरशैवलिंगायत संप्रदाय का उपहार भारतीय धर्म की तर्क और खुले पन की परंपरा को दर्शाता है । जिसने धर्म के भीतर लिंग और जाति के अंतर को समाप्त किया । पाखंड को चोट करते हुए स्वयं कहा।
” व्रत और उपासना से क्या मिलता है क्या मिलता है देह सुखाने से ” भारतीय धर्म की दीर्घ जीविता का एक कारण उसके समय के साथ बदलने की सामर्थ्य ही है ।
धर्मानुरागियो का दोतरफा संघर्ष : इस दौर में कुतर्क और पाखंड का ज%