राजीव लोचन साह
देश के पाँच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें तीन प्रान्त, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी, दक्षिण में हैं तो पश्चिमी बंगाल और असम देश के पूर्व और पूर्वोत्तर में। मगर आश्चर्य की बात यह है कि अखबारों को देखें तो इन पाँच प्रदेशों में से सिर्फ प. बंगाल के ही चुनाव की चर्चा हो रही है। मानो अन्य प्रदेशों का कोई अस्तित्व ही न हो। कारण खोजने निकलें तो यही लगता है कि गोदी मीडिया प. बंगाल में किसी भी तरह से भारतीय जनता पार्टी को सत्तारूढ़ करना चाहता है। तमिलनाडु और केरल में भारतीय जनता पार्टी के लिये कोई उम्मीद नहीं है। वहाँ वह एक पिछलग्गू पार्टी के रूप में गठबंधनों में शामिल है, क्योंकि केन्द्र में सत्ताधारी और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है। पुडुचेरी में उसके लिये अवसर है, क्योंकि हाल ही में दलबदल करवा कर उसने वहाँ कांग्रेस सरकार को लंगड़ी दी है। ऐसा ही कुछ असम में भी है, जहाँ वह मौका होने के बावजूद बचाव की मुद्रा में है। नागरिकता संशोधन कानून, जिसे लाकर उसने पूरे देश में तूफान ला दिया था, का वह असम में जिक्र तक नहीं कर रही है। बचता है प. बंगाल, जहाँ 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने 42 में से 18 सीटें हासिल कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की थी। उस सफलता से उत्साहित होकर उसे लगता है कि वह वहाँ 10 साल से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को अपदस्थ कर उसका स्थान ले सकती है। इसीलिये 26 फरवरी को चुनाव की तिथियाँ घोषित होने से महीनों पहले ही अपना आक्रामक चुनावी अभियान शुरू कर दिया था। तृणमूल कांग्रेस के कुछ धुरंधर नेताओं को अपने पाले में खींचने से लेकर राष्ट्रवादी हिन्दुत्व को केन्द्रीय मुद्दा बना देने सहित सारे हथकण्डे भाजपा ने पिछले छः महीनों में बंगाल में आजमा लिये हैं। राजनीति में ऐसी महत्वाकांक्षा अस्वाभाविक नहीं है। मगर इस चुनाव का सबसे उल्लेखलीय पक्ष इसमें मीडिया का भाजपा का खुल्लमखुल्ला समर्थक बन जाना है और यही चिन्ता का सबब भी है।