संजीव भगत
कोरोना महामारी के लाकडाउन के बाद अब देश बेरोजगारी,भूख,मजदूरों के पलायन और अर्थव्यवस्था की महामारी से जूझ रहा है।
कोरोना महामारी से बढ़ते संक्रमण और मौत की खबरें धीरे-धीरे अखबार के पहले पन्ने में धुंधली हो गयी हैं। इस बीच सरकार की तरफ से एक और बुरी खबर आयी है कि अगले साल मार्च तक इस साल के बजट में स्वीकृत कोई भी नयी योजना शुरू नहीं की जायेगी । वर्ष 20-21 का बजट पूरी तरह नेस्तनाबूत हो चुका है।
माना जा रहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था के चक्रव्यूह में पूरी तरह फंस चुकी है। बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज निराशा पैदा कर रहा है। कोरोना महामारी से निबटने के लिए अधिकांश देशों ने लाकडाउन किया लेकिन भारत जैसा लाकडाउन अन्यत्र नहीं हुआ। यह लाकडाउन कोरोना से बचाव का कम, आत्मघाती ज्यादा साबित हुआ।
देश के अधिकांश लोग जो रोज कमा कर खाते हैं जिनकी बचत शून्य है वह सबसे ज्यादा प्रभावित है।इस तबके के पास पैसा नहीं है तो वह बाजार से विमुख है।बाजार में मांग न होने कारण वहाँ सन्नाटा है।
सबसे ज्यादा जरूरत लोगों के हाथ में काम और नगदी पहुंचाना है। नगदी तो थोड़ा ही बांटी जा सकती है ।सबसे बेहतर और अंतिम विकल्प लोगों को काम देना ही है।
मनरेगा के अलावा सरकार सब जगह पिछड़ती नजर आ रही है। इस समय सरकार ढेरों नयी विकास योजनायें शुरू करनी चाहिए थी जिससे लोगों को काम मिलता और उद्योगों का पहिया भी घूम जाता। पर लगता है, सरकार का खजाना खाली है तो इस तरह बातें बिलकुल नहीं ही रही इसके विपरीत वित मंत्रालय ने सभी नयी योजनायें स्थगित कर दी हैं।
अब कृषि क्षेत्र ही बचा है जो सरकार और देश के लिए तिनके का सहारा है। रवी की फसल बंपर है और अच्छे मानसून की उम्मीद से खरीफ की फसल भी बंपर रहने की उम्मीद है। इस साल गाँव में अधिक श्रम उपलब्ध होने से खेती का रकबा बढने की भी उम्मीद है ।
अब तुरंत खरीफ की फसल के लिए मजदूरों की मांग बढ़ रही है। पंजाब कृषि मजदूरों के लिए फड़फड़ा रहा है ।उसने मजदूरों को बुलाना शुरू कर दिया है प्रतीकात्मक रूप में दो-तीन गाड़ी मजदूर वापस आ चुके हैं। खेती के लिए मजदूरों का ज्यादा इंतजार नहीं किया जा सकता ।
अगर किसान के पास पैसा आयेगा तो तुरंत बाजार में पहुचेंगा । ऐसा हमेशा ही होता रहा है । देश में किसान, मानसून और बाजार का त्रिकोण है।
बाजार में असुरक्षा का माहौल है और असुरक्षा के चलते लोग पैसा खर्च करने से डर रहे हैं ।इस महामारी के डर ने मांग को शून्य कर दिया है । खाने पीने के सामान व दवा के अलावा बाजार में कुछ नहीं बिक रहा ।
यह एक मौका है गाँव की तस्वीरे बदलने का । मनरेगा से गाँव को बेहतर बनाया जा सकता है । गाँव में कुछ सुविधायें पहले से बेहतर होंगी। सरकार को मनरेगा का बजट और बढ़ाना ही होगा, कोई विकल्प नहीं है।
सरकार को अपने खजाने की चिन्ता है फिलहाल तो इसके भरने की कोई उम्मीद नहीं है। वो खर्च कम करने पर ही अटक गयी है।
सरकार एक काम जो तुरन्त कर सकती है कि सभी किसानों के गन्ना, गेहूं, चना आदि के बकाया का भुगतान कर दे इसके अलावा सरकारी ठेकेदारों और जो भी सरकारी बकाया,आयकर रिफण्ड के भुगतान हैं उनका निबटारा कर दे तो कुछ पैसा तो बाजार में आ ही जायेगा।
उद्योगों को पूरी तरह से चल पाना तब तक नामुमकिन है जब तक लाकडाउन पूरी तरह से खत्म नहीं ही जाता । साथ ही जब कोरोना का भय लोगों के मन से निकलेगा तब वे बाजार की ओर रूख करेंगे, जब बाजार में रौनक लौटेगी तो उद्योग की चक्का चलेगा।
ढेर सारे टैक्स के फायदे से उद्योगों को जिन्दा तो रखा जा सकता है लेकिन उन्हें दौड़ाता नही जा सकता । उद्योग को आक्सीजन तो बाजार से ही मिलेगी टैक्स छूट से नहीं। ऐसे हालात में कई छोटे उद्योग पूरी तरह बंद हो गये है उनके लिए टैक्स छूट के कोई मायने नहीं हैं।
अप्रैल और मई में जब अधिकांश बाजार ठप्प है तो जीएसटी कलैक्शन 10-15%प्रतिशत रहने की उम्मीद है। जब व्यापारी व्यापार ही नहीं करेगा तो न जीएसटी देगा न आयकर ।
सरकार के पास बहुत से ऐसे फण्ड हैं जो बरसों से उपयोग नहीं हो रहे । हजारों करोड़ तो सासंद निधि के ही बचे हैं। कहीं पर्यावरण के बचे हैं तो कहीं श्रम विभाग का सैस बचा है । इस तरह के पैसों की खोज की जानी चाहिए और इन्हें उपयोग में लाया जाना चाहिए।
प्रपंचों से सरकार बनायी तो जा सकती है लेकिन लम्बे समय तक चलायी नहीं जा सकती ।
अर्थव्यवस्था को पहला झटका नोटबंदी से लगा दूसरा झटका जीएसटी ने दिया अब कोरोना लाकडाउन से तबाही सामने आ गयी है । इस बार के घाव नासूर भी बन सकते हैं। ये तीनो आत्मघाती फैसले अहंकारी मोदी सरकार ने बिना किसी को विश्वास में लिए ,स्वयं लिए हैं।
कई उद्योगों के अगले एक साल तक चालू होने की उम्मीद नहीं हैं। इसमें पर्यटन उद्योग सबसे ऊपर है । और यह देश दुनिया में रोजगार उपलब्ध कराने चौथा सबसे बड़ा स्रोत है।
अभी और भयावह दिन आने बाकी हैं।