समाचार की टीम
विगत वर्ष 7 फ़रवरी 2021को चमोली ज़िले में आई आपदा पर किया गया शोध, एक विश्वविख्यात जर्नल ’साइंस’ में प्रकाशित हुआ था। ’नैनीताल समाचार’ ने इस शोध की विस्तृत जानकारी प्रकाशित की थी और अब पिछले महीने, इस शोधपत्र (’ए मैसिव रॉक एंड आइस एवलांच कॉज़्ड द 2021 डिज़ास्टर एट चमोली, इंडियन हिमालय’) को ’अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ ज्योग्रैफ़र्स’ के ’जियोमोरफ़ोलॉजी स्पेशलिटी ग्रुप’ की ओर से विश्वप्रसिद्ध ’2022 ग्रोव कार्ल गिल्बर्ट अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया है। शोध टीम के मुखिया डैन शूगर ने इस सम्मान के लिए धन्यवाद प्रेषित किया है । इस अवार्ड की विशेषता यह है कि इस सम्मान को पाने के लिए शोध पत्र को नामांकित नहीं करवाना पड़ता है बल्कि ’अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ ज्योग्रैफ़र्स’ इसे स्वयं तय करता है। यह सम्मान निःस्वार्थ भाव से किये गए भूगर्भीय शोधों को हर वर्ष दिया जाता है।
चमोली जिले के रैणी और तपोवन में आई इस आपदा में 204 लोगों की मृत्यु हो गई थी और दो जल विद्युत परियोजनाएं तहस-नहस हो गईं, जिससे 2,230 लाख अमेरिकी डालर के बराबर मूल्य का आर्थिक नुकसान हुआ। इस आपदा की पड़ताल करता यह शोधपत्र, जिसका शीर्षक ‘ए मैसिव रॉक एंड आइस एवलांच कॉज्ड द 2021 डिजास्टर एट चमोली, उत्तराखण्ड हिमालय’ है, 53 शोधकर्ताओं द्वारा लिखा गया है। ये शोधकर्ता विश्व के विभिन्न देशों, यथा भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, रूस आदि से हैं। इन विशेषज्ञों में हाइड्रोलॉजिस्ट, ग्लेशियोलॉजिस्ट, मौसम विशेषज्ञ, आपदा विशेषज्ञ, जल नीति शोधकर्ता आदि शामिल हैं। इस टीम में नैनीताल (उत्तराखण्ड) की कविता उपाध्याय भी शामिल रहीं । जल विशेषज्ञ कविता का स्थान 53 विशेषज्ञों की टीम में पाँचवां है, जिन्होंने अपना शोध कार्य ’आक्सफोड विश्वविद्यालय में किया है।
इन विशेषज्ञों का मानना है कि यह दुर्घटना 6,063 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रोंटी पीक से एक बर्फ और चट्टान का अंश टूटने से घटी, जिसके फलस्वरूप बाढ़ आई। गौर करने वाली बात है कि टूटे हुए अंश में बर्फ केवल 20 प्रतिशत थी। शेष 80 प्रतिशत अंश चट्टान का था। चट्टान के गिरने के उपरान्त इससे उत्पन्न मलवे ने विशाल आकार ग्रहण कर लिया। इसकी विशालता का शब्दों में वर्णन करना तो बहुत मुश्किल है, परन्तु जान-माल के नुकसान को देखते हुए इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बाढ़ में दो जलविद्युत परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हुईं, पहली, 13.2 मेगावॉट की ऋषिगंगा परियोजना और दूसरी 520 मेगावॉट की तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना। बाढ़ का पानी 25 मीटर प्रति सेकेंड की गति से रैणी में ऋषिगंगा परियोजना को ध्वस्त करता हुआ तपोवन परियोजना तक जा पहुँचा। इस परियोजना को ध्वस्त करने के बाद भी इसकी गति 16 मीटर प्रति सेकेंड थी। इस दुर्घटना में मृत 204 व्यक्तियों में से 190 जल विद्युत परियोजनाओं में कार्यरत थे। दुर्घटना से पूर्व खतरे की कोई चेतावनी नहीं दी जा सकी, क्योंकि ऐसी कोई व्यवस्था इन परियोजनाओं के पास थी ही नहीं, जिससे अकारण ये 190 व्यक्ति अपनी जान गँवा बैठे।
चमोली में क्यों आई थी बाढ़?
इस आपदा के उपरान्त ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि हिमनद से बनी झील के टूटने से बाढ़ आई। शोधकर्ताओ ने इसे गलत बताया। उनका कहना है कि तापमान बढ़ने से हिमालय में चट्टानें गिरने की दर पहले की अपेक्षा काफी बढ़ी है, परन्तु इस एक आपदा का ग्लोबल वार्मिंग से कोई सीधा वास्ता नहीं है। उपग्रह से प्राप्त चित्र बताते हैं कि इस दुर्घटना का कारण बनी चट्टान वर्ष 2016 से लगातार खिसक रही थी।
शोध पत्र की विशेष बात यह है कि इसने हिमालय में जल विद्युत परियोजनाओं की मौजूदगी पर खुल कर प्रश्नचिन्ह लगाया है। जबकि अधिकांश वैज्ञानिक शोध पत्र इस तरह के विवाद में पड़ने से बचने की कोशिश करते हैं। शोध में कहा गया है कि इससे पूर्व वर्ष 2012, 2013 और 2016 में आई बाढ़ों में भी ये दो जल विद्युत परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हुई थीं। इसके बावजूद इन जल विद्युत परियोजनाओं को न तो रोका गया और न ही इनका ठीक ढंग से मूल्यांकन किया गया। यहां तक कि हिमालय के इतने संवेदनशील क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन होने के बावजूद कोई भी चेतावनी प्रणाली वहां नहीं लगाई गई। शोध पत्र में कहा गया है कि चमोली की आपदा इस बात को रेखांकित करती है कि संवेदनशील हिमालय में खड़े किये जा रहे विशाल महंगे ढांचों से उत्पन्न खतरों को सही मायनों में आंकना आवश्यक है, ताकि विकास के नाम पर हिमालयी क्षेत्रों का विनाश न हो।
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