विवेकानंद माथने
सरकार और कारपोरेट मीडिया भलेही डंका पिटता रहे कि 2023-24 का बजट गांव, गरीब, किसान के लिये है। लेकिन बजट आवंटन के आंकडों से दिखाई देता है कि सरकार देश को गुमराह कर रही है। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और लोक कल्याणकारी योजनाओं का बजट घटाया गया है। सरकार की नीति कारपोरेट परस्त और कृषि, किसान, मजदूर, गांव, गरीब विरोधी दिखाई देती है। इससे गांव, गरीब, किसान, मजदूरों के बुरे दिन जारी रहेंगे।
किसान आंदोलन की दो प्रमुख मांगे रही है। इस बजट में एमएसपी गारंटी कानून के लिये ना कोई व्यवस्था बनाई गई और नाही उसके लिये बजट में कोई विशेष प्रावधान किया गया। तीन कानून भलेही रद्द किये गये हो लेकिन कपास खेती में पीपीपी मॉडल, कृषि स्टार्ट अप और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्टक्चर के लिये प्रावधान स्पष्ट करता है कि सरकार खेती को कंपनियों के हवाले करने के लिये आज भी काम कर रही है।
लगता है कंपनियों के निर्देश पर बजट से पहले ही निर्धारित किया था कि लग्जरी उत्पाद, रिअल इस्टेट आदि की खपत बढाने के लिये 20 प्रतिशत लोगों के हाथ में पैसा दिया जाये। इस बजट में किसान, कृषि, गांव, गरीब, मजदूर के बजट को कम करके कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये उच्च आय वर्ग को पैसा दिया गया है।
भारत का 2023-24 का बजट अनुमान 45.03 लाख करोड रुपये है, जो 2022-23 के बजट से 12.4 प्रतिशत अधिक है। लेकिन जहां कृषि पर देश की 60 प्रतिशत आबादी निर्भर है, उस कृषि विभाग का बजट कुल बजट का मात्र 2.56 प्रतिशत है। उसमें भी यह बजट पिछले साल के बजट अनुमान से 8471 करोड रुपये याने 6.83 प्रतिशत घटाकर केवल 1.15 लाख करोड रुपये रखा गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना, मनरेगा, राष्ट्रीय शिक्षा मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, एलपीजी सब्सिडी आदि लोक कल्याण के लिये उपयोगी योजनाओं का बजट घटाया गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का बजट 68000 करोड रु. से घटाकर 60000 करोड रु. किया गया।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट 15500 करोड रु. से घटाकर 13625 करोड रु. किया गया।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का बजट 12954 करोड रु. से घटाकर 10787 करोड रु. किया गया।
आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना का बजट 6400 करोड रु. से घटाकर 2273 करोड रु. किया गया।
मनरेगा का बजट 73000 करोड रु. से घटाकर 60 हजार करोड रु. किया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा मिशन 39553 करोड रु. से घटाकर 38953 करोड रु. किया गया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन 37160 करोड रु. से घटाकर 36785 करोड रु. किया गया।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना 10000 करोड रु. से घटाकर 3365 करोड रु. किया गया।
एलपीजी सब्सिडी 5812 करोड रु. से घटाकर 2257 करोड रु. की गई।
यूरीया सब्सिडी 63222 करोड रु. से बढाकर 131100 करोड रु. की गई। लेकिन उसका लाभ किसानों को कम उत्पादक इंडस्ट्रीज को ज्यादा है।
सरकार देश के 11.4 करोड किसानों को साल में 6 हजार याने प्रतिमाह 500 रुपयें दे रही है। लेकिन कृषि लागत खर्च में दोगुने से अधिक बढोत्तरी होने से सरकारी मदद से अधिक रकम किसानों से वसूली जाती है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हरसाल लगभग 80 प्रतिशत किसानों पर बीमा हप्ते का बोज पडता है। किसानों को उससे कोई लाभ नही मिलता बल्कि किसानों के हिस्से का पैसा बीमा कंपनियां लूट लेती है।
सरकार की रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति आय 1.97 लाख रुपये हुई है। लेकिन प्रति व्यक्ति आय बढने से यह सिद्ध नही होता कि उससे देश के आम लोगों की आय में बढोत्तरी हुई है। प्रति व्यक्ति आय में बढोतरी भारत में अरबपतियों की संख्या बढने और उच्च आय वर्ग की आय बढने का परिणाम है। देश में अरबपतियों की संख्या और संपत्ति तेजी से बढ रही है। लेकिन आम आदमी की जीवन में कोई परिवर्तन नही आया है। अगर आय बढती तो कोरोना काल में 80 करोड लोगों को 28 महिने मुफ्त अनाज देने और अब एक साल के लिये बढाने की जरुरत ही नही पडती।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अमीर गरीब की खाई बढ रही है। भारत के 1 प्रतिशत सबसे अमीरों के पास कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा है। वही निचे के 50 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का सिर्फ तीन प्रतिशत हिस्सा है। भारत में 2022 में अमीरों की संख्या बढकर 166 हो गई। उनसे टैक्स वसूल कर गरीबों को मदद की जा सकती थी। लेकिन 2020-21 में निचले तबके के 50 प्रतिशत गरीबों से 64 प्रतिशत जीएसटी वसुला गया है। अर्थात जीएसटी में सबसे बडी भागीदारी आम लोगों की है।
अंग्रेजों द्वारा बनाया गये इन्फ्रास्ट्रक्चर से भलेही कुछ सुविधाऐं मिली है लेकिन उसका मुल उद्देश भारत की लूट करना ही था। उसी प्रकार कारपोरेटी राज में लूट को स्थाई बनाने के लिये इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा रहा है। कारपोरेट लूट के लिये लोक कल्याण की योजनाओं के बजट में कटौती करके और कर्ज और टैक्स से प्राप्त बजट से सरकार कारपोरेट कंपनियों के लिये कृषि, सडक, पोर्ट, एअर पोर्ट आदि क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रही है।
अंग्रेजों की गुलामी की दौर में भी लूट के लिये बनाया गये इंफ्रास्ट्रक्चर को विकास माननेवालों की कमी नही थी। आज भी कारपोरेट्स को स्थाई लूट के लिये बनाये जा रहे इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाओं को विकास माननेवालों की संख्या कम नही है।
हम कारपोरेट राज में जी रहे है। आम आदमी को लूटकर उसे कारपोरेट कंपनियों को सौपने का काम इस बजट में भी जारी रहा है। इसी का परिणाम है की आज आर्थिक विषमता लगातार बढती जा रही है और दूसरी तरफ गरीब गरीब होते जा रहा है।