प्रमोद साह
विश्व भूख सूचकांक में शामिल 117 देशों में इस वर्ष 30.3 अंक के साथ हमारा स्थान 102 है . यह बात एक राष्ट्र के रूप में हमें तिलमिलाने के लिए काफी है । बात तब और चिंताजनक हो जाती है ,जब जिन देशों को हम हिकारत की नजर से देखते हैं वह भूख से लड़ने के मामले में हम से बेहतर साबित हो जाते हैं. तमाम आंतरिक संघर्षों के बाद श्रीलंका इस सूची में 66 वें स्थान पर है ,नैपाल 73वे ,बंग्लादेश 88 वे तथा पाकिस्तान 94वे स्थान पर ।विश्व भूख सूचकांक में सबसे बेहतर प्रदर्शन बेलारूस का तो सबसे खराब अफ्रीकन रिपब्लिक का है जो 117 स्थान पर है। जिस तेजी से नेपाल और बांग्लादेश ने भूख के खिलाफ लड़ाई लड़ कर अपनी स्थिति में सुधार किया ,उससे विश्व समुदाय ने उनकी तारीफ की है !
भारत के लिए यह गिरता हुआ सूचकांक तब और चिंताजनक हो जाता है जबकि भारत के पास दुनिया का नंबर दो स्थान का बडा खाद्य भंडारण हो, हम से अधिक खाद्य भंडार सिर्फ चीन के पास है. खाद्य भंडारण में हमारी स्थिति इतनी सर प्लस हो रही है कि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को विदेश मंत्रालय को पत्र लिखना पड़ रहा है कि वह दुनिया के देशों को भारत से अनाज अनुदान के रूप में दे सकता है । एक और भूख से लड़ते भारतीय दूसरी ओर सड़ते हुए अनाज भंडार जिन के रखरखाव पर एफसीआई 750 अरब रुपए प्रति वर्ष खराब कर खर्च करता है जो कि हमारी जीडीपी का 1% हो जाती है ।
भारत में 1940 की अकाल के बाद सबसे पहले बंगाल से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रारंभ हुआ जिसे आजादी के बाद के एम मुंशी ने दुनिया की बेहतर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करा दिया जहां सरकार द्वारा गरीब को रियायती दरों पर अनाज और ईंधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर दी लेकिन वक्त के साथ यह प्रणाली भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने लगी 2013 में ऑपरेशन ब्लैक स्टिंग में यह बात साबित हुई कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लगभग 50% राशन ब्लैक मार्केट में चला जाता है भ्रष्टाचार के इस भय से हमने अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर कर दिया है अब सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से प्रतिमाह एक यूनिट पर 1 किलो राशन दिया जा रहा है जो एक व्यक्ति की आवश्यकता का 1 /12 भाग है . एक औसत गरीब परिवार में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत 12 किलोग्राम प्रति माह आंकी गई है ।
विश्व भूख सूचकांक में भारत के लगातार पिछड़ में का एक कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कमजोर हो जाना भी है ,हम अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को जिसके कि देश में पहले से ही 500000 दुकानों की श्रंखला है को सिर्फ भ्रष्टाचार के आधार पर कमजोर नहीं करना चाहिए बल्कि भ्रष्टाचार से निपटने का मजबूत तंत्र विकसित करते हुए सर प्लस हो रहे अनाज गोदामों का आना आज जरूरतमंद गरीबों की चौखट तक पहुंचाना चाहिए , और भूख से लड़ाई में कई सार्वजनिक इकाइयां शामिल है उनकी भी सरकार को राशन देकर मदद करनी चाहिए । सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना जैसे राज्यों में लिकेज 10 % तक पहुंच काफी कम हुआ है उन व्यवस्थाओं से सीख कर पुन: सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किए जाने की दरकार है ।