राजीव लोचन साह
6 फरवरी को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में चल रहे ‘भारत जोड़ो अभियान’ के सम्मेलन में थोड़े समय के लिये आये राहुल गांधी एकदम अलहदा व्यक्ति थे- अपने व्यक्तित्व में भी और वक्तव्य में भी। हम अभिजात वर्ग से आये किसी व्यक्ति को दो तरह से देखते हैं, या तो उसकी चरण वन्दना करने में जुट जाते हैं या फिर उसे राहुल गांधी की तर्ज पर ‘पप्पू’ सिद्ध करने में। यह भूल जाते हैं कि संवेदना किसी की बपौती नहीं होती। नाज-नखरों में पला राजसी खानदान में पैदा व्यक्ति भी अतिशय संवेदना सम्पन्न हो सकता है और जीवन में अतीव संघर्ष कर शक्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी क्रूर और संवेदनाशून्य हो सकता है। लगभग पाँच महीने में चार हजार किमी. की पैदल यात्रा में तपे राहुल गांधी उस रोज धैर्य, संवेदना और सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति लग रहे थे। वे तार्किक और तथ्यसम्मत थे, मगर अपने आलोचकों के प्रति कटु कतई नहीं थे।
उस रोज उन्होंने बहुत सी ऐसी बातें कहीं, जो हृदय को छू जाने वाली थीं। मसलन गैंगरेप पीड़ित महिलाओं का उनके साथ चुपचाप अपनी पीड़ा बाँट जाना, मसलन कश्मीरियों का यह कहना कि बाकी भारत के लोग उनसे नफरत क्यों करते हैं। एक अजीब सी जो बात उन्होंने कही, उस पर लोगों का ध्यान कम गया होगा। उन्होंने कहा कि उनका डेढ़ कदम कांग्रेस के भीतर है और आधा कदम कांग्रेस से बाहर।
यह आधा कदम ही उन्हें कांग्रेस में रहते हुए भी कांग्रेस से अलग करता है। वरना कांग्रेस है क्या ? ऊपरी स्तर पर आपस में लड़ते हुए भ्रष्ट व महत्वाकांक्षी लोगों का एक गिरोह और निचले स्तर पर राजनीति को ठेकेदारी या अन्य मलाईदार धन्धों का शॉर्टकट समझने वालों की एक जमात! आम जनता के साथ उसका कोई तालमेल नहीं है। जनता के वास्तविक और स्थानीय मुद्दों से उसका कोई सरोकार नहीं है। चुनाव की राजनीति करने वाले सभी दलों का एक ही चरित्र है और कांग्रेस उससे कतई जुदा नहीं है। कहा जाये तो कांग्रेस और भाजपा में कोई विशेष अन्तर नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार के मामले में दोनों एक जैसे हैं। कहने को भाजपा अंध राष्ट्रवाद वाली पार्टी है और कांग्रेस धर्म निरपेक्ष। मगर यदि सचमुच ऐसा है तो क्यों इन दो दलों में लोग इतने सहज ढंग से एक दूसरे में आना-जाना करते रहते हैं ? क्या आजादी के आन्दोलन की विरासत सम्हालने का दावा करने वाली कांग्रेस से अंध राष्ट्रवाद वाली भाजपा में जाने वालों को जरा भी अटपटा नहीं लगता ? इसके उलट भी कहा जा सकता है कि भाजपा से कैसे लोग इतने आराम से कांग्रेस में आ सकते हैं ? राहुल गांधी को भी उनके सलाहकारों ने इसी दिशा में धकेला था। वे जनेऊ पहन कर मन्दिरों में जाने लगे थे। अच्छा हुआ कि उन्हें सद्बुद्धि आयी। वे पिछले कुछ सालों में काफी समझदार हो गये हैं। खास कर इस भारत जोड़ो यात्रा के बाद से। मगर वे डेढ़ कदम भी कांग्रेसी हैं तो दशकों तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस के दुष्कर्मों की जिम्मेदारी भी तो उन्हें लेनी पड़ेगी। और घाघ कांग्रेसियों को कैसे वे रातोंरात ईमानदार और अनुशासित बना देंगे ?
बहरहाल, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान और बाद में हुए मंथन के बाद ‘भारत जोड़ो अभियान’ एक अच्छी शुरूआत है। भारत का ताना-बाना, जो पिछले लगभग दस साल में बुरी तरह छिन्न-भिन्न हुआ है, धर्म निरपेक्षता, जातीय समानता, विकेन्द्रित लोकतंत्र और कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की जिस तरह चिन्दियाँ उड़ी हैं, उससे लाखों लोग चिन्तित और बेचैन हैं। मगर वे बिखरे हुए हैं। कहीं संगठित भी हैं तो बहुत छोटे-छोटे समूहों में और एक सकारात्मक बदलाव कर पाने की स्थिति में कहीं नहीं हैं। छिटपुट प्रतिरोध पूरे देश में मौजूद है, मगर मीडिया के निकम्मेपन से एक जगह चल रहे आन्दोलन के बारे में दूसरी जगह के आन्दोलनकारियों को पता भी नहीं है।
भारत जोड़ो अभियान ने इन चुनौतियों से लड़ने के लिये एक अखिल भारतीय मंच उपलब्ध कराया है। इस अभियान को सात साल तक चलाने की रणनीति बनायी गई है, मगर पहला लक्ष्य वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव रखा गया है। यह तय है कि मौजूदा सरकार तीसरी बार भी सत्ता में आयी तो संविधान के रास्ते पर लौटने का मौका पूरी तरह खत्म हो जायेगा। अतः संविधान में आस्था रखने वाले हर राजनैतिक दल के साथ सहकार करने और उन्हें प्रेरित कर एकजुट करने का निर्णय लिया गया है। मगर यह अभियान किसी राजनैतिक दल का पिछलग्गू नहीं होगा। यह देश के सभी स्वतंत्रचेता, ईमानदार नागरिकों को मंच होगा। अभियान को चलाने के लिये अनन्तिम समितियों का गठन कर लिया गया है।