डॉ. गिरीश नेगी
भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी विद्युत ऊर्जा उपभोक्ता वाला देश है, जो भारत की 2015 के ऊर्जा सांख्यिकी के अनुसार दुनिया की कुल वार्षिक ऊर्जा खपत का लगभग 4.4 प्रतिशत है। भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आकङों के अनुसार, विश्व में प्रति व्यक्ति 2873 किलोवाट घण्टे विद्युत ऊर्जा खपत की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत अभी भी बहुत कम (1010 किलोवाट घण्टे) है, और इस विद्युत खपत को सामाजिक- आर्थिक विकास के लिए बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत वर्तमान में अपने सकल बिजली उत्पादन का लगभग 63 प्रतिशत तापीय ऊर्जा प्लांटों से और लगभग 24 प्रतिशत जल-विद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न करता है। ये जल-विद्युत परियोजनायें मुख्य रूप से भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित हैं।
उत्तराखंड राज्य में मौजूद, ग्लेशियर एवं बर्फानी नदियों से लगभग 20,000 मेगावाट जल-विद्युत क्षमता उत्पन्न होने का अनुमान है, हालांकि इस क्षमता का लगभग 4,000 मेगावाट ही अब तक विकसित कर उपयोग में लाया जा सका है। अतः इन नदियों की एक बड़ी ऊर्जा क्षमता को अभी भी उपयोग में लाना बाकी है। उत्तराखण्ड में वर्तमान में, 25 ज.वि.प. (6 मध्यम एवं 19 लघु) 2378 मेगावाट क्षमता के साथ निर्माणाधीन चरण में हैं तथा 21,213 मेगावाट क्षमता वाली 197 ज.वि.प. उत्तराखंड के विभिन्न नदी घाटियों में प्रस्तावित हैं। इस क्षेत्र के संवेदनशील पर्यावरणीय परिवेश को संरक्षित करने हेतु इन नदी घाटी परियोजनाओं में से उत्तरकाशी जिले में धरॉसू से गंगोत्री के बीच संपूर्ण भागीरथी नदी के जलग्रहण क्षेत्र को पर्यावरण मन्त्रालय, भारत सरकार द्वारा राजपत्र अधिसूचना संख्या 2429 दिनांक 18 दिसंबर 2012 के अर्न्तगत पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया। प्रस्तुत अध्ययन उत्तराखंड की भागीरथी नदी में निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित तीन ज.वि.प. क्रमशः लोहारीनाग पाला (600 मेगावाट निर्माणाधीन), मनेरी भाली फेज-एक (90 मेगावाट) एवं मनेरी भाली फेज-दो (304 मेगावाट) दोनों विद्युत उत्पादन कर रही ज.वि.प. में से प्रथम निर्माणाधीन ज.वि.प. को माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश द्वारा रोकने के एक वर्ष बाद सकारात्मक एवं नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का 140 परियोजनों प्रभावित परिवारों की धारणा पर आधारित है।
भागीरथी नदी गंगोत्री ग्लेशियर के गौमुख (ऊंचाई 3,892 मीटर) से निकलती है एवं कई सहायक नदियों के जल प्रवाह को समेटे हुए टिहरी जिले के देवप्रयाग में एक प्रमुख हिमानी नदी (अलकनंदा नदी) के साथ मिलकर आगे गंगा नदी कहलाती है। गंगा नदी के आध्यात्मिक और पारिस्थितिकीय महत्व को स्वीकार करते हुए, इसे वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था। इस नदी पर बाँध और नहर बनाकर ज.वि.प. हेतु जल के प्राकृतिक बहाव को रोकने पर पर्यावरणविदों एवं स्थानीय लोगों की गहरी सामाजिक-सांस्कृतिक एवं धार्मिक लोकाचार में बाधा के रूप में देखा जा रहा है।
लेखक कीं टीम द्वारा उपरोक्त तीन ज.वि.प के पर्यावरणीय एवं सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर लोगों की धारणा को समझने के लिए परियोजना प्रभावित गांवों के परिवारों में गहन साक्षात्कार एवं फोकस समूह चर्चा (एफजीडी) सहित अन्य अनुसंधान विधियां प्रयुक्त की गईं जिसमें ज.वि.प के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में चिंताओं और धारणाओं पर आधारित 33 प्रभावों (नकारात्मक/सकारात्मक) की एक चेकलिस्ट तैयार की गई, जिनमेंः (1) जैव विविधता प्रभाव (8 बिन्दु), (2) पर्यावरणीय प्रभाव (12 बिन्दु ं), (3) सामाजिक-आर्थिक प्रभाव (8 बिन्दुं) एवं (4) सांस्कृतिक प्रभाव (5 बिन्दु) शामिल थे। हमारी परियोजना टीम ने उपरोक्त तीन ज.वि.प. के विभिन्न ग्रामों में 140 परियोजना-प्रभावित लोगों के बीच इस चेकलिस्ट को लेकर व्यक्तिगत संवाद किया। इसके अतिरिक्त इन ज.वि.प के स्थानीय कार्यालयों में दस्तावेजों का अध्ययन एवं उपलब्ध ज.वि.प. कर्मियों से भी साक्षात्कार किया। अतः व्यक्तिगत साक्षात्कार पर आधारित उत्तरदाताओं द्वारा बताऐ गए इन प्रभावों की (सूची “सकारात्मक“/“नकारात्मक“ प्रभाव/कोई प्रभाव नहीं/ पता नहीं) चार श्रेणियों में संकलित की गई। इसके अलावा, उपरोक्त सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का ज.वि.प से सम्बन्ध होने पर उत्तरदाताओं की प्रतिक्रिया “हाँ“ या “नहीं“ में दर्ज की गई एवं पूर्वाग्रह को कम करने के लिए तीन ज.वि.प में से दो हाँ या नहीं को “निर्णायक“ माना गया।
मनेरी भाली स्टेज-एक ज.वि.प में वर्ष 1984 में विद्युत उत्पादन शुरू हो गया था। इस जल विद्युत परियोजना के अंतर्गत (आंशिक/पूर्णतया) परियोजना-प्रभावित गांवों (जामक, हीना, सिरोर एवं मनेरी) के 38 परियोजना-प्रभावित परिवारों के 55-73 प्रतिशत उत्तरदाताओं की धारणा थी कि वन्य आवास विखंडन (73 प्रतिशत), चारागाह (68 प्रतिशत), वनस्पतियां एवं वन्य जीवों की आबादी (55 प्रतिशत) ज.वि.प से प्रभावित नहीं हुए हैं। क्योंकि यह परियोजना आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व बनी थी अतः वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार इस ज.वि.प के निर्माण चरण के दौरान वनस्पतियों में कुछ नुकसान देखा गया जो कि अब स्थिर है, अपितु ज.वि.प अधिकारियों द्वारा किये गये वृक्षारोपण के कारण भी वनस्पतियों में वृद्धि हुई। पुनः 42-55 प्रतिशत लोगों की धारणा थी कि ज.वि.प के कर्मचारियों द्वारा दूध और सब्जियों की अधिक मांग के कारण विशेष रूप से पशुधन एवं कृषि कार्य में वृद्धि हुई। परियोजना-प्रभावित लोगों के आधे से अधिक (52 प्रतिशत) ने ज.वि.प बॉध के कारण मछलियों की विविधता में भी वृद्धि की बात कही। शत-प्रतिशत ग्रांमीणों के अनुसार विशेष रूप से सर्दियों के दौरान नदी के प्रवाह में कमी के कारण नदी तट की ओर बढ़ती हुई मानव गतिविधियों को मुख्य नकारात्मक प्रभावों में माना गया। ज.वि.प. में कार्यरत बाह्य लोगों के आने से चोरी की घटनाओं एवं सांस्कृतिक संक्रमण जैसी सामाजिक बुराइयों में वृद्धि को भी नकारात्मक प्रभावों के संदर्भ में 71 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा महसूस किया गया। अन्य नकारात्मक प्रभावों में 60-95 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा भागीरथी घाटी में वर्षा (82 प्रतिशत) एवं प्राकृतिक सौंदर्य (74 प्रतिशत) में कमी तथा तापमान (95 प्रतिशत), जल प्रदूषण (76 प्रतिशत) एवं वायु प्रदूषण (60 प्रतिशत) में वृद्धि के रूप में इंगित की गई। फोकल समूह चर्चा से ज्ञात हुआ कि ज.वि.प का निर्माण चरण समाप्त होने के बाद, वायु और ध्वनि प्रदूषण निर्णायक रूप से कम हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि परियोजना-प्रभावित लोगों द्वारा ज.वि.प का कोई भी ठोस नकारात्मक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव महसूस नहीं किया गया। इसके बजाय, 79-82 प्रतिशत लोगों ने ज.वि.प और उससे संबंधित गतिविधियों के कारण सार्वजनिक सुविधाओं में वृद्धि (84 प्रतिशत), पर्यटन (82 प्रतिशत) और जीवन स्तर में सुधार (79 प्रतिशत) जैसे सकारात्मक प्रभाव का पक्ष लिया। हमने देखा कि इस ज.वि.प का गाद निष्कासन स्थल स्थानीय लोगों के लिए एक पर्यटन स्थल बन गया है जहाँ पर स्थानीय बेरोजगार युवाओं द्वारा दो दुकानें खोली गई हैं। ज.वि.प. के उल्लेखनीय सकारात्मक सांस्कृतिक प्रभावों में 79-95 प्रतिशत लोगों द्वारा पर्यावरणीय जागरूकता (95 प्रतिशत) एवं धार्मिक त्योहारों (79ः) में वृद्धि महसूस की गई।
मनेरी भाली स्टेज- दो ज.वि.प से वर्ष 1984 में विद्युत उत्पादन शुरू हो गया था। इस जल विद्युत परियोजना के अंतर्गत (आंशिक/पूर्णतया) परियोजना-प्रभावित छह गांवों (पुजार, गुयाना, ढुंगी, सिंगुडी, कुरीगाड और दयाली) के 59 परिवारों के 49-83 प्रतिशत उत्तरदाताओं की धारणा के अनुसार जैव विविधता पर उल्लेखनीय नकारात्मक प्रभावों में पहाड़ी ढलानों पर ज.वि.प. हेतु सम्पर्क मार्ग निर्माण से उत्पन्न मलवे के पर्वतों के ढाल पर निस्तारण के कारण वनस्पतियों/जीवों (83 प्रतिशत), कृषि (83 प्रतिशत), चारागाह भूमि (77 प्रतिशत), वन्यजीव आबादी में कमी (56 प्रतिशत), प्राकृतिक आवास के विखंडन (48 प्रतिशत) एवं खरपतवारों में वृद्धि (49 प्रतिशत) को माना गया। इन लोगों में से 22-37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने एमबी-दो ज.वि.प. के जलाशय के आसपास नए पक्षियों की उपस्थिति (22 प्रतिशत) और मत्स्य विविधता (37 प्रतिशत) में वृद्धि को सकारात्मक प्रभाव के रूप में स्वीकार किया। हालांकि, 39 प्रतिशत परियोजना-प्रभावित लोगों ने कहा कि नदी के प्रवाह में गिरावट से मछली पकड़ने के अवसरों में वृद्धि के कारण मछलियों की प्रजातियॉ घट रही हैं। इनके द्वारा इंगित प्रमुख नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में, जल प्रदूषण (100 प्रतिशत), भागीरथी नदी के जल प्रवाह में कमी (90 प्रतिशत), नदी घाटी की सुन्दरता में कमी (90 प्रतिशत), वर्षा की मात्रा में कमी (83 प्रतिशत) एवं वायु प्रदूषण (85 प्रतिशत), ध्वनि प्रदूषण (81 प्रतिशत), वायु तापमान (78 प्रतिशत), नदी किनारों के मृदा अपरदन (68 प्रतिशत), भूस्खलन (63 प्रतिशत) तथा नदी के तट से रेत और पत्थर का उत्खनन (62 प्रतिशत) एवं नदी तट में मानव जनित गंदगी में वृद्धि (58 प्रतिशत) को स्वीकार किया गया। प्रमुख सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों में 56-75 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा परिवहन के साधनों (75 प्रतिशत), दूरसंचार (63 प्रतिशत), चिकित्सा, शिक्षा एवं सार्वजनिक-सुविधाओं में वृद्धि (56 प्रतिशत) के रूप में महसूस की गई। लेकिन इन सुविधाओं का ज.वि.प. के साथ कोई संबंध होना नहीं बताया गया। एमबी-दो ज.वि.प. के भाली बांध जलाशय के कारण पर्यटन में वृद्धि को 51 प्रतिशत परियोजना-प्रभावित लोगों द्वारा स्वीकार किया गया। उल्लेखनीय नकारात्मक सांस्कृतिक प्रभावों में, धार्मिक त्योहारों (53 प्रतिशत) और भागीरथी नदी के प्रति श्रद्धा में कमी (50 प्रतिशत) को स्वीकार किया गया। लेकिन इन्हीं में से 72 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने पर्यावरण जागरूकता में वृद्धि को परियोजना का सकारात्मक प्रभाव माना।
लोहारीनाग पाला निर्माणाधीन ज.वि.प. के प्रभाव क्षेत्र में पड़ने वाले 12 गाँवों (सुक्की, सुनगढ, कुंजन, पाला, भटवाङी, भुकी, भंगेली, तेहार, बर्सू, क्यार्की, सालंग और हुर्री) में स्थित 43 परियोजना-प्रभावित परिवारों की धारणा के आधार पर 51-84 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने जैव विविधता पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों में, वनस्पतियों/जीवों (84 प्रतिशत), कृषि (81 प्रतिशत), चारागाह भूमि (77 प्रतिशत) एवं वन्यजीवों की आबादी में कमी (53 प्रतिशत), वन्य जीव निवास स्थान विखंडन (53 प्रतिशत) एवं खरपतवार में वृद्धि (51 प्रतिशत) को माना गया। हालांकि, चरागाह भूमि में कमी के विपरीत, परियोजना-प्रभावित 65 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि पशुधन की आबादी स्थिर बनी हुई है। वन्य जीवों हेतु भोजन तथा जल की कमी के कारण वन्यजीव आबादी में आई गिरावट को 50 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने नकारात्मक प्रभाव के रूप में महसूस किया। अन्य नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में 84-100 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नदी के जल (100 प्रतिशत), वायु (88 प्रतिशत) एवं ध्वनि प्रदूषण (84 प्रतिशत) में वृद्धि, परियोजना में कार्यरत स्टोन क्रशर से उत्पन्न धूल, निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए बड़े वाहनों की आवाजाही एवं ईंधन दहन से उत्पन्न धुआं, सड़क निर्माण हेतु चट्टानों में ब्लास्टिंग इत्यादि कारण बतलाये गये। इसके अलावा, भागीरथी नदी की जलराशि में कमी से उत्पन्न हुई मानव की समीपता के कारण नदी तट पर बढ रहे अतिक्रमण और घाटी के सौंदर्य में आई गिरावट क्रमशः 76-86 प्रतिशत परियोजना-प्रभावित लोगों की चिंता थी। पुनः 63-77 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा वर्षा की मात्रा में कमी (77 प्रतिशत), हवा के तापमान में वृद्धि (72 प्रतिशत), मिट्टी के कटाव में एवं भूस्खलन में वृद्धि (65 प्रतिशत) एवं पहाड़ी ढलानों पर निर्माण का मलबा गिरने के कारण नदी में गंदगी (63 प्रतिशत) को भी ज.वि.प. के महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभावों से जोङा। सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के रूप में 37-72ः उत्तरदाताओं की धारणा थी कि परिवहन के साधनों में हुई उल्लेखनीय वृद्धि के कारण कुंजन, तिहाड़ और भंगेली जैसे गाँवों का सड़क से जुड़ाव (37 प्रतिशत), दूरसंचार (72 प्रतिशत), चिकित्सा (67 प्रतिशत), शिक्षा (56 प्रतिशत) और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं (53 प्रतिशत) में वृद्धि हुई है। विस्तृत चर्चा में स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि को अंकित किया क्योंकि इन ग्रामों में उपलब्ध सब्जी एवं दूध को अब ज.वि.प. के कर्मचारियों को बेचा जाता है एवं स्थानीय बाजार में ले जाया जा सकता है, जो कि पूर्व में मोटर सड़क न होने के कारण बाजार में नहीं बेचा जा सकता था। उल्लेखनीय नकारात्मक सांस्कृतिक प्रभावों में 51 प्रतिशत परियोजना-प्रभावित लोगों ने नदी के किनारे धार्मिक त्योहारों में कमी और सामाजिक बुराइयों में वृद्धि होना बताया।
इस अध्ययन के निष्कर्ष पर पहुचने हेतु तीनों ज.वि.प. के प्रभावित लोगों की धारणा के संदर्भ में प्राप्त आकड़ों पर सावधानी से अवलोकन करने से बेहतर उपयोगी अंतदृष्टि प्राप्त की जा सकती है। यह अध्ययन ज.वि.प. के प्रभावों की दोनों स्थितियों (चालू/निर्माणाधीन) को प्रस्तुत करता है। परिणामतः इन तीन ज.वि.प. के बारे में परियोजना के नकारात्मक/सकारात्मक प्रभावों पर लोगों की धारणाएँ भिन्न पाई गयी। परन्तु इन तीनों ज.वि.प. के प्रभावित ग्रामीणों द्वारा यह समान रूप से माना कि वायुमंडल के तापमान में वृद्धि एवं वर्षा में आई गिरावट ज.वि.प. से संबंधित है, परन्तु इन धारणा को बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के सच नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार ज.वि.प. से धार्मिक उत्सवों में आई कमी को विशेष रूप से लोहारीनाग पाला ज.वि.प. के हेतु सत्य नही माना जा सकता क्योंकि वहां अभी भागीरथी नदी में कोई बैराज नहीं बना है एवं नदी का प्रवाह अभी भी अपनी प्राकृतिक स्थिति में बना हुआ है। जैव-विविधता पर पङ़ने वाले प्रभावों पर स्थानीय लोगों की धारणा में एमबी-एक परियोजना प्रभावित लोगों में से आधे से अधिक लोगों द्वारा कृषि फसलों एवं भागीरथी नदी में मत्स्य प्रजाति की विविधता में वृद्धि महसूस की गई। जबकि वन्यजीवों की आबादी में कमी, वनस्पतियों/जीवों के निवास स्थान के विखंडन और चारागाह भूमि के ह्रास के संबंध में एमबी-एक ज.वि.प. के आधे से अधिक परियोजना प्रभावित लोगों ने माना कि यह ज.वि.प. से संबंधित नहीं है। एमबी-दो एवं एलएनपी ज.वि.प. के प्रभावित लोगों नें वनस्पतियों/जीवों, कृषि फसलों, चारागाह भूमि, वन्यजीव की आबादी में कमी एवं वन्य जीवों के निवास स्थानों के विखंडन और खरपतवारों की वृद्धि को जैव विविधता पर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभावों के रूप में दर्ज किया। कृषि कार्य एवं पशुधन में आई कमी को एमबी-दो एवं एलएनपी ज.वि.प. के प्रभावितों ने नकारात्मक प्रभाव के रूप में माना। हालांकि उत्तराखण्ड के अन्य क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में भी लोगों की बदलती जीवन शैली और नौकरी की तलाश में आवास-प्रवासन के लिए कृषि और पशुधन आबादी में कमी को अधिक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अतः यह प्रभाव पूरी तरह से ज.वि.प. के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता।
यह स्पष्ट है कि भागीरथी नदी घाटी में तीनों ज.वि.प. के प्रभाव स्वरूप नदी के बहाव में कमी एवं भागीरथी नदी घाटी के सौदर्य में 90 प्रतिशत से भी अधिक उत्तरदाताओं ने गिरावट महसूस की। उल्लेखनीय नकारात्मक प्रभावों में वायु, जल, एवं ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि, नदी तट क्षेत्र में अतिक्रमण और नदी तट में गंदगी, रेत एवं पत्थर के उत्खनन, मृदा अपरदन, एवं भूस्खलन में वृद्धि एमबी-दो और एलएनपी ज.वि.प. के आधे से अधिक परियोजना प्रभावित लोगों द्वारा सूचित किए गए। भागीरथी नदी से बहाव को तुरन्त एमबी-एक और एमबी-दो दोनों ज.वि.प. के जलाशय से एकाएक छोड़ा जाना (विशेष रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान जब बर्फ का पिघलना कम रहता है) को नदी की तटीय पारिस्थितिकी के लिए चिंता का विषय माना। हालांकि लगभग तीन दशक पूर्व एमबी-एक के निर्माण के दौरान सड़क के किनारे होने वाले भूस्खलन अब स्थिर हो जाने से लोगों द्वारा भुला दिए गए है जो उनके द्वारा नकारात्मक प्रभावों की सूची में नहीं रखें गये। भटवाड़ी और गंगनाणी (एलएनपी परियोजना क्षेत्र में पड़ने वाले ग्राम) क्षेत्र भूगर्भीय कारकों की दृष्टि से भूस्खलन हेतु सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं। पुनः मानवजनित गतिविधियों द्वारा इस संवेदनशीलता में वृद्धि होने से अक्सर ज.वि.प. को ही भूस्खलन हेतु जिम्मेवार ठहराया जाता हैं। फोकल समूह चर्चा से यह खुलासा हुआ कि ज.वि.प. निर्माण के लिए होने वाले ब्लास्टिंग पर्वतीय ढलान को अस्थिर करता है, इससे घरों में दरार और कुछ क्षेत्रों में जलस्रोत सूखने (एमबी-एक के जामक गांव और एमबी-दो के सिंगुडी और पुजार गाँव) के लिए स्थानीय निवासियों ने जिम्मेदार ठहराया। ब्लास्टिंग के कारण भू गर्भीय संरचना में हुई गड़बड़ी को इंकार नहीं किया जा सकता है जिसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है। एलएनपी परियोजना क्षेत्र में फोकल समूह चर्चा से खुलासा हुआ कि, ज.वि.प. के स्टोन क्रशर और लोडिंग वाहनों से उत्पन्न होने वाली धूल, सेब के फूलों में परागकण एवं पत्तियों के प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करती है, जिसे फसलों की पैदावार में कमी और उपज में गिरावट का कारण माना गया जिसे कि अन्य वैज्ञानिकों द्वारा भी साबित किया जा चुका है। इसके अलावा धूल जमने के कारण आसपास की दुकानों में विक्रय हेतु रखे संमान की गुणवत्ता घट जाने के कारण वस्तुओं बिक्री भी प्रभावित होती हैं। उपरोक्त अलग-अलग उदाहरणों के जरिए लोगों ने बड़ी ज.वि.प. के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए रन-ऑफ-द-रिवर एवं छोटे ज.वि.प. को बढ़ावा देने का समर्थन किया।
यह विदित है कि ज.वि.प. के ग्रामीण क्षेत्र की पिछड़ी अर्थव्यवस्था के कारण आधुनिक सुविधाओं से वंचित हैं। परियोजना के परिणामस्वरूप सकारात्मक परिणामों के रूप में सड़क मार्ग, दूरसंचार, चिकित्सा और शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि को महसूस किया गया जबकि ये सुविधाएं सरकार के विकास कार्यक्रमों से ज्यादा संबंधित रही होंगी। स्पष्टतया ग्रामीणों में इस जानकारी के अभाव से इस धारणा को बल मिला होगा कि ज.वि.प. आने से उनके ग्रामों में मूलभूत सुविधाओं का विकास हो पाया। परियोजना-प्रभावित लोगों की इस धारणा का समर्थन इस तथ्य से भी होता है कि गरीबी से त्रस्त ग्रामीणों में ज.वि.प. के द्वारा रोजगार सृजन उल्लेखनीय रूप से सकारात्मक प्रभाव लाया हैं। उदाहरण के लिए, एलएनपी के निर्माण के दौरान, 480 ग्रामीणों को (2500-5000 रू. प्रति महीनें) अकुशल से लेकर उच्च कुशल मजदूरी का रोजगार मिला था। लेकिन एलएनपी परियोजना के बन्द हो जाने के परिणामस्वरूप, इन स्थानीय लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं एवं उन्होनें उक्त ज.वि.प. को पुनः शुरू करने के लिए प्रयास किये एवं वह इस परियोजना के निर्माण के समर्थक थे। इन ग्रामीणों को प्रत्यक्ष रोजगार लाभ के अलावा, सड़क संपर्क की सुविधा और अपने उत्पादों जैसे दूध और सब्जियों को बेचने के लिए बाजार की उपलब्धता हुई। उदाहरण के लिए, एमबी-एक और एमबी-दो ज.वि.प. के आसपास के लोगों ने स्वीकार किया कि ज.वि.प. कर्मचारियों मे दूध की बढ़ती माँग के कारण वे अब अतिरिक्त गायों और भैंसों को पालने लगे हैं। इसलिए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में जहां विकास अपेक्षित गति से नही हो सका है, ज.वि.प. लोगों की आशा के अनुरूप नौकरी के अवसरों एवं अवस्थापना विकास से जीवन स्तर में आंशिक सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं, लेकिन इन परियोजनाओं के निर्माण में प्राकृतिक संसाधनों की भारी लागत आती है, जिसका आर्थिक आकलन आवश्यक है।
जैसा कि पहले बताया गया है भागीरथी नदी घाटी की ज.वि.प. को रोकने का एक मजबूत कारण माँ गंगा नदी का स्रोत, एवं इससे जुड़ी सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक लोकाचार थी। अतः सांस्कृतिक प्रभावों पर लोगों द्वारा व्यक्त धारणा का सावधानीपूर्वक परीक्षण आवश्यक है। एमबी-एक ज.वि.प. के 79 प्रतिशत परियोजना-प्रभावित लोगों की धारणा के अनुसार धार्मिक त्योहारों में वृद्धि एवं भागीरथी नदी के प्रति श्रद्धा में कोई अन्तर नहीं आया है। जिसे एमबी-दो और एलएनपी के आधे से अधिक परियोजना-प्रभावित लोगों के द्वारा आ रही कमी में माना गया और इसे ज.वि.प. से संबंधित पाया गया। इसके अलावा, सामाजिक बुराइयों में वृद्धि को आधे से अधिक लोगों ने ज.वि.प. में कार्यरत बाहरी लोगों से जुड़ा हुआ होना बताया। तीनों ज.वि.प. के 79 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सबसे महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव स्थानीय लोगों में पर्यावरणीय जागरूकता के रूप में बताया गया। इसे एक सकारात्मक संकेत के रूप में लिया जा सकता है, क्योंकि लोग अपनी प्राकृतिक संपत्ति की उपयोगिता के बारे में अब अधिक जानने लगे हैं और इसे विकासात्मक गतिविधियों के कारण होने वाले नुकसान से बचाने हेतु संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आने लगे हैं।
संक्षेप में भागीरथी नदी घाटी क्षेत्र के निवासियों के मध्य इस धारणा अध्ययन के आधार पर ज.वि.प. के नकारात्मक प्रभावों में वनस्पतियों/वन्य जीवों, कृषि, भागीरथी नदी का प्रवाह एवं नदी घाटी की सुंदरता में कमी, एवं जल प्रदूषण, रेत/पत्थर उत्खनन और सामाजिक बुराइयों में वृद्धि को उल्लेखनीय माना जा सकता है। सकारात्मक प्रभावों में, जीवन स्तर में वृद्धि, सड़क संपर्क और परिवहन के साधन, सार्वजनिक सुविधाएं, पर्यटन और पर्यावरणीय जागरूकता को निर्णायक रूप से स्वीकार किया जा सकता है। यह कहना उचित होगा कि कारण और प्रभाव (कॉज एंड एफेक्ट) की जटिलता के विश्लेषण की अनुपस्थिति में नकारात्मक एवं सकारात्मक प्रभावों के अर्न्तसम्बन्ध को समझना मुश्किल है। अतएव भागीरथी नदी घाटी पारिस्थितिकी तंत्र के पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक घटकों पर ज.वि.प. और अन्य मानवजनित गतिविधियों के प्रभावों को अलग-अलग करना ज.वि.प. के विरोध की धारणा को दूर करने के लिए इन निर्माणाधीन/प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं के बन्द हो जाने के बाद भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके अलावा इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जब परियोजना से बिजली उत्पादन के लाभ मिलने लगते हैं तो लोग समय के साथ जल विद्युत परियोजनाओं. के नकारात्मक प्रभावों को भूल जाते हैं एवं जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण चरण में ही सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव लोगों द्वारा महसूस किये जाते हैं। अतः इस क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल एवं सतत् बनाये रखने के लिए एवं विज्ञान-आधारित, बहुआयामी अध्ययन परियोजना-प्रभावित लोगों की भागीदारी से करने की आवश्यकता है, जिससे कि जल संसाधनों से विद्युत ऊर्जा के विकास, सामाजिक आर्थिक उन्नयन एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।