राजीव लोचन साह / विनीता यशस्वी
बच्चों की आँखों से देखने पर हर बार कुछ नया, कुछ खास देखने को मिल ही जाता है। इस बार वरिष्ठ वर्ग (कक्षा 10, 11 व 12) के लिये विषय था, ‘‘हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।’’ इस विषय पर मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर की प्रियदर्शिनी बिष्ट ने लिखा, ‘‘धर्मभेद बिल्कुल कोरोना जीवाणु की तरह है। किसी न किसी पर आये दिन प्रहार करता है। बस कोरोना का असर शारीरिक है और धर्मभेद का मानसिक।’’ इसी विद्यालय की कविता आर्या लिखती हैं, ‘‘स्कूल में हम धर्म देख के दोस्त नहीं बनाते हैं। धर्म देख के डॉक्टर इलाज नहीं करते और न ही धर्म देख नौकरियां मिलती हैं।’’ अटल उत्कृष्ट राजकीय बालिका इंटर काॅलेज की मोनिका टम्टा का कहना था, ‘‘हिन्दू चाहता है कि मुस्लिम भारत छोड़ के चले जायें। परन्तु यदि उन्हें यहाँ की नागरिकता मिली है तो वे क्यों जायेंगे?’’ इसी विद्यालय की हर्षिका भंडारी का मानना था, ‘‘अगर हमारे स्वतंत्रता सेनानी धर्म के नाम पर ही लड़ते रह जाते तो क्या हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो पाता ? यह वो भारत नहीं है, जिसका सपना बापू ने देखा था।’’ उन्हें यह भी चिन्ता है कि ‘‘जाति धर्म की यह आपदा हमारे राष्ट्र को दीमक की तरह खर्च रही है।’’ इसी विद्यालय की एक और छात्रा मनीषा जोशी का कहना है, ‘‘भारत के संविधान में भी इच्छानुसार धर्म चुनने की छूट है, और यद्यपि कोई अपनी इच्छानुसार धर्म परिवर्तित भी करता है तो यह भी उसका अधिकार है। भारत में धर्म निरपेक्षता का प्राविधान है।’’
भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय की अंजली बिष्ट कहती हैं, ‘‘हमें अपने बच्चें को धर्म के मामले में डालना ही नहीं चाहिये और यदि बच्चा अपने धर्म से बहुत लगाव रखता है तो उसे दूसरे धर्म का सम्मान करना भी सिखाना चाहिये।’’ इसी स्कूल की कृतिका बिष्ट पूछती हैं, ‘‘देवभूमि में मंदिरों के बाहर होटल में सीसीटीवी कैमरे लगाने की नौबत आ गई। क्या यह भाईचारा है ? अपने धर्म को मनाना गलत नहीं है, परंतु धर्म के नाम पर इंसानियत भूलना उचित नहीं है।’’ सनवाल स्कूल की वनिता पाण्डे इस प्रवृत्ति को ज्यादा गहराई से समझ रही हैं, ‘‘कुछ महीने पहले जब काँवड़ यात्री उत्तर प्रदेश के रास्तो से गुजर रहे थे तब सभी दुकानदारों या सड़क के किनारे घूम रहे ठेले वालों को भी दुकान मालिक का नाम लिखना था। समझ में नहीं आता कि अगर आप कोई सामान एक कम्पनी का पहले किसी हिन्दू की दुकान से लेते हैं और फिर वही सामान मुस्लिम दुकान से लेते हैं तो क्या फर्क पड़ता है?’’
इस वर्ग में सर्वोत्तम निबन्ध लिखने वाले लौंग व्यू पब्लिक स्कूल के आयुष्मान पचैलिया की तल्ख टिप्पणी है, ‘‘मै उन कुछ गिने-चुने लोगों में हूँ, जो किसी भी प्रकार के धर्म-ईश्वर को नहीं मानता। परन्तु आज के समय में जब चार भाई एक दूसरे के खून के प्यासे हों, तब नास्तिक के लिये भी यह चिन्ता का विषय बन जाता है। समझदार लोगों को धर्म से फरक नहीं पड़ता और मूर्खों को उसके अलावा और कुछ नहीं दिखता।’’ इसी विद्यालय के नमन पाण्डे लिखते हैं, ‘‘होली का त्योहार आया है, हजारों खुशियां लाया है। रमजान भी आया है, ईद का चांद आया है। मैं होली हूं, रमजान हूं, मैं अल्लाह हूं, भगवान हूं। जो माने जिस धर्म को उसका मैं त्यौहार हूं, उसका मैं त्यौहार हूं।’’
गांधी का जिक्र बहुत से बच्चों ने किया है और कहा है कि हमें उनके दिखाए मार्ग में चल कर अच्छा मानव बनना चाहिए। वे सोशल मीडिया को भी धार्मिक उन्माद के लिए जिम्मेदार मानते हैं। बच्चे अपने आसपास होने वाली धर्मगत घटनाओं से भी वाकिफ दिखे जिसका जिक्र उनके निबंधों में भी दिखा। वे धर्म के नाम पर लड़वाने वालों पर काफी तीखी टिप्पणी करते हैं।
लेक्स इंटरनेशनल स्कूल, भीमताल के मेहाराज शर्मा कहते हैं, ‘‘हिंदू मुस्लिम भाई-भाई यह वाक्य धर्म के बीच अपार एकता को बयां करता है। परंतु क्या आज हम इस बात को समझ पा रहे हैं ? दूसरे धर्म के व्यक्ति को हीन भावना से देखना तो जैसे फैशन बन चुका है।’’
एशडेल बालिका इंटर काॅलेज की सादिया परवीन लिखती हैं, ‘‘मनुष्य को धर्मों के नाम पर बांटा गया है, पर मनुष्य तो एक ही है। उसके अंदर बहने वाला खून और शरीर के अंग एक ही हैं। अलग है तो सिर्फ मनुष्य की सोच।’’ तो इसी स्कूल की सीमा आर्या राय देती हैं, ‘‘हमें ऐसा नेता चुनना चाहिए जो लोगों को धर्म के नाम पर ना भड़काए।’’
मध्यम वर्ग (कक्षा 7, 8 व 9) के लिये विषय था, ‘‘कैसा हो मेरा शहर नैनीताल ?’’ इस पर बसन्त वैली पब्लिक स्कूल की प्रियांशी कहती हैं, ‘‘अब नैनीताल में कितनी गर्मी होने लगी है। सर्दियों में ज्यादा बर्फ भी नहीं होती। क्या आपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों हो रहा है ? अब कितना प्रदूषण हो रहा है।’’ सनवाल स्कूल की वर्तिका पाण्डे बतलाती हैं कि ‘‘जब ब्रिटिश लोग आये थे तो वे कहते थे कि नैनीताल में एक तय संख्या में लोग होने चाहिये। लेकिन नैनीताल की आबादी तो देखते ही देखते बढ़ती ही चली जा रही है। पर्यटकों के आगमन से तो नैनीताल के कंधों पर लगातार भार बढ़ रहा है।’’
‘‘हमें नैनीताल के सपने को साकार करना चाहिये और इसके लिये आसपास के घरों को स्वच्छ करना चाहिये। यहाँ का हर बच्चा नैनीताल के महत्व को समझे, यही मेरी कामना है।’’ यह कामना है भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय के हर्षित अधिकारी की। जबकि चेतराम साह ठुलघरिया इंटर काॅलेज के मोहम्मद अफ्फान की चिन्ता है कि ‘‘अब सड़क पर सिर्फ बाईक ही दिखती हैं। इंसान सही से चल भी नहीं पाते हैं। बाईक की वजह से हादसे ज्यादा होते हैं।’’
इस वर्ग में उत्कृष्ट निबन्ध लिखने वाली मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर की संस्कृति चन्द्रा कहती हैं, ‘‘तालाब कचरे से भर रहा है। पहाड़ियाँ खिसक रही हैं। दिन भर पर्यटकों के निजी वाहनों के शोरगुल से कितना वायु प्रदूषण फैल रहा है इसका हम अंदाजा भी नहीं कर सकते।’’ जबकि इस वर्ग में सर्वोत्तम निबन्ध लिखने वाली इसी विद्यालय की वर्णिता पाण्डे मानती हैं कि ‘‘नैनीताल वास्तव में विकसित नहीं है, ‘‘सन् 1880 के घाव भरे नहीं हैं, फिर भी भारवहन क्षमता को ध्यान में न रख कर बड़े-बड़े मकान खड़े किये जा रहे हैं। इसी विद्यालय की छात्रा शिफा वसीम का जोश देखने लायक है, ‘‘अपने नैनीताल को मशहूर हम करेंगे। अपने नैनीताल का नाम हम रोशन करेंगे। जी हां हम ! आज के युवक। हम युवक इस शहर का नाम इतना फैला देंगे कि बड़े से बड़ा अंग्रेज भी हावर्ड, ऑक्सफोर्ड या कैंब्रिज में नहीं बल्कि हमारी कुमाऊं विश्वविद्यालय में पढ़ना चाहेगा।’’
बच्चे ट्रैफिक से होने वाले प्रदूषण पर भी बात रख रहे हैं। उन्होंनेे घर में सुनी बातों को भी अपने तरीके से निबंधों में लिखा है। कूड़े से बच्चे परेशान दिखते हैं। वे नैनीताल में अच्छे हॉस्पिटल की चाहत रखते हैं। नैनीताल में मिलने वाले फास्ट फूड और उससे होने वाली गंदगी भी बच्चों का सरदर्द बनी है। वे नशे की बात भी करते हैं, जिसमें वे मोबाइल और सोशल मीडिया के नशे को भी जोड़ लेते हैं।
प्रिपरेटरी लर्निंग स्कूल के कार्तिक आर्या की शिकायत है कि ‘‘नैनीताल में कई लोग अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाना चाहते हैं और उन बच्चों को अलग-अलग जगहों से विद्यालय बस और गाड़ी से आना पड़ता है। अगर सड़के ही ठीक नहीं होगी तो हमारे देश को नैनीताल से वकील, आईपीएस ऑफिसर, मंत्री और प्रधानमंत्री आदि कैसे मिलेंगे ?’’ वहीं मोहन लाल साह बालिका इंटर काॅलेज की अनन्या आर्या की शिकायत है कि ‘‘नैनीताल में एक ही हॉस्पिटल है। मेरा कहना है कि नैनीताल में कम से कम दो हॉस्पिटल होने चाहिए क्योंकि दूर से जो व्यक्ति दिखाने के लिए आते हैं उनका नंबर ही नहीं आता और अस्पताल में बड़ी भीड़ रहती है।’’ लेक्स इंटरनेशनल स्कूल, भीमताल की हर्षिता जोशी को अफसोस है कि ‘‘मैंने तो मैंने तो केवल अपने दादा-दादी, माता-पिता व शिक्षकों के मुंह से ही नैनीताल की सुंदरता की तारीफ सुनी है। मुझे तो उस सुंदरता के दर्शन हो ही नहीं सके।’’ इसी विद्यालय के कुश चैधरी नैनीताल की डीएम वंदना सिंह के प्रशंसक हैं। वे उन्हें ईमानदार और होनहार स्त्री बताते हुए कहते हैं कि ‘‘सभी इनकी तरह बन गई तो भारत अमेरिका जैसे देशों को धोकर काफी आगे निकल सकता है।’’
प्रतियोगिता में हल्द्वानी के दीक्षांत इंटर काॅलेज से प्रनिका पन्त भी तशरीफ लायी हैं और हल्द्वानी वालों का आह्वान करती हैं, ‘‘हल्द्वानी शहर के लोगों में आलस ही आलस भरा हुआ है। हल्द्वानी के लोगों आलस्य त्यागो, नींद छोड़ो, उठो और एक कदम स्वच्छता की ओर बढ़ाओ। घर को सुरक्षित रखने का काम हल्द्वानी शहर में केवल कुत्तों को ही दिया गया है।’’ लौंग व्यू पब्लिक स्कूल के ही केतन साह की दृष्टि में ‘‘नैनीताल के जल में चूना बहुत है जिस कारण यहां पथरी की बीमारी हो जाती है। इसलिए प्रशासन को पानी साफ करना चाहिए।’’
हिमालय एकेडमी, ज्योलिकोट के सुरेश रावत विकास के मामले में ज्यादा परिपक्वता दिखाते हैं, ‘‘बुलडोजर से इतने अधिक वाइब्रेशन होती है कि पहाड़ बाहर से तो नहीं अंदर से कमजोर हो जाते हैं, जिससे जब भारी वर्षा होती है तो यह लैंडस्लाइड का शिकार हो जाते हैं।’’
प्रतियोगिता के प्रायोजक हैं नैनीताल बैंक
तीसवीं नैनीताल समाचार निबन्ध प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह इस साल 1 दिसम्बर को चेतराम साह ठुलघरिया इंटर काॅलेज के सभागार में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पिछली शताब्दी के साठ और सत्तर के दशक की आकाशवाणी की लोकप्रिय गायिका बीना तिवारी थीं। उन्होंने उस दौर में उनके द्वारा गाये गये ‘‘ओ परूली बौज्यू चप्पल के लाछा यस’’, ‘‘छाना बिलौरी झन दिया बौज्यू’’ और ‘‘बुरुँशी का फूलों का कुमकुम मारो’’ जैसे गीतों के अंश सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार राजशेखर पन्त ने की और संचालन जय जोशी द्वारा किया गया। इस बार 19 विद्यालयों के 180 छात्र-छात्राओं ने प्रतियोगिता में भाग लिया। प्रतियोगियों की संख्या अच्छे मौसम के बावजूद इस वर्ष अपेक्षाकृत कम रही। इसका एक कारण यह रहा कि उसी रोज फ्लैट्स पर शारदा संघ द्वारा पिछले पचास वर्षों से की जाने वाली बच्चों की ‘आॅन द स्पाॅट पेंटिग प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही थी और बहुत सारे बच्चे उस प्रतियोगिता में व्यस्त हो गये। निबंधों को प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. दिवा भट्ट और रंगकर्मी-पत्रकार उमेश तिवारी ‘विश्वास’ द्वारा जाँचा गया।
प्रतियोगिता में इस बार लौंग व्यू पब्लिक स्कूल के आयुष्मान पचैलिया, सी.आर.एस.टी.इंटर कॉलेज के मोहम्मद अफ्फान, भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय के अंजलि बिष्ट, अंजलि फत्र्याल, हर्षित अधिकारी, प्रेरणा राज और चन्दन नयाल; सनवाल स्कूल की वनिता पांडे और वर्तिका पांडे; राजकीय बालिका इंटर कॉलेज नैनीताल की हर्षिता भंडारी और मोनिका टम्टा; सेंट जोसेफ्स कॉलेज के रुद्रप्रताप सिंह, चिन्मय बुधलाकोटी और विहान कोहली; सेंट स्टेफन स्कूल की नीहारिका आर्या व प्रीति बिष्ट; मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर की प्रियदर्शिनी बिष्ट, वर्णिता पाण्डे, संस्कृति चन्द्रा और भविष्या काराकोटी और बसंत वैली पब्लिक स्कूल की प्रियांशी सफल रहे हैं।
इस बार चल वैजयन्ति मोहन लाल साह बाल विद्या मन्दिर, नैनीताल को मिली। इस बार की प्रतियोगिता में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी रहा कि सारे पुरस्कृत विद्यार्थी नैनीताल नगर के विद्यालयों के ही रहे। नगर के बाहर भीमताल, भवाली, पटवाडाँगर या ज्योलीकोट का कोई भी प्रतियोगी सफल नहीं हो सका।
कनिष्ठ वर्ग (कक्षा 4, 5 व 6) के लिये विषय था, ‘‘आपका प्रिय खेल।’’ इस वर्ग में बच्चों ने सिर्फ शब्दों से ही अपनी बात नहीं कही है। बल्कि कुछ बच्चों ने तो अपनी कॉपियों को रंगों से सजा डाला है। भाषा की अशुद्धियां तो बड़ी कक्षा की कापियों में ही बहुत हैं, तो जाहिर है कि इस वर्ग में वे बहुत ज्यादा होंगी ही। क्रिकेट ज्यादातर बच्चों का प्रिय खेल है। मगर बच्चों ने अन्य खेलों के बारे में अच्छी जानकारियां भी उपलब्ध कराई हैं।
‘‘क्रिकेट पूरे भारत मे सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल है। हर गली मोहल्ले में खेला जाता है। कहीं पर ईंटें विकेट होती हैं, कहीं पर लकड़ी। सबका एक ही तरीका, मगर अंदाज अलग-अलग।’’ ऐसा सोचना है सेंट जोसेफ्स के छात्र चिन्मय बुधलाकोटी का। इस वर्ग में सर्वोत्तम निबन्ध लिखने वाले इसी विद्यालय के रुद्रप्रताप सिंह बिष्ट (सेंट जोसेफ्स काॅलेज) की चिन्ता भविष्य को लेकर है, ‘‘आजकल के लोग मोबाइल में गेम खलते रहते हैं, जो कि आने वाली पीढ़ियों के लिये अच्छी बात नहीं है।’’ उधर इसी विद्यालय के एक और छात्र विहान कोहली का मानना है कि ‘‘फुटबाॅल एक बहुत अच्छा खेल है। इसे खेलने में बहुत मजा आता है। यह बारिश, धूप और बर्फ में भी खेला जाता है।’’
मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर की भविष्या काराकोटी कहती हैं, ‘‘अगर हमारे देश के मशहूर क्रिकेटरों के माता-पिता उन्हें खेलने से रोकते तो देश को अच्छे क्रिकेटर नहीं मिलते।’’ बसन्त वैली पब्लिक स्कूल के नैतिक कुमार कहते हैं, ‘‘अधिकतर लोग सोचते हैं कि क्रिकेट लड़के ही खेल सकते हैं यह उनकी बहुत बुरी सोच है। वह सोचते हैं लड़कियां पराया धन होती हैं। इसे लड़के लड़कियां सभी खेल सकते हैं।’’ उधर लौंग व्यू पब्लिक स्कूल के शिवम तिवारी लिखते हैं, ‘‘बैठे-बैठे क्या होगा ? जो होगा खेल से ही होगा। हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा। हम खेलेंगे हम जीतेंगे। खेल में नहीं चलती किस्मत, करना पड़ता है अभ्यास।’’
सेंट स्टीफेन की नीहारिका आर्य की चिन्ता है कि ‘‘आजकल के बच्चे ऑनलाइन ही खेल खेलते हैं। मोबाइल के उपयोग से बच्चे केवल मोबाइल को ही वक्त देते हैं। मेरा निवेदन यह है कि मोबाइल से बाहर निकालो और बाहर की दुनिया देखो। देखो कि वह कितनी सुंदर है।’’ उनकी यह भी राय है कि ‘‘चैस खेलने से दिमाग की सोचने की शक्ति बढ़ती है। एक तरह से देखा जाये तो चैस एक ऐसा खेल है, जो हमारी जिन्दगी से भी जुड़ा है। इस खेल में एक कदम गलत और पूरा खेल बेकार।’’ इसी स्कूल की प्रीति बिष्ट भी मानती हैं, ‘‘जो बच्चे मोबाइल में खेलते हैं, उनके माता-पिता ने उन्हें राय देनी चाहिये कि उन्हें बाहर खेलना चाहिये।’’ वह कहती हैं, ‘‘मैं और मेरा भाई अपने दिमाग से नए खेल बनाते रहते हैं। जो हमारा प्रिय खेल है वह तो हम खेलते ही हैं लेकिन हम अपने दिमाग से नए खेल बनाकर उन्हें भी खेलते हैं।’’
अधिरूप गोडियाल (बिशप शाॅ इण्टर काॅलेज) को फोन पसंद है और उन्होंने फोन के सारे उपयोग गिनाते हुए फोन से होने वाली खतरनाक आदतें भी लिख डाली हैं, कुल मिला कर उनकी सलाह है कि ‘‘ज्यादा फोन भी नहीं देखना चाहिए, क्योंकि उससे आंखें भी खराब हो सकती हैं।’’ पर वे यह भी मानते हंै कि ‘‘हमारी जगह का भी पता फोन से चल जाता है और हम इसे खाने का ऑर्डर भी दे सकते हैं। फोन हमारा दोस्त जैसा होता है क्योंकि यह हमारा मनोरंजन भी करता है।’’ इसी विद्यालय की लक्षिता बोरा मानती हंै कि ‘‘कराटे खेलना लड़कियों के लिए जरूरी है। सभी लोग जानते हैं कि आजकल लड़कियों पर कितना खतरा आ गया है। इसलिए कराटे लड़की को जरूर सीखने चाहिए।’’ संस्कार पाण्डे (सेंट जोसेफ्स काॅलेज) को लगता है कि ‘‘आज इस तथ्य को कितना ही निकाल लें लेकिन यह तथ्य उभर कर आ ही जाता है कि खेल हमारी मानवता के लिए आवश्यक है, था और रहेगा।’’