तारा चन्द्र त्रिपाठी
उसके देशी और विदेशी व्यापार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं। सब कुछ लाला के अधिकार में। किसान अपने उत्पाद को कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र। कितना लुभावना कानून बनाया है मोदी सरकार ने। फिर भी असंतोष।यही कानून तो बना था पूँजीवाद के उदयकाल में मजदूर को जहाँ अधिक मजदूरी और सुविधाएँ मिलें वहाँ मजदूरी करे और पूँजीपति को जिसे काम पर रखने में लाभ दिखे उसे काम पर रखे। दोनों ही आजाद। जिसके पास दौलत है वह भी आजाद और जिसके पास शामा की रोटी का जुगाड़ नहीं है वह भी आजाद। फिर इतनी भुखमरी और बेरोजगारी क्योंकि
उच्चतम अर्हता वाले तकनीकी स्नातक और परास्नातक चपरासी और बेलदार के पद के लिए मारे मारे फिरें यह उनकी इच्छा है। सिडकुल में 500 रु. दैनिक मजदूरी पर काम करने के लिए किसी ने उन्हें बाध्य तो नहीं किया है। इन्तजार करें प्रतियोगिताओं में भाग लेंए किसने रोका है।
यही तो स्वाधीनता है समानता है और लोकतंत्र है। यही मोदी सरकार ला रही है फिर इतनी नाराजी क्यों।
जिसके घर में शाम की रोटी का जुगाड़ नहींए रहने के लिए आवास नहीं बीमार पड़ने पर इलाज की कोई व्यवस्था नहीं उसे अच्छे दिनों का इन्तजार करना चाहिए। कोई बात नहीं इस जन्म में अच्छे दिन नहीं आये तो किसी जन्म में तो आयेंगे। इस नीति के परिणाम का जीता जागता दृश्य तब वहां शोधरत डा. हेमचन्द्र जोशी की पुस्तक यूरोप जैसा मैंनें देखा में अंकित है इस समय ये युंकर और व्यापारी व्यवसायी और कल.कारखानों के मालिक हैंए जिन्होंने अपनी कूटनीति से जर्मनी का अधिकांश कारबार अपने हाथों में कर लिया है और जो कुछ थोड़ा सा बाकी रह गया है उसे भी अपने काबू में करने में व्यस्त हैं इनके पास इतनी अपार सम्पत्ति हो गयी है कि ये सारे संसार में अपना जोड़ कम रखते हैं इस प्रकार देश के ये बड़े.बड़े लोग अपने नीच स्वार्थ के लिए अपनी जननी जन्मभूमि को ठग रहे हैंण् इस पर एक और दुर्भाग्य जर्मनी का यह है कि यहाँ गुलामी सदियों से चली आ रही हैण् इस से स्वयं जनता स्वतन्त्रता का उतना मान नहीं रख रही हैए जितना होना चाहिए था
खादेत्क्षुधार्ता जननी स्वपुत्रंण् खदेत्क्षुधार्तो भुजगो स्व मुंडं
भुभुक्षितरू किं न करोति पापं क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्तिण्
अलेक्जेंडर प्लात्स के पड़ोस में रोजनटालर स्टासे है आस.पास की गलियों की खाक छानते.छानते वहाँ पहुँचा भीड़.भड़क्का है लेकिन सर्वत्र गरीबी ने घर कर रखा है मकान खूब ऊँचे हैं बसासत भी घनी है चहल.पहल के सब आसार हैं लेकिन गुणनाशी दरिद्रता ने अपना एकाधिपत्य जमा रखा है रास्ता फेरी वालों से भरा है कहीं.कहीं छापेखाने भी सड़क पर खुले हैं पाँच मिनट में विजिटिंग कार्ड छपा लीजिये दूकानदार बहुत हैं पर ग्राहक नदारद कहा जाता है कि मुहल्ले में चोरी का बाजार बहुत गर्म रहता है टुक निगाह बची कि माल दोस्तों का जर्मन जाति के उजड़ने का दुखद दृश्य देखते धीमे.धीमे आगे बढ़ रहा था एक छोटे चौराहे पर पहुँचा इस चौक पर वह दृश्य देखा कि जन्म भर न भूलूंगा इस बीभत्स दृश्य ने दो दिन तक स्वास्थ्य बिगाड़ कर रख दिया
दिन का वक्त है इस चौराहे पर भूखे भेड़ियों की भाँति कुछ कंकाल लाशों पर टूट रहे हैं जो कि घोड़े की है यह क्या सब अपनी ओर से उसका मांस नोच रहे हैं भारत में जानवरों की लाशों पर गिद्धों को लड़ते देखा था लेकिन इन शिक्षित जर्मन नर.नारियों की गिद्ध दृष्टि विकराल थी
हर एक धुन में है कि अधिक से अधिक मांस मुझे मिले कोई छुरे से कोई काँच के टुकड़े से कोई हाथ से और नाखूनों से मांस को नोच कर जेब या थैली में भर रहा है क्या विचित्र छीना.झपटी हैए श्मशान भूमि के भूत.प्रेत पिशाच इन से भयंकर शायद ही होते हों पेट की धधकती ज्वाला से आतुर ये जर्मन नर.नारी भेड़ियों से भी अधिक खूँख्वार बन गये हैं इन की चमकती आँखें और मुख की भाव.भंगिमा बता रही है कि इस समय इन्हें इस समय जीवन का चरम आनन्द मिल रहा है इन भूखे शेरों को कोई छेड़े तो तब देखिये भेड़ में चिपट कर चींटियों को जो तृप्ति होती होगीए वही इन्हें भी हो रही है
इतने में सड़क से एक भीड़ आयी चार.पाँच संडे.मुसंडे वहाँ पहुँचे और लगे सब को धक्का देने जो थोड़ी सी हड्डियाँ बची रह गयी थीं इन्हें ये उठा ले भागे रात को इन्द्र का अखाड़ा आबाद किया अब यह दृश्य देख रहा हूँ जीवन है कि सपना अथवा माया है या भ्रम या किसी रहस्यमय की भेद भरी लीला है आलम तमाम हलकये खामे खयाल हैं ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या सब सच हैए लेकिन भारत में भी तो अक्ल इतनी हैरान नहीं हुई थी यहाँ तो रोज आये दिन ऐसे भीषण दृश्य दिखाई पड़ते हैं कि बुद्धि ठिकाने नहीं रहती बार.बार यही ख्याल आता है कि स्वप्न देख रहा हूँ भील.संथालों में भी ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिलता अफ्रीका के जंगलों में ऐसा दृश्य देखने मिले तो सम्भव है सच है थी जमाने में रोशनी जिसकी हाय उस घर में चिराग नहीं है इस अमानुषिक दॄश्य ने मेरे हृदय में कुहराम मचा दिया मनुष्य क्रूरता और नैतिक अधपतन के किस गर्त तक पहुँच सकता हैए उसकी सीमा स्थिर नहीं हो सकती भूख की प्रचंड ज्वाला से विदग्ध पापी पेट जो कार्य न करवा दे ख़ैर छोड़िये यह सब माया है मरते समय तो हिंदुत्व ही गाय की पूंछ पकड़वा कर बैतरणी पार करायेगा