देवेश जोशी
देहरादून के सर्वाधिक छात्रसंख्या वाले सरकारी माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य का असामयिक निधन हो गया है। बात इतनी-सी ही नहीं है। बात ये है कि प्रदेश के वर्तमान में कार्यरत सर्वश्रेष्ठ प्रधानाचार्यों में से एक महावीर सिंह चौहान का निधन हो गया है। राजकीय इण्टर काॅलेज हरबर्टपुर में पिछले चार साल से कार्यरत रहते हुए उन्होंने विद्यालय को उस मुकाम पर पहुँचाया जिसे आदर्श का बहुत करीबी कहा जा सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी और वाॅलीबाल खेल चुके चौहान ने अपना करियर व्यायाम अध्यापक के रूप में शुरू किया था पर उनकी ख्याति ऐकडमिक उपलब्धियों और प्रयासों के लिए अधिक है। विद्यालय अनुशासन हो, सौन्दर्यीकरण या शैक्षिक वातावरण सभी में विद्यालय को उन्होंने अनुकरणीय बनाया। विभाग में सीएसआर के जरिए संसाधन जुटाने की योजना से बहुत पहले ही वे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से विद्यालय के लिए फंड-रेज़िंग किया करते थे। यही कारण है कि आज ये विद्यालय पूर्णतः संसाधन-सम्पन्न है। फंड-रेज़िंग में उनकी ईमानदार छवि भी सहायक रही।
शिक्षणेतर गतिविधियों में भी उनका विद्यालय कहीं पीछे नहीं था। विद्यालय स्तर के साथ-साथ ब्लाॅक, जनपद व प्रदेश स्तर की शिक्षणेतर प्रतियोगिताओं का भी उनके निर्देशन में सफल आयोजन होता रहा है। शांत और मृदुभाषी चौहान किसी आयोजन की जिम्मेदारी से कभी पीछे भी नहीं हटे। इसके लिए अक्सर उन्हें छुट्टी के दिन भी कार्य करना पड़ता। कल भी जीवन के अंतिम दिन, छुट्टी के बावजूद वो विद्यालय में काम निपटाते रहे। एक ऐसे प्रधानाचार्य के रूप में उन्हें सदैव याद किया जाएगा जिनसे बच्चे, शिक्षक, अभिभावक और अधिकारी सभी प्रसन्न रहते थे। शायद ही कोई हो जो उनके विद्यालय से कुछ न कुछ सीख के न गया हो।
देहरादून जिले में जहाँ निजी व संस्थाओं के विद्यालय मशरूम की तरह उगते जा रहे हैं एक सरकारी विद्यालय अपनी छात्रसंख्या हजार से ऊपर रोकने में सफल है तो इसके पीछे महावीर सिंह चौहान जैसे संस्थाध्यक्ष का ही योगदान है। गौरतलब है कि आज की तिथि में देहरादून में मात्र तीन सरकारी माध्यमिक विद्यालय हैं जिनकी छात्रसंख्या चार अंकों में है। हजार के आसपास छात्रसंख्या वाले विद्यालयों की अपनी कुछ विशेष चुनौतियां भी होती हैं पर इनके संस्थाध्यक्षों के पास अलग संसाधन नहीं होते, अलग प्रशिक्षण भी नहीं होता यहाँ तक कि इनके हिस्से के उप-प्रधानाचार्य भी इनके पास नहीं हैं। ऐसे में इतने अधिक मानव संसाधन को व्यवस्थित तरीके से नियंत्रित कर अपेक्षित आउटपुट देने का एक ही रास्ता रह जाता है और वो है खुद को तन-मन-धन से समर्पित कर देना। यही दिवंगत प्रधानाचार्य महावीर सिंह चौहान ने भी किया और अच्छी कद-काठी, स्वस्थ शरीर और परोपकारी स्वभाव के बावजूद शिक्षा के महायज्ञ में असमय अपने प्राणों की आहुति दे गए। शिक्षा में, शिक्षा के लिए शहीद होना यही है।
एक सवाल भी यहाँ उठता है कि महावीर सिंह चौहान जैसा प्रतिस्थानी क्या विद्यालय को मिल पाएगा? बिल्कुल मिलेगा अगर पोस्टिंग, दावेदारों की कार्ययोजना और विज़न के परीक्षण के आधार पर की जाए तो। हरबर्टपुर ही नहीं बल्कि 700 से अधिक छात्रसंख्या वाले सभी विद्यालयों के लिए ऐसा ही किया जाना चाहिए।
आज यमुना-तट कालसी में दिवंगत प्रधानाचार्य के अंतिम संस्कार में ऐतिहासिक भीड़ थी। जौनसार से, पछवा दून से और देहरादून शहर से इतने लोग एकत्र हुए कि सड़क पर जाम लग गया। कहते हैं कि आदमी ने ज़िंदगी में क्या अर्जित किया ये उसके जीवन की अंतिम बेला से पता चलता है। महावीर सिंह चौहान की असमय मौत का सबको अफसोस है। पर ये भी कहा गया है कि मौत वही जिसका ज़माना करे अफसोस….।
अलविदा चौहान सर। जहाँ भी आपकी तैनाती रही आपकी उपस्थिति उन विद्यालयों में सदैव महसूस की जाएगी।