गोविंद पंत ‘राजू’
अपने गोपाल यानी गोपाल सिंह रावत, विधायक गंगोत्री विधान सभा क्षेत्र के तीन चार महीने की बीमारी के बाद अचानक हुए निधन की खबर ने बहुत व्यथित कर दिया है। गोपाल मित्र तो था ही उस जैसा ईमानदार ,सरल ,मददगार और जनता की परवाह करने वाला राजनेता भी उत्तराखंड की मौजूदा राजनीति में शायद ही कोई दूसरा होगा।उसका इस तरह चला जाना उत्तराखंड की राजनीती के बहुत बड़ी क्षति है। उत्तरकाशी के लिए तो इसकी भरपाई असंभव सी लगती है।
गोपाल से दोस्ती का सिलसिला कब और कैसे शुरू हुआ ,यह बहुत याद करने पर भी कुछ याद नहीं पड़ता। ऐसा लगता है कि जैसे गोपाल से मेरी कोई पूर्व जन्म की दोस्ती का सिलसिला था क्योंकि मुझे जो पहली स्मृति गोपाल की है वह एक दोस्त की ही स्मृति है। हालांकि उत्तरकाशी के डिग्री कॉलेज में गोपाल और मेरे विषय अलग-अलग थे। मैं साइंस का विद्यार्थी था , फिर भी गोपाल से बहुत जल्द ही एक अलग किस्म का जुड़ाव बन गया था ।आरंभ से ही वह बेहद विनम्र, सरल और संकोची किस्म का व्यक्ति था। बहुत आसानी से वह किसी से घुलता मिलता नहीं था। लेकिन फिर भी उसके व्यक्तित्व में एक चमत्कारिक आकर्षण था। वह अपने इसी गुण के कारण बहुत जल्दी लोगों का चहेता बन जाता था। मुझे यह भी लगता है कि उसकी सरलता बहुत आसानी से उसको सबका प्रिय बना देती थी। उसका परिवार उत्तरकाशी का बहुत प्रतिष्ठित परिवार था। उसके पिता उत्तरकाशी के बहुत सम्मानित वकील थे। उनका परिवार शहर में उनके बहुत बड़े घर में संयुक्त रूप से रहता था और उनके घर में हमेशा ही धनारी इलाके से आए गांव के लोगों का आना जाना लगा रहता था।
उसके घर की सबसे निचली मंजिल में एक कमरा गोपाल का भी था। उस कमरे की चाबी वहीं पर एक खिड़की में रखी रहती थी।मुझे यह भी याद नहीं कि वह कमरा कब हम दोस्तों का अड्डा बन गया। प्रायः दिन में कॉलेज के खाली पीरियडों में उस कमरे में चार पांच दोस्त जमा हो जातेऔर फिर चल पड़ता बड़ी बड़ी बहसों का सिलसिला। इन बहसों के विषय पढाई के किसी एक टॉपिक से लेकर देश और दुनिया के बड़े बड़े मुद्दों तक कुछ भी हो सकते थे। बहसों के भागीदार भी हमेशा अलग अलग होते क्योंकि कमरे में आने वाले भी हमेशा एक नहीं होते थे। गोपाल कभी इन बहसों का मूक श्रोता होता था तो कभी वह बढ़ चढ़ कर हिस्सेदार। उस कमरे में जमघट लगाने वालों में सीनियर जूनियर का फर्क नहीं होता और न ही सब्जेक्ट का। वहां साइंस ,आर्ट्स और कॉमर्स के नए छात्र भी होते और पोस्ट ग्रेजुएट कक्षाओं वाले भी गोपाल के उस कमरे में गजब का लोकतंत्र था। सबको अपनी बात कहने की जितनी आजादी थी ,उतनी ही अपनी मर्जी का काम करने की भी। कभी कभी बहसें कड़वे वाद विवाद में भी बदल जाती थीं ,मगर कमरे से बाहर आते ही सब कड़वाहट भूल जाते थे। आज जब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो लगता है कि उस कमरे ने हम दोस्तों की जिंदगी का रुख तय करने में कितनी बड़ी भूमिका अदा की है। उस कमरे के हम दोस्त चाहे विधायक बने ,नेता बने ,अधिकारी बने, डॉक्टर,अध्यापक या वकील कुछ भी बने मगर साथ में एक ईमानदार और सचेत नागरिक भी बने रहे। और दोस्तों के इस व्यक्तित्व निर्माण में गोपाल की ही केंद्रीय भूमिका रही।
इसी कमरे ने गोपाल को छात्र संघ का अध्यक्ष बनाने की राह तय की और इसी कमरे ने उसके जीवन की दिशा भी। छात्र जीवन के बाद ही राजनीति में उसकी दिलचस्पी ने उसे लखनऊ में उत्तर काशी के तत्कालीन विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री बलदेव सिंह आर्य का जनसंपर्क अधिकारी बना दिया। आर्य अपनी उम्र के कारण उत्तर कशी के दूरदराज के इलाकों तक जा नहीं पाते थे और लखनऊ में उन्हें एक ईमानदार और विश्वसनीय सहयोगी की जरूरत थी। गोपाल इन दोनों मामलों में ही खरा उतरता था ,इसलिए यह जोड़ी जम गयी। लखनऊ के प्रवास ने गोपाल के व्यक्तित्व में दो बड़े प्रभाव डेल। एक तो उसे यहाँ व्यवहारिक राजनीति का अच्छा सबक सीखने को मिला ,दूसरा आर्य की ईमानदार राजनीति का पाठ भी उसकी रगरग में घुस गया।
बलदेव सिंह आर्य के साथ रहने का गोपाल को एक लाभ यह भी हुआ कि वह सचिवालय की ड्राफ्टिंग का माहिर बन गया । स्वयं बलदेव सिंह आर्य ने एक बार हमें बताया था कि गोपाल का पत्र लिखने का तरीका ऐसा होता है कि उसकी फाइल कहीं रूकती ही नहीं । इस अनुभव का लाभ उसने बाद में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद की अपनी राजनीतिक पारी में बखूबी उठाया ।
छात्र नेता से विधायक तक पहुंचने के सफर में उसने ब्लाक प्रमुख का चुनाव भी जीता। और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव जीतने के बाद जो कार्य उसने अपने ब्लॉक में किए उन्हीं कार्यों ने उसको विधायक बनाने मैं भी मदद की। एक विधायक के रुप में वह अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय था और स्थानीय जनता उस पर बहुत भरोसा करती थी। विधायक के रुप में विकास योजनाएं शुरू करवाने के बाद वह स्वयं इस बात का ध्यान रखता था कि काम स्तरीय हो और उसमें किसी तरह का भ्रष्टाचार ना हो। इस कारण अनेक बार वह ठेकेदारों के बीच खासा अलोकप्रिय भी रहा । जनता के हितों पर वह सबसे अधिक ध्यान देता था और जनता का हित ही उसकी पहली प्राथमिकता थी। उसके पुराने मित्र रहे देहरादून निवासी रमेश बमरारा बताते हैं कि एक बार देहरादून के उसके विधायक निवास में उसके इलाके के बहुत सारे लोग, जिनमें उसके अपने कार्यकर्ता भी थे, एक कर्मचारी का तबादला रुकवाने के लिए सिफारिश लेकर आए।गोपाल ने उनकी बात ध्यान से सुनी और फिर उन्हीं से सवाल किया कि आप लोग क्या चाहते हो ? अपने इलाके का है अथवा इस कर्मचारी का हित। इसके खिलाफ भ्रष्टाचार की अनेक शिकायतें हैं और लोग इसके काम करने के तरीके से बहुत परेशान हो रहे हैं। ऐसे में इसका तबादला रुकवाने का प्रयास निरर्थक है क्योंकि यह व्यक्ति जनता का हित करने के बजाए लोगों को परेशान और दुखी कर रहा है। यानी गोपाल अपने कार्यकर्ताओं को नाराज करने का जोखिम तो लेने को तैयार रहता था मगर अपने क्षेत्र की आम जनता का अहित होते हुए नहीं देखना चाहता था।
गोपाल की सरलता, उसके व्यक्तित्व की पारदर्शिता और हर छोटे-बड़े व्यक्ति की बात को गंभीरता से सुन कर उसका समाधान करने की कोशिश करना , उसकी लोकप्रियता की मुख्य वजह थी। आम राजनेताओं की तरह दो दो बार विधायक होने के बावजूद उसने कभी अपने को आम लोगों से अलग नहीं किया। उसकी सादगी में कोई बदलाव नहीं आया और न ही आम लोगों से मिलने के उसके तौर-तरीकों में। वह बेहद स्पष्ट वादी भी था और गलत बात का विरोध करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता था। एक बार उत्तरकाशी की एक शिक्षिका से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दुर्व्यवहार पर उसने न सिर्फ उस शिक्षिका को सांत्वना दी थी बल्कि मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उनके व्यवहार के लिए अपनी नाराजगी भी जताई थी । बीजेपी का विधायक होने के और निजी जीवन में बेहद धार्मिक होने के बावजूद वह सांप्रदायिक कट्टरता से बहुत दूर था। सामाजिक सौहार्द का वह प्रबल समर्थक था और सही मायनों में सबको साथ लेकर चलने में यकीन करता था । वह अपने विरोधियों की बात को भी सुनने का माद्दा रखता था और अपनी विचारधारा से असहमत लोगों की बात को भी। अपनी बात को दूसरे पर थोपने की भी कोशिश वह कभी नहीं करता था । वह जनाधार की राजनीति करता था और इसी वजह से बीजेपी में होते हुए भी वह किसी गुट में शामिल नहीं था , किसी तरह की गुटबाजी, खेमेबाजी में शामिल नहीं था।
इधर कुछ वर्षों से गोपाल के सहयोगी रहे पंकज कोसवाल कहते हैं, विधायक गोपाल सिंह रावत जी व मेरे विचारों में भारी फर्क था ,लेकिन वह सब के विचारों का सम्मान करते थे । वह अपनी राय ,विचार थोपते नहीं थे और अपने विचारों से इत्तेफाक न रखने वालों के प्रति कोई धारणा भी नहीं बनाते थे ।वह किसी के प्रति न तो कोई पूर्वाग्रह रखते थे और न ऐसे लोग अपने इर्द-गिर्द जमा होने देते थे जो किसी के प्रति भी किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर अपने विचार बनाते हैं। वहां मजबूत व्यक्ति थे। क्षेत्र के हितों को सर्वोपरि रखते थे ।साफ छवि के थे ।वह सार्वजनिक इंसान थे ।नेता से पहले एक संवेदनशील इंसान थे ,सबके प्रिय थे ,सब के खास थे और हमेशा रहेंगे।
गोपाल का न होना मेरे भीतर एक पीड़ादायक खालीपन भर गया है ।चालीस साल से ज्यादा लंबा साथ था ,एक झटके में सब खत्म हो गया।वह बहादुर था इसलिए बीमारी से लड़ा भी बहादुरों को तरह ।लेकिन अंततः हार ही गया। एक संवेदनशील इंसान के इस तरह चले जाने से उत्तरकाशी से रिश्ता ही टूट गया लगता है।
3 Comments
Pankaj Kushwal
स्व. गोपाल सिंह रावत जी शासन को भेजे जाने वाले पत्रों में वर्तनी का और भाषा को बारिकी से जांचते थे। एक पत्र को कई बार लिखकर उन्हें देना पड़ता था लेकिन भाषा पर कभी संतुष्ट नहीं होते थे। उनका मानना था कि पत्र में शब्द कम हो लेकिन शब्दों का चयन ऐसा हो पढ़ने वाले को इस पर कार्यवाही करनी ही पड़े। वह तत्कालीन उत्तर प्रदेश में गंगोत्री से विधायक बलदेव आर्य जी के निजी सहायक थे और तब पत्र हाथ से लिखे जाते थे ऐसे में हाथ से लिखने पर ध्यान रखना होता था कि गलतियां न हो ऐसे में कांट छांट की बजाए नए पेड पर नया पत्र लिखना पड़ता शायद वह लंबे अभ्यास के बाद इसमें सिद्धहस्त हो चुके थे ऐसे में वह हमसे भी अपेक्षा करते कि हर पत्र ढंग से लिखा हो। पत्र की भाषा वर्तनी को वह बहुत बारिकी से देखकर ही हस्ताक्षर करते…
पत्र लिखने के मामले में जयेंद्र पंवार जी के मुरीद थे, अठाली गांव के निवासी जयेंद्र पंवार 2007 से 2012 तक विधायक गोपाल सिंह रावत जी के निजी सहायक रहे थे, वर्तमान में धनोल्टी विधायक प्रीतम सिंह पंवार के निजी सहायक हैं। जयेंद्र पंवार जी आज भी पत्र हाथ से लिखते हैं, गलतियों की गुंजाईश न्यून होती है, लेखनी ऐसी साफ कि हर अक्षर साफ साफ आंखों के सामने से गुजरता है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने एक बार विधायक गोपाल सिंह रावत जी से भी पूछा था कि हाथ से इस जमाने इतना अच्छा पत्र लिखता कौन है। कई दफा जयेंद्र पंवार जी भी विधायक गोपाल सिंह रावत जी के पत्र लिखा करते थे।
सोशल मीडिया पर लिखी जाने वाली टिप्पणी की वर्तनी पर भी विधायक गोपाल सिंह रावत जी बहुत ध्यान देते हैं, भाषा व वर्तनी में अशुद्धि होने पर टोका करते थे और उसे दुरूस्त करने पर ध्यान देते थे। शासकीय पत्रों की ड्राफ्टिंग के लिए वह एक संस्थान जैसे थे….
कुलदीप सिंह परमार
मार्च 2016 में गोपाल सिंह रावत से मेरी मुलाकात गंगोत्री मंदिर में हुई थी , उस दिन वह भाजपा हाईकमान से 2017 के चुनाव की हरी झंडी मिलने पर गंगा मैया का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु गंगोत्री आए थे ।परिचय के उपरांत मैंने उन्हें जीत की अग्रिम शुभकामनाएं दीं तो वह बहुत खुश हुए थे ,अक्टूबर 2018 में वह अपने क्षेत्र के सुक्खी टॉप में मुझे मिले और देखते ही पहचान गए ,तुरंत उठकर हाथ मिलाया और आत्मीयता से मिले ।जबकि मैं मुरादाबाद का निवासी हूं और उनकी विधानसभा का वोटर भी नहीं था ।ऐसे मिलनसार की कमी हमेशा खलेगी । विदाई रावत ,ईश्वर आपकी आत्मा को शांति प्रदान करें ।
Pratap
स्व0 गोपाल रावत जी के बारे में यदि कहीं कुछ भी लिखा जाता हो तो उसमें विजयपाल सजवाण का नाम जरूर जुड़ा मिलता है, किन्तु आपके लेख में उनका नाम नदारद होने की वजह हैरान करती है।