बी. आर. पन्त
पिथौरागढ़ जनपद के सुदूर ग्रामीण अंचल में अवस्थ्ति सेही गांव में इसी माह 1957 जन्में प्रोफेसर रघुवीर चन्द का बचपन सामान्य ढंग से गुजरा। आपका निवास सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में होने के कारण, आपने अपना अध्ययन बड़ी लगन से पिथौरागढ़ से पूर्ण किया। स्नातक और स्नाकोत्तर में आपने श्रेष्ठ अध्यापकों डाॅ0 भगवती प्रसाद मैठानी और डाॅ0 कमलेश कुमार आदि से शिक्षा प्राप्त की तथा इन्हीं अध्यापकों ने आपको भूगोल में शोध की प्रेरणा भी दी। आपने रा0 म0 वि0, पिथौरागढ़ में प्राचार्य पद पर आसीन डाॅ0 महेश्वर प्रसाद के निर्देशन मेेें शोध कार्य प्रारम्भ किया तथा इसी शोध के दौरान आपकी नियुक्ति 1977 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौढ़ी परिसर में हो गई। सन् 1978 में आपका चयन कुमाऊँ विश्वविद्यालय के डी एस बी परिसर में हो गया था। इसी अध्ययन और अध्यापन के दौरान आपके 100 से अधिक राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर के भौगोलिक एवं शोध पत्रिकाओं में शोध प्रकाशित हुए हैं। आपके द्वारा अलास्का एण्डीज शोध अध्ययन विशेष चर्चा का विषय रहा है।
आपने हिमालियी समाज, पर्यावरण, ग्रामीण क्षेत्रों का परिवर्तन, पलायन, संस्कृति, कृषि उत्पादकता, बेकार भूमि प्रबन्धन, जनसंख्या आदि पहलुओं पर कार्य किया। उक्त हिमालयी समाज का अध्ययन करने में उनकी विशेष रुचि थी।
आपने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पोषित वृहद एवं लघु योजनाओं में अध्ययन किया। आपके द्वारा हिमालय में हो रहे जलवायु परिवर्तन एवं ग्रामीण जीवन में उसके प्रभाव पर भी अध्ययन किये गये ।
अनेक ज्वलन्त विषयों पर आपके निर्देशन में दो दर्जन से अधिक शोध छात्रों ने अपना शोध कार्य पूरा किया। आपने भूटान की जनजाति ब्रोकपास पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। आपने अनेकों अन्र्तराष्ट्रीय संस्थाओं में सदस्य एवं संयोजक की भूमिका का भी निर्वहन किया।
वर्ष 2011 में आपने अन्र्तराष्ट्रीय भूगोल संघ के बैनर तले एक अन्र्तराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें लगभग 20 राष्ट्रों के शोधार्थियों ने भाग लिया। बाद में उन्हीं शोध पत्रों को स्प्रींगर जैसे प्रकाशन ने प्रकाशित किया। कई राष्ट्रीय एवं अन्र्तराष्ट्रीय भौगोलिक पत्रिकाओं के आप आजीवन सदस्य भी थे।
कु.वि.वि. नैनीताल में अध्यापन के दौरान आप प्रोफेसर शेखर पाठक, डाॅ. गौतम भटटाचार्य तथा राजीव लोचन साह जैसे हिमालय से प्रेम करने वाले लोगों के सम्पर्क में आये। आपने पहाड़, नैनीताल समाचार जैसी संस्थाओं का सहयोग ही नहीं किया वरन उनके प्रकाशन में भी सहयोगी रहे।
मुझे मलाल है कि पहाड़ फाउन्डेशन से उनके सानिध्य में प्रकाशित होने वाली पुस्तक ‘उत्तराखण्ड की जनसंख्या का बदलता परिदृश्य’ उनके जीते जी प्रकाशित नहीं हो सकी, पर भूटान के सांस्कृतिक एवं ग्रामीण परिवेश पर हाल ही में उनकी एक अन्य पुस्तक प्रकाशित हुई है।
वर्ष 2015 से वो लगातार बीमार रहे पर बीमारी उनकी जीवटता को तोड़ नहीं पाई। बीमारी के बाद भी उनके अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। पहाड़ द्वारा आयोजित एवं संचालित ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ 1984-1994 एवं 2004- 2014 के वो लगातार सहयात्री रहे।
मैं अत्यधिक भाग्यशाली हूं कि प्रोफेसर चन्द मेरे शिक्षक रहे। मैंने उनके निर्देशन में शोध तो नहीं किया परन्तु उनका मार्ग निर्देशन मुझे मिलता रहा। वर्ष 1995-96 से में कई शोध पत्रों में मैं उनका सह लेखक रहा।
आपके इस दुनिया से चले जाने के बाद हम सब सहयोगियों एवं शिष्यों के जीवन में एक रिक्तता हमेशा महसूस की जायेगी वो हम सब को 26 मार्च 2021 को छोड़ कर अन्नत यात्रा पर चले गये हैं लेकिन उनके बताये रास्ते पर हम सब शिष्य एवं सहयागी चलते रहेंगे इस तरह उनकी उपस्थिति हम सब के बीच बनी रहेगी।
लेखक अध्यापन के कार्य से जुड़े हुए हैं और रघुवीर चंद जी के सहयोगी भी रह चुके हैं।