प्रमोद साह
अक्टूबर 2020 को गौतम शांतिलाल अडानी को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स द्वारा मुकेश अंबानी के बाद भारत के नंबर दो सबसे धनी व्यक्ति के रूप में चिन्हित किया और उनकी कुल संपत्ति 25.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर अर्थात 1 लाख 90 हजार करोड़ रूपया आंकी गई तो उनके बिजनेस मॉडल को समझने में अचानक दिलचस्पी बढ़ गई।
आखिर वह कौन सा चमत्कारिक यंत्र है जिसने गौतम अडानी को भारत के औद्योगिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले 18 87 में स्थापित टाटा संस और 1918 में स्थापित बिडला ब्रदर से आगे कर दिया ? अगर आप इसे समझेंगे तो चौंक जाएंगे कि व्यापार और राजनीति का यह गठजोड़ आखिर कैसे तेजी से फल-फूल रहा है। मेक्सिको और मिस्र में भी इस प्रकार के गठजोड़ की कीमत लोकतंत्र ने चुकाई है. इसे फिर अलग कहानी के रूप में देखेंगे। स्वतंत्र और प्रतिस्पर्धा के रूप में व्यापार करना किसी भी नागरिक का संवैधानिक अधिकार है । अपनी तरक्की के लिए उसे ऐसा करना भी चाहिए लेकिन यहां कहानी को रोचक बनाने के कुछ और तथ्य हैं । आइए समझते हैं ।
गौतम अडानी का जन्म 1962 में हुआ और तकनीकी भाषा में वह एक मेहनती व्यापारी हैं जो कारोबार के लिए ग्रेजुएट की पढ़ाई छोड़ गए।
1988 में “अडानी एक्सपोर्ट” की पहली कंपनी पार्टनरशिप में लगाई लेकिन विशुद्ध मालिकाना कंपनी अडानी इंटरप्राइजेज 1993 में स्थापित हुई. 2020 में अडानी ग्रुप की 211 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं। जिनमें से 26 कंपनियां 2020 में, 31 कंपनियां 2019 में रजिस्टर्ड हुई। यह आंकड़ा अडानी ग्रुप की रफ्तार को समझाने के लिए काफी है कि जिन 2 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था मंदी में है। उस वक्त अडानी ग्रुप अपने कारोबार की 25% कंपनियों की स्थापना कर रहा है । अडानी ग्रुप की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि गुजरात सरकार द्वारा 1995 में मुंद्रा पोर्ट का मैनेजमेंट दिया जाना है ।
आज पावर डिस्ट्रीब्यूशन, शीपिंग कॉरपोरेशन, रियल स्टेट, कोल माइनिंग, सोलर एनर्जी, दाल निर्यात और खाने का तेल आयात और कारोबार में अडानी समूह बड़ी भूमिका निभा रहा है। अडानी समूह के व्यापार का जो प्रमुख सूत्र है, वह व्यापार की नीतियों को परिवर्तित कर लाभ कमाना रहा है. जैसे कुकिंग ऑयल , कोल आदि के आयात निर्यात में पहले डिस्चार्ज पोर्ट पर सामान की गुणवत्ता माप कर भुगतान का बिल बनता था । लोडपोर्ट से डिस्चार्ज पोर्ट तक सामान की गुणवत्ता पर केमिकल रिएक्शन टूट-फूट से जो भी नुकसान होता था, वह एक्सपोर्टर के खाते में जाता था । अब आडाणी ने इस नियम को बदलकर डिस्चार्ज पोर्ट रिस्पांसिबिलिटी को लैंडपोर्ट रिस्पांसिबिलिटी में तब्दील कर हजारों करोड़ों रुपए का रास्ता साफ कर दिया।
एसी ही बुद्धिमता का काम अडानी समूह ने महाराष्ट्र ईस्टर्न ग्रिड की पावर सप्लाई में लागत बढ़ाने के लिए किया. पावर ट्रांसमिशन में प्रयुक्त इक्विपमेंट जो कि चीन से 3 लाख 29 हजार पांच सौ छियासी डॉलर में बिलिंग थी को दुबई की कंपनी के माध्यम से बिल करा कर 42 लाख 85 हजार 10 डालर में खरीदना दिखा कर 13 सौ प्रतिशत का मुनाफा कमाया और हमेशा के लिए विद्युत उत्पादन लागत में वृद्धि कर एक सतत लाभ भी प्राप्त किया।
अडाणी समूह पर मनी ट्रांसफर और सिफ्टिंग के भी आरोप लगने शुरू हुए हैं. 2016 -17 में जो 17 हजार करोड़ के पनाना पेपर्स में एक नाम उनके बड़े भाई विनोद अडाणी का भी था. उस प्रकरण का क्या हुआ नहीं मालूम ? लेकिन इस बीच अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेजरी से एक चौंकाने वाली खबर आई है . 2011 से 2017 के बीच फिनसेन फाईल्स जो कि फाइनेंसियल इंटलीजेंस एसेसमेंट द्वारा जारी रिपोर्ट , जो हमारी ई.डी की तरह संस्था है, की रिपोर्ट में उल्लेख है कि सेसल्स कि थियोनविले फाइनेंसियल कंपनी जिसका की जमीन में अस्तित्व नहीं है, द्वारा इस अवधि में 2 ट्रिलियन डॉलर जो कि भारत के अर्थव्यवस्था का दो तिहाई हिस्सा हो जाता है का संदिग्ध ट्रांजैक्शन अडानी समूह को होने की आशंका जताई जा रही है. इस दिशा में क्या कुछ होगा यह भविष्य तय करेगा । लेकिन यह बहुत चौंकाने वाले संकेत है।
अडानी ग्लोबल्स का हेड क्वार्टर सिंगापुर है. इस बीच अडानी ग्रुप्स की सरकारी देनदारियों बहुत तेजी से बढ़ रही है उसकी क्या मंशा होगी यह वक्त बताएगा ? 2006-2007 अडानी ग्रुप का राजस्व 16993 करोड था । कर्ज 4353 करोड यानी राजस्व से कर्ज करीब एक चौथाई था. अब 2020 में राजस्व 96 हजार करोड़ है तो कर्ज 2 लाख 22 हजार करोड. यानी राजस्व के दो गुने से अधिक कर्ज.. बांड हटाकर शुद्ध लोन 1 लाख 65 हजार करोड़ है। यहां सिर्फ इतना गौर करना होगा कि जी विजय माल्या जब तूफान उठा रहे थे, तो उनका कर्ज सिर्फ 9 हजार करोड़ था।
किस्से बहुत हैं , जगह कम।
(श्रोत : इंडियन एक्सप्रेस, गूगल्स, सत्य हिन्दी , थर्ड आई )