(उत्तरकाशी टनल में फंसे मजदूरों को लेकर यह पश्चिमी हिमालय पर लगातार काम कर रहे प्रख्यात भू वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल की त्वरित टिप्पणी है।)
रविवार प्रातः यमुनोत्री से गंगोत्री को जोड़ने वाली लगभग साढ़े चार किमी. लम्बी सुरंग में एक गंभीर हादसा हो गया। उसके मुहाने से लगभग 300 मी अंदर सुरंग धंस गयी। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण था। हर आदमी चिन्तित था। पर जो सूचना हमें मिली है, उसके अनुसार कोई भी आदमी हताहत नहीं हुआ है पर 40 मजदूर अभी तक अंदर फँसे हुए हैं, जिनको बचा के बाहर निकालने का कार्य चल रहा है। यह घटना अपने आप में एक प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है जब हिमालय की हम बात करते हैं।
एक भू वैज्ञानिक के तौर पर मैं यह बताना चाहता हूँ कि दो बड़े सरप्राइसेस हमको अमूमन सुरंग बनाते समय मिलते हैं। पहला पानी का अचानक निकल जाना, दूसरा अनेकेसपकटेड शीयर्ड रॉक्स का काउंटर करना। जब हम सुरंग को एक्सप्लोड करते हैं। अब यहाँ पर प्रश्न खड़ा होता है कि जब इस सुरंग को बनाना शुरू किया गया होगा, तब इसकी जियोलॉजिकल और जियोटेकनिकल जाँच की गई होगी। जब जियोलॉजिकल और जियोटकनिकल जाँच होती है, तब उसकी रिपोर्ट उस एजेंसी को दी जाती है, जो खुदाई का कार्य करती है। मैं यह प्रश्न उठा रहा हूँ कि क्या उस जियोलॉजिकल और जियोटेकनिकल रिपोर्ट में यह कहा गया था कि यहाँ पर जो चट्टानें हैं वो काफी कमजोर और शीयर्ड हैं। मैं इस बात को इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस स्थान से कुछ किमी उत्तर-उत्तर पश्चिम को जाते हैं तो मेन सेंट्रल थ्रस्ट शुरू हो जाता है, जिसके कारण उसके आसपास की कि चट्टानें काफी कमजोर हो जाती हैं। आपने धरासू बेंड देखा होगा। मैं अभी कुछ दिन पहले ही देख कर आया हूँ कि तीन लेवल की सड़कें बन रही हैं, जो शीयर्ड फ्लाइट्स रॉक्स हैं। जहाँ पर ये घटना हुई है वहाँ का रॉक टाइप क्या है उसका मुझे ज्ञान नहीं है। परन्तु एक बात दावे से कह रहा हूँ कि अब बहुत हो गया है। कब तक इस तरह की घटनाओं को हम नज़रन्दाज़ करेंगे। हमें जिम्मेदारी तय करनी होगी, जो हम अभी तक भी सीख नहीं पा रहे हैं। ध्यान रखिये एक बहुत बड़ी सुरंग का काम हमारी रेलवे के लिए चल रहा है। खुदा-न-खास्ता जब ये रेलवे टनल पूरी हो जाती है और ऐसी ही कोई घटना हो जाती है तो इससे कितनी व्यापक तबाही होगी? इसकी कल्पना से ही मैं सिहर जाता हूँ। इसलिए मैं अनुरोध करना चाहता हूँ उन लोगों से जो योजनायें बनाते हैं या फैसले लेते हैं, जिन्होंने इसकी डी. पी.आर. बनाई है। इस डी. पी.आर. की बारीकी से जाँच होनी चाहिए। क्या इस डी. पी.आर. में यह बताया गया है कि चट्टानें काफी कमजोर हैं? जो बात मुझे बताई गई है कि इसके ऊपर काफी पानी था और गाँव वालों का भी कहना है कि जब सुरंग का काम शुरू हुआ तब से उनके पानी के स्रोत सूख गये थे।
मैंने जो पहले कहा था कि दो तरह के सरप्राइज टनल बनाते समय आते हैं पहला अचानक पानी का निकल जाना, जो हमने 2009 और 2012 में जोशीमठ में देखा है। इसी तरह से शीयर्ड रॉक्स यानी कि क्रिप्ल्ड रॉक्स बिकॉज़ ऑफ द कंप्रेशन टू द सेंट्रल थ्रस्ट के कारण रॉक्स काफी शीयर्ड होती हैं। इसके कारण यहाँ जमीन धँसने के चांस बनते हैं। अगर ये दो चीजें आपको पता थीं, जो कि डी. पी.आर. में होनी चाहिए। इसके बाद निर्माण कार्य करने वाली एजेंसी ने क्या सावधानियां बरतीं या नहीं बरतीं इसको हमें निर्धारित करना पड़ेगा और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।