विशेष प्रतिनिधि
उत्तराखंड में जन आक्रोश को दबाने के लिए अब नेताओं की मूक सहमति पर प्रशासन ने न्याय की मांग को लेकर आंदोलन करने वालों को मुकदमों में फंसा उन्हें भयभीत करने की रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है. आंदोलनकारियों में से यदि कोई सत्ता से जुड़ा हो तो उसे चुपचाप किनारे कर दिया जाता है. आपके बच्चों को गुलदार मार दे तो आपने अपने चारदीवारी के अंदर ही रोना—धोना है. अपना दुखभरा गुस्सा नेता—प्रशासन को गरियाते हुए सड़कों में नहीं उतरना है. अन्यथा आप मुकदमों को झेलने को भी तैंयार रहें. बागेश्वर में प्रशासन ने तो आंदोलनकारियों को ढंग से निपटाने वाली इस रणनीति पर अमल करना भी शुरू कर दिया है.
बीते दो साल में द्यांगण और गरुड़ क्षेत्र के कुलाऊं में गुलदार ने पांच मासूमों को निवाला बना लिया था। गुलदार के आतंक से परेशान होकर ग्रामीणों ने आंदोलन किया तो प्रशासन ने चुपचाप उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिए. राजनीति का शिकार हुए ग्रामीण अब कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. ग्रामीणों में सरकार और उसके नुमाइंदों के खिलाफ आक्रोश भी है लेकिन दहशत की वजह से वो सरकार के खिलाफ बोल भी नहीं पा रहे हैं.
गरुड़ घाटी के कुलाऊं, हरिनगरी क्षेत्र में गत वर्ष गुलदार ने लगातार मासूमों को निवाला बनाना शुरू किया तो गुस्साए लोगों ने गुलदार के भय से तब जंगल में आग लगा दी, ताकि गुलदार उनके इलाके से भाग जाए. आग से एक वन पंचायत को तब नुकसान भी हुआ और पेड़, पौधे आदि भी जलकर खाक हो गए. देर रात जिला प्रशासन ग्रामीणों की सुध लेने पहुंचा तो उन्हें ग्रामीणों के गुस्से का शिकार होना पड़ा. गुलदार के आतंक से निजात दिलाने की मांग को लेकर सर्वदलीय समिति का गठन किया गया और बैजनाथ तिराहे पर जनता ने अपना आक्रोश जताया.
सैकड़ों की तादात में लोगों का हुजूम इकट्ठा हुवा तो सड़क जाम हो गई. ग्रामीण वन महकमे के मुख्या से ही आमने—सामने बात करने पर आमदा थे. बमुश्किल कई घंटों के बाद तात्कालीन डीएफओ पहुंचे और ग्रामीणों से वार्ता हुवी. गुलदार के आतंक से निजात दिलाने के सांथ ही गांव के आसपास झाड़ियों के कटान पर ग्रामीण मान गए. कुछेक दिनों बाद वन विभाग ने शिकारी को प्रभावित क्षेत्र में तैनात करवाया और शिकारी ने गुलदार को ढेर कर दिया तो ग्रामीणों में गुलदार की दहशत कुछ कम हुवी.
ऐसा ही कुछ हद्वयविदारक घटना जिला मुख्यालय से सटे द्यांगण गांव में हुआ, यहां गुलदार ने एक मासूम को निवाला बना दिया तो वन विभाग के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. प्रभावित परिवार ने घर छोड़ दिया और वह अपने बच्चों के साथ मायके में रहने लगी. लेकिन गुलदार का आतंक जारी रहा और एक मासूम भी गुलदार को देख कर भागने लगा और इस जद्दोजहद में वह गिर गया उसकी मौत हो गई. न्याय की मांग को लेकर गुस्साए ग्रामीण द्यांगण बाईपास सड़क में बैठ गए. वन विभाग और प्रशासन के अधिकारियों से वार्ता के बाद बमुश्किल ग्रामीण रोते हुए अपने घरों को चले गए. कुछ दिनों बाद वन विभाग ने शिकारी को बुलाया. तीनेक दिन बाद आदमखोर गुलदार को ढेर कर दिया गया.
लेकिन कुछ दिनों बाद गांव में फिर गुलदार दहाड़ने लगा तो ग्रामीणों ने वन विभाग को इसकी सूचना दी. इस पर वन विभाग ने गांव में पिंजरा लगाया तो एक बड़ा गुलदार उसमें कैद हो गया जिसे बाद में बिनसर के जंगल में छोड़ दिया गया. इस बीच ग्रामीण अपने पुरानी दिनचर्या में मशगूल हो गए. कुछेक माह बाद ग्रामीणों को नामजद अदालती सम्मन पहुंचने लगे तो वो हैरान हो उठे ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ग्रामीणों की मदद करने के बजाए उन पर सरकार के इशारे पर कानून का भय बना रहा है.
इस बीच सोशल मीडिया अध्यक्ष भीम कुमार के नेतृत्व में कार्यकर्ता भी जिलाधिकारी से मिल अपना रोष जता चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि दो साल पहले द्यांगण और गरुड़ क्षेत्र में गुलदार ने पांच मासूमों को निवाला बना लिया था. इसके बाद ग्रामीणों ने सर्वदलीय संगठन बनाकर आंदोलन कर उन्होंने गुलदार को नरभक्षी घोषित करने की मांग की थी. प्रशासन और सरकार ने ग्रामीणों की मदद करने के बजाय उन पर मुकदमा दर्ज करवा दिए, जबकि ग्रामीण अपने बच्चों की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे थे, वे कोई अपराध में लिप्त नहीं थे. उनका कहना है कि जबसे गांव में समन आए हैं ग्रामीण दहशत में हैं.
वहीं पूर्व विधायक ललित फस्र्वाण समेत गरुड़ ब्लॉक के हरीनगरी, सालमगढ़ के ग्रामीणों ने कलक्ट्रेट में प्रदर्शन कर उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग की है. उन्होंने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर कहा कि मुकदमे वापस न हुए तो जेल भरो आंदोलन करेंगे. ग्रामीणों ने बताया कि तेंदुए से निजात दिलाने के लिए ग्रामीणों ने 15 नवंबर 2018 को आंदोलन किया. लेकिन ग्रामीणों को तेंदुए के आतंक से निजात दिलाने के बजाय सत्तापक्ष के नेताओं और पुलिस ने मिलीभगत कर विपक्ष के लोगों और ग्रामीणों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया. यहां तक कि कुलाऊं गांव की बसंती नेगी जो आंदोलन में नहीं थीं, उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर दिया गया.
पुलिस ने सर्वदलीय संघर्ष समिति के रंजीत रावत, भुवन पाठक, जितेंद्र मेहता, लक्ष्मण राम, प्रकाश कोहली, धरम सिंह रावत, हेम पंत, धरम सिंह परिहार , बसंती नेगी, भूपाल गढ़िया, बबलू नेगी, पुष्पा कोरंगा, महेश भंडारी, रमेश भंडारी के खिलाफ धारा-147, 341 और सात क्रिमिनल एक्ट में नामजद किया है. वहीं द्यांगण गांव के 25 लोगों पर भी इन्ही धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है. हैरानी की बता है कि इन मुकदमों में सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही सम्मन भेज उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किए गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि आंदोलनकारियों के खिलाफ दमनकारी नीति के चलते उन्हें मुलजिम बनाया गया है.
इसमें राजनीति हुई है और कांग्रेस समर्थितों को ही नोटिस आना उनके गले नहीं उतर रहा है. जनता का कहना है कि जिला प्रशासन सरकार के दवाब में आकर तमाम इस तरह के फैसले ले रहा है और लोगों पर दमनकारी नीति अपनाई जा रही है. वहीं, इस प्रकरण के बाद जिलाप्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालों के घेरे में है. यदि कांग्रेस समर्थितों को ही नोटिस दिए गए हैं तो यह उच्च स्तरीय जांच का विषय भी बन गया है.
इस बीच जन आक्रोश को देख क्षेत्रीय विधायक चंदन राम दास भी ग्रामीणें के समर्थन में आ गए हैं. उनका कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर ग्रामीणों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग की है. लेकिन तंत्र की दबंगई से डरे ग्रामीण अपनी जमानते कराने में लग गए हैं.