राजीव लोचन साह
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की सभी प्रदेशवासियों और राज्य आन्दोलनकारियों को बधाई!
आज उत्तराखंड राज्य के गठन को 24 वर्ष पूरे हो गये। मगर 30 साल पहले, वर्ष 1994 में जब राज्य आन्दोलन अपने चरम पर था, तब उत्तराखंड की जनता ने कुछ सपने देखे थे। उन सपनों को पूरा करने की उम्मीद में ही जनता ने इतना त्याग किया था, इतना संघर्ष किया था और अपनी जान की भी बाजी लगा दी थी। मुजफ्फरनगर नगर कांड जैसा हमला बर्दाश्त किया था। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हो रही थीं, इसीलिये पर्वतीय क्षेत्र की जनता को अपने लिये अलग राज्य की जरूरत महसूस हुई थी। इसीलिये तमाम महिलायें, पुरुष, युवक, सरकारी कर्मचारी, पूर्व सैनिक, किसान और मजदूर राज्य आन्दोलन में कूद पड़े थे।
मगर अफसोस की बात है कि 24 साल बाद भी जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। शराब और नशे का तंत्र और मजबूत हुआ है। महिलायें सड़क पर प्रसव कर रही हैं। जंगली जानवरों द्वारा खेती किसानी उजाड़ने के बारे में सरकार कुछ भी नहीं कर सकी है। न गैरसैंण राजधानी बन सकी है और न ही यहाँ की जमीनों को बचाने के लिये कोई अच्छा भूमि कानून बना है। बेरोजगारी बढ़ रही है और रोजगार की माँग कर रहे नौजवान डण्डे खा रहे हैं। आमजन की सिर्फ इतनी ही दरकार है कि उनके इलाके में एक अच्छा अस्पताल और एक अच्छा स्कूल खुल जाये तो वो अपनी जगह से कभी पलायन न करें पर सरकारों को ये बात आज तक भी सुनायी नहीं दी है। शान्त और पवित्र देवभूमि नफरत और दंगे फसाद के लिये प्रसिद्ध हो रही है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सालों साल पुराने वृक्षों और जंगलों को काटा जा रहा है। अस्थिर पहाड़ों में जेसीबी चला कर उनको हिलाया जा रहा है और फिर वही पहाड़ वहीं के निवासियों के घरों में गिर कर उनकी जिन्दगी बर्बाद कर रहे हैं और जहां सड़क चौड़ीकरण की सचमुच आवयश्कता है उन जगहों में आज भी ड्राइवर जान हथेली में लेकर गाड़ियां चला रहे हैं।
यह सब इसलिये हो रहा है, क्योंकि राज्य बन जाने के बाद यहाँ की सरकारों ने कभी राज्य आन्दोलनकारियों से परामर्श ही नहीं किया। यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि वे आखिर यह राज्य क्यों बनाना चाहते हैं।
यहाँ नैनीताल में ही हम देख रहे हैं कि न जाने किस-किस तरह के काम हो रहे हैं। करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, मगर किसी को नहीं मालूम कि क्यों हो रहे हैं और कौन करवा रहा है। क्यों करवा रहा है। गांधी जी और पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त की मूर्तियाँ हटायी जा रही हंै। डाकखाने की हेरिटेज बिल्डिंग को तोड़ा जा रहा है। बलिया नाला पहले से ही बेहद खतरनाक है और शहर के एक हिस्से को खा चुका है। अब उसके ऊपर भारी-भरकम पार्किंग बना कर नैनीताल के ऊपर आ रहे खतरे को और बढ़ाया जा रहा है।
यह सब रोका जाना चाहिये और राज्य आन्दोलनकारियों तथा नैनीताल की जनता को विश्वास में लेकर ही नैनीताल में विकास कार्य किये जाने चाहिये। उत्तराखंड का वास्तविक विकास तभी हो पायेगा, जब राज्य आन्दोलनकारियों की राय लेकर, उन्हें विश्वास में लेकर सरकारी नीतियाँ और योजनायें बनायी जायेंगी।