राजीव लोचन साह
भैया दूज के अगले दिन, सोमवार 4 नवम्बर की सुबह अल्मोड़ा जनपद के सल्ट विकास खंड के मरचूला के निकट कूपी बैंड के पास हाहाकार मच गया। पौड़ी गढ़वाल के किनाथ से रामनगर के लिये चली जी.एम.ओ.यू. की बस प्रातः आठ बजे के करीब 150 फीट नीचे खाई में गिर गई और 36 लोगों के प्राण पखेरू उड़ गये। 27 लोग घायल हुए, जिनमें कुछ का रामनगर, हल्द्वानी के अस्पतालों में इलाज चल रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी न सिर्फ तुरन्त हरकत में आये, बल्कि उन्होंने अस्पताल में घायलों की सुधि भी ली। प्रदेश सरकार की ओर से मृतकों को चार-चार लाख रुपये की अहेतुक सहायता दी गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भी इस घटना पर दुःख प्रकट करते हुए मृतकों को दो-दो लाख रुपये देने की घोषणा की गई है। यदि आसपास के गाँवों के युवक सक्रिय न हुए होते तो मृतकों की संख्या अधिक हो सकती थी। पुलिस और राष्ट्रीय व राज्य आपदा मोचन बल के जवानों के घटनास्थल तक पहुँचने से पहले ही स्थानीय लोगों ने घायलों को निकालने तथा निजी वाहनों से अस्पताल पहुँचाने का काम शुरू कर दिया था। आपदा मोचन बल के जवानों को पूरी तरह पिचक चुकी बस के ढाँचे को काट कर हताहतों को निकालना पड़ा।
दीपावली के कारण बहुत सारे लोग अपने घरों को आये थे और त्यौहार निबटा कर वापस काम पर लौट रहे थे। इसीलिये 42 सीटर बस में साठ से अधिक यात्री ठुँसे हुए थे। बताया जा रहा है कि ओवरलोडिंग के कारण बस नियंत्रण में नहीं थी। दुर्घटनास्थल से कुछ दूरी पहले बस ड्राइवर ने कहा भी कि कुछ लोग उतर जायें। मगर किसी को भी उतरना स्वीकार नहीं हुआ और कुछ ही क्षणों में यह हादसा हो गया।
अभी सरकार द्वारा आयुक्त कुमाऊँ मंडल दीपक रावत से मजिस्ट्रेटी जाँच करने को कहा है। दो परिवहन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। वैसे आधिकारिक रूप से बताया गया है कि यूके12पीए 0061 नम्बर की इस बस का फिटनेस मार्च 2025 तक वैध है।
एक जिम्मेदार और जनता की कद्र करने वाली सरकार हो तो इस तरह की घटनायें आये दिन नहीं घटतीं। राज्य बनने के बाद लगभग बीस हजार लोग बस दुर्घटनाओं में अपने प्राण गँवा चुके हैं। पिछले पाँच वर्षों में ही लगभग साढ़े पाँच हजार व्यक्तियों की मृत्यु सड़क दुर्घटनाओं में हुई है। एक बहुत छोटे प्रदेश के लिये यह कोई सामान्य संख्या नहीं है। इसके बावजूद यह सरकार के लिये चिन्ता का कारण नहीं है। नितान्त अनावश्यक रूप से, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों की आपत्तियों के बावजूद, जैव विविधता को नष्ट कर तथा पहाड़ों के अस्थिपंजर हिला कर चारधाम के लिये आॅल वैदर रोड बनायी जा रही है। विकास के नाम पर चुनिन्दा शहरों में जन विरोध के बावजूद सड़कों का चैड़ीकरण किया जा रहा है। किन्तु जहाँ पर सार्वजनिक परिवहन की सुविधा के लिये सड़कों को थोड़ा ठीकठाक किया जाना है, पैरापिट बनाने हैं, वहाँ पर सरकार की नजर ही नहीं जाती। वर्ष 2008 में, इस दुर्घटनास्थल से लगभग चालीस किमी. दूर धूमाकोट में एक भीषण बस हादसा हुआ था, जिसमें 48 लोग काल कवलित हुए थे। तब भी एक मजिस्ट्रेटी जाँच बैठी थी। उस जाँच में क्या निकला और उसके बाद सरकार ने क्या कार्रवाही की, इस बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम। बल्कि, धूमाकोट बस हादसे के बाद तो उच्च न्यायालय की सख्ती के बाद परिवहन क्षेत्र में एक आतंक सा छा गया था। बसों में ओवरलोडिंग बन्द हो गयी थी। नियम-कानूनों का उल्लंघन करने वाली गाडियों पर कठोर कार्रवाही शुरू हो गयी थी। डम्पर, ट्रकों तथा पिकअपों ने ज्यादा बोझ भरना खत्म कर दिया था। कुछ ही महीनों बाद वही पुरानी स्थिति वापस आ गई। यहाँ नैनीताल में ही एक जनहित याचिका के बाद सड़कों के किनारे निजी गाड़ियों की पार्किंग प्रतिबन्धित हो गयी थी। छः महीने के भीतर ही वह व्यवस्था टूट गयी है। जब प्रशासन सामान्य नियमों को लागू नहीं करवा सकता, शासन की रुचि सार्वजनिक परिवहन को संरक्षण देने में नहीं है तो धूमाकोट और मरचूला जैसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति तो होती ही रहेगी।