रमदा
आपको याद होगा कि, इंडिया यानि भारत में, मतपत्रों में “इनमें से कोई नहीं” यानि “ नोटा “ को शामिल करवाने के लिए कितनी कोशिशें की गयी थीं, कितनी लम्बी जद्दो जहद के बाद आम मतदाता को प्रत्याशियों के प्रति अपनी असहमति को अभिव्यक्ति दे सकने का आधार मिल पाया था.
किसी भी चुनाव में हिस्सा ले रहे प्रत्याशियों में से किसी एक को अनिवार्यतः चुनने की विवशता प्रजातांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है क्योंकि यदि सब सांपनाथ ही सांपनाथ खड़े हों तो एक सांप को ही चुनने की विवशता खतरनाक ही साबित होगी. किसी भी चुनाव-व्यवस्था में “नोटा“ की मौजूदगी मतदाता को यह अधिकार देती है कि यदि उसे उचित लगता हो तो वह सभी प्रत्याशियों के प्रति अपनी नापसंदगी को अभिव्यक्ति दे सके. यह उचित भी है क्योंकि किसी भी चुनाव में मतपत्र के माध्यम से मतदाताओं की सहमति प्राप्त कर सकना तभी सार्थक है जबकि मतदाता को नहीं कहने का भी अधिकार हो.
मताधिकार का इस्तेमाल नहीं करने के विकल्प से “नोटा” को अलग किया जाना चाहिए क्योंकि उस दशा में प्रत्याशियों के प्रति मतदाता की असहमति को अभिव्यक्ति नहीं मिलेगी.
मैं यह सब इसलिए कह रहा हूँ कि आगामी चुनावों के सदर्भ में अमुक राज्य के मुख्यमंत्री (यह सब होते एक जैसे ही हैं) ने चुनाव-आयोग से “नोटा” के विकल्प को हटा देने की मांग की है. उनका कहना है कि इससे चुनाव परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. उनका तर्क है कि यदि हज़ार वोट “नोटा” की बजाय किसी प्रत्याशी के पक्ष , विपक्ष में पड़े होते तो चुनाव परिणाम बदल जाता. मतलब यह कि मतदाता का स्वाभाविक या प्राकृतिक अधिकार गैर जरूरी है, ज़रूरी है किसी न किसी का किसी भी तरह चुना जाना.
“नोटा” की समाप्ति एक खतरनाक मांग है और जैसा कि संसद और विधानसभाओं में सुविधाओं और पेंशन बढ़ाने सम्बन्धी प्रकरणों में होता आया है व्यक्तिगत लाभों के लिए सभी राजनैतिक दलों के नेता आपसी मतभेद भूलकर एक हो जाते हैं. हो सकता है कि “नोटा” के विकल्प की समाप्ति के लिए भी सारे मौसेरे-भाई एक हो जाएँ. बाहुबल, धनबल, धर्मबल, जातिबल, सम्प्रदायबल आदि आदि के आधार पर मतदाता के सामने जाने वाले लोगों के लिए “नोटा” की अहमियत समझ सकना कठिन ही है.
वस्तुतः स्वस्थ प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा, जनपक्षीय नेतृत्व के चयन और बेहतर चुनाव व्यवस्था और मतदाता को ताक़त देने की ज़रुरत को दृष्टिगत रखते हुए “नोटा” को और अधिक शक्ति देने की ज़रुरत है. एक तरीका यह भी हो सकता है कि किसी चुनाव में मतदाताओं का बहुमत या एक निश्चित प्रतिशत यदि “नोटा” के पक्ष में हो तो सम्बंधित चुनाव निरस्त्र माना जाए और भावी चुनाव में इन सभी प्रत्याशियों के भाग ले सकने पर प्रतिबन्ध हो.
क्या कहते हैं ?