राजीव लोचन साह
भारत की राजनीति इस वक्त एक बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी हुई है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की केन्द्र सरकार पिछले नौ वर्षों से निरापद रूप में काम कर रही थी, मगर पिछले लगभग छः महीनों से उसका रास्ता कंटकाकीर्ण होने लगा है। होने को नरेन्द्र मोदी अभी भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, मगर अब धीरे-धीरे राहुल गांधी उनके सामने उभरने लगे हैं। मीडिया द्वारा पप्पू घोषित कर दिये गये राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा के बाद यह रूपान्तरण देखने लायक है। भाजपा द्वारा बेहद हड़बड़ी में शातिराना ढंग से राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से हटाने से प्राप्त सहानुभूति ने भी उनकी छवि में और निखार पैदा किया। कर्नाटका विधान सभा के चुनाव में बजरंग बली के आह्वान और अपने स्तर पर की गई नरेन्द्र मोदी की कड़ी मेहनत के बावजूद भाजपा के हार जाने से विपक्षी दलों का उत्साह ऐसा बढ़ा है कि छः राजनैतिक दलों ने 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ‘इंडिया’ नाम से अपना एक गठबंधन ही बना लिया है। स्वाभाविक है कि भाजपा की ओर से इस गठबंधन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, मगर यह देखा जाना चाहिये कि इस गठबंधन में शामिल अनेक दल अपने-अपने प्रदेशों में सफलतापूर्वक सरकारें चला रहे हैं। वैसे भी एक मजबूत केन्द्र सरकार के खिलाफ अनेक विपक्षी दलों का एक होकर चुनाव लड़ने का यह पहला प्रयोग नहीं है। 56 साल पहले वर्ष 1967 में ही गैर कांग्रेसवाद के नारे के साथ इन्दिरा गांधी के खिलाफ अनेक दलों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और पहली बार अनेक प्रान्तों में संविद सरकारें बनी थीं। आज की भाजपा की पूर्वज जनसंघ को भी तभी पहली बार जनता की मान्यता मिली थी। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की हृदयविदारक घटनाओं पर नरेन्द्र मोदी की सतत चुप्पी ने इंडिया गठबंधन को अपनी ताकत तौलने और हथियार तेज करने का अच्छा मौका दिया है। यह घमासान 10 महीने बाद होने वाले अगले लोकसभा चुनाव तक चलता रहेगा।