भुवन पाठक
जब अंततः तय हो गया कि भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद होगा तो प. नेहरू और सरदार पटेल ने महात्मा गांधी को ख़त लिखा – “15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा। आप देश के राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल हो अपना आशीर्वाद दें।”
गांधी ने इस ख़त का जवाब देते हुए लिखा “जब कलकत्ते में हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए दिल्ली कैसे आ सकता हूं? मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।”
निर्मल बोस जो कलकत्ता में गांधीजी के वक्तव्य लिखने का कार्य करते थे उन्होंने भी गांधीजी से कहा कि आपको आजादी के पर्व में जाना चाहिए। आप आजादी के महानायक हैं 15 अगस्त आपके जीवन का सबसे उद्दात सृजन है आपको दिल्ली जाना चाहिए। बोस ने 1941 में स्वर्ग सिधार चुके रवींद्रनाथ टैगोर की इस टिप्पणी को उद्धृत किया कि – ‘एक आदमी की परख या मूल्यांकन, उसके जीवन के सर्वश्रेष्ठ क्षणों से होना चाहिए, जब उसने अपना सबसे उदात्त सृजन किया हो, बजाय इसके कि रोजाना जीवन में, जो छोटी-छोटी चीजें होती हैं, उससे उसका मूल्यांकन हो।’
गांधीजी ने इसके उत्तर में निर्मल बोस से जो कहा, उसे सुनकर वे हतप्रभ रह गये। गांधीजी ने कहा, “हां यह सही है, पर रविन्द्र बाबू जैसे एक कवि के लिए, क्योंकि कवि को तो आसमान के तारों की रोशनी इस धरती पर उतारना है, लेकिन मेरे जैसे आदमी को तौलने के लिए जीवन के बड़े क्षणों से आपको नहीं मापना होगा, बल्कि इस बात से आंकना होगा कि मैं अपनी जीवन-यात्रा के दौरान अपने पैरों पर कितनी धूल एकत्र करता हूँ। ”
गांधीजी ने जो कहा वह करके दिखाया। आजाद भारत ने नोआखाली, बिहार और कलकत्ता में एक 77 साल के बूढ़े आदमी को चरखा कातते, लंबे पत्र लिखते, गरीबों का इलाज करते,अपनी लालटेन का शीशा खुद साफ करते, अपने कपड़े खुद अपने हाथ से धोते और अंतिम पंक्ति में मौजूद दुखियारों का दुख बांटते देखा। तड़के सुबह से देर रात अपनी टोली के साथ पैदल घूमते देखा, चार घंटे से अधिक कभी सोते नहीं देखा। इसके बाद भी उन्हें चुस्त, चौकस और अपने खुद के काम के प्रति सजग रहते देखा। उन्हें नंगे पांव घूमते और लोगों से हुई बातचीत कर नोट करते देखा। उन्हें खुद अपना खाना बनाते, कपड़ों को साफ करते और खुद का पाखाना साफ करते देखा।
उस अद्भुत आदमी की प्रार्थना सभा और चरखे के जादू का असर कलकत्ता की उन गंदी बस्तियों में दिख रहा था जहां सही एक साल पहले सीधी कार्यवाही के दिन सड़कें और गलियां लाशों से पट गयीं थीं। कलकत्ता के बारे में माउंटबेटन ने कहा था वहां जो विस्फोट होगा उसके सामने पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) की दर्दनाक घटनाएं फीकी पड़ जायेंगीं। माउन्टबेटन को भी यह अंदाज नहीं था कि 77 साल का यह बूढ़ा एक साल में पूरी स्थिति को उलट देगा। ठीक एक साल बाद 15 अगस्त 1947 को कलकत्ता में जो स्वतंत्रता दिवस मना उसे आज महसूस करना कितना रोमांचक है। 30 हजार लोगों की हिन्दू मुस्लिम भीड़ शंख बजाते हुए बेलियाघाट रोड पर स्थित हैदरी मंजिल की ओर बढ़ रही थी जहां वह बूढ़ा आदमी प्रार्थना कर चरखा कात रहा था । भीड़ को देखकर गांधीजी ने चरखा चलाना बन्द कर दिया और दर्शन देने के लिए छज्जे तक आ गए। गांधीजी ने स्वतंत्रता दिवस के लिए कोई औपचारिक संदेश तैयार नहीं किया था पर भीड़ को देखकर अपने आप ही उनकी जुबान पर जो शब्द आये वे जनता के लिए नहीं अपितु दिल्ली में आजादी का जश्न मना रहे नेताओं के लिए था।
गांधीजी ने चेतावनी देते हुए कहा कि सत्ता से बचो। सत्ता भ्र्ष्टाचार फैलाती है। उसकी तड़क भड़क के भृम में मत आओ । हमें याद रखना होगा कि इस जश्न में हम भारत के गांवों के गरीबों की सेवा कार्य को न भूल जाएं।
उन्होंने मिलने आये लोगों को बधाई दी और कहा कि आप लोगों की इस शानदार मिशाल से शायद पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के लोगों को प्रेरणा मिले।
गांधीजी के बाद सुहरावर्दी ने भाषण दिया। जो आदमी कलकत्ता के मुसलमानों का एकछत्र नेता था और जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन में शामिल था, उसने हिन्दू मुसलमानों की इस मिलीजुली भीड़ से कहा कि ” अब हमारा देश भारत है। हम इसी के लिए जिएंगे और इसी के लिए मरेंगे। आप लोग मेरे साथ जयहिंद का नारा लगाकर हिन्दू मुस्लिम मेलजोल को हमेशा के लिए अमर कर दो।
इसके बाद महात्मा गांधी एक ड्राइवर के साथ पुरानी शेवरलेट कार जिसका नम्बर 151 था, में बैठकर कलकत्ता शहर का चक्कर लगाने के लिए निकले। इस बार भीड़ ने महात्मा गांधी का स्वागत पत्थर और गालियों से नहीं अपितु फूलों, गुलाबों और जल की वर्षा से किया। लोगों ने बड़ी कृतज्ञता के साथ गांधीजी अमर रहें के नारे लगाए।
स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को शत शत नमन।
गांधी दर्शन
14 अगस्त 2022