केशव भट्ट
प्रिय मित्र,
लंबे अर्से बाद आपने फोन पर पूछा लिया कि पहाड़ में लोगों के क्या हालचाल हैं…? अब क्या बताता में उस वक्त.. और आप के पास भी इतना वक्त नहीं हुआ पहाड़ की पीढ़ा सुनने को.. सो सब ठीक हैं कह आपकी बात टाल गया.. वैसे भी आपको पहाड़ से विदा हुए अर्सा बीत गया ठैरा.. बचपन में, पहाड़ में पढ़ाई का कोई स्कोप नही है कह आप पढ़ाई के वास्ते महानगरों में चले गए ठैरे.. और कभी-कभार अपने बचपन की फोटो को देख आपमें पहाड़ का प्रेम उमड़ जाने वाला ठैरा तो आप फोन कर लेने वाले हुए..!
अब मित्र क्या कहूं.. वैसे भी आज के एडवांस वैज्ञानिक जमाने में सभी को सब पता ही चल जाने वाला हुआ कि कहां क्या हो रहा है ? वो अलग बात है कि तंत्र और नेताओं को पता चलने के बाद भी कुछ पता नहीं चलने वाला हुआ. अपने आंखों में सूरदास का चमत्कारी चश्मा लगाए ठैरे सब.. दूर एक गांव में कोई रो रहा था कि मंहगाई तो अब हिटलर के बनाए संत्रास जिसमें फव्वारों से गर्म पानी में साइनाइड निकलता था, कि तरह हो गई है.. नहाता हुआ शख्स तल्लीनता में आनंदित हो कब मर जाता था उसे मालूम ही नहीं चलता था.
प्रिय मित्र..! बताने-कहने के लिए तो इतना है कि उम्र ही बीत जाए. 2014 के बाद से यहां हर गांव के लिए सड़क खोद दी गई है. अब ये अलग बात है कि बरसात से पहले ही वो सड़क गायब हो टेड़ा-मेड़ा रास्ता भर रह जाता है.. बहरहाल! सरकारी कागजों में सब गांव अब फल-फूल गए हैं.
नेताओं अखबार-चैनलों में दावों की लंबी फेहरिस्त लिए चिल्लाने में लगे हैं कि अब सब ठीक हो गया है.. जनता बहुत सुखी है.. अब उन्हें कौन बताए कि पहाड़ और पहाड़ के वासिंदे परेशां हो गए हैं नेताओं की ठग विद्या वाले वादों और कारनामों से. एक ओर जहां पहाड़ के गांव खाली होते चले जा रहे हैं वहीं खेत भी बंजर हो चले हैं. बचे-खुचे लोग जो गांव में रह गए हैं वो भी अब अपने मरने की बांट जोह रहे हैं. अब तो जानवरों के लिए घास काटने पर ही नेताओं के ईशारों पर महकमा महिलाओं को धमका रहा है. सुना ही होगा कि हेलंग में क्या-कुछ हुआ करके..
मित्र..! यहां रोजगार के नाम पर खुब भर्तियां हो रही हैं, लेकिन नेताओं के चरण पादुका वंदन करने वाले ही विभागीय कुर्सियों में पहुंच रहे हैं.. गलत के खिलाफ आवाज उठाने को श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर भेजने की चेतावनी दी जाती है.. अखबार-टीवी भी जो सही है उस पर ही लिखा दिखा रहे हैं. नारदमुनि रूपी पत्रकार भी मजबूर हैं अपने आकाओं के आगे..
मित्र! यहां वर्षों से हर बरसात में सड़क-रास्ते नेताओं-किटकनदारों के किए भ्रष्टाचार में रड़-बग अपना अस्तित्व ही खो जा रहे हैं. गढ़वाल के अंतिम गांव मलारी घाटी, ब्रदीनाथ, केदारनाथ कहें या कुमाउं के दारमा, व्यास-चौंदास, जोहार, दानपुर सब जगह रास्ते गायब होने के साथ ही न जाने कितनों को अपने साथ ले जाते हैं. एसडीआरएफ वाले ही देवदूत बन लोगों को बचाने में लगे हैं. लेकिन! मित्र इस मानव जनित आपदा के बाद नये काम में सबसे ज्यादा फायदा नेताओं और उनके चरण पादुका पकड़ने वालों को ही होने वाला हुआ. कितनों का घरबार उजड़ा.. पहाड़ कब तक ये सब झेलेगा.. इससे इनकी काया में कोई असर नहीं होने वाला हुआ. अपने चेहरे में लगी कालिख को शीशे में देख ये सज्जन झल्लाते हुए बंगले के सेवक को शीशे को साफ रखने को कहने वाले हुए.
मित्र..! बांकी फलसफा तो बहुत कुछ है कहने को.. तुम भी सोच रहे होगे कि, गलती ही कर बैठा इसे फोन करके.. मित्र तुम नाराज भी हो जाओ तो बीतती चली जा रही इस उम्र में अब मुझे कोई फक्र नहीं पड़ेगा.. लेकिन..! मित्र वक्त मिलने पर गाहे-बगाहे मैं तुम्हें जरूर बताउंगा कि मैं अभी जिंदा हूं और मेरी आंखे भी ये सब देख-महसूस कर रही हैं..
मित्र..! पत्र में कुछ जगह रह गई तो सोचा तुम्हें बता दूं कि गांव में धनुषाकार हो चुकी हमारी बुढ़ी बुआ, अनाथ हो चुके बिल्ली के बच्चों को बचाने की जुगत में लगी है, वहीं दूसरी जगह अपनी उम्र पूरी किए बगैर एक श्वान ’चीनू’ भी एक उम्रदराज की सनक के चलते बिना शिकायत कर हमें अलविदा कह अपनी अनंत यात्रा पर चला गया..
सादर..
तुम्हारा ही गांव का गंवाणी मित्र