दीपांशु पाण्डे
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने हाल ही में शिक्षा निदेशालय में निजी स्कूल संचालकों के साथ एक बैठक की और कहा कि पहाड़ों में निजी स्कूल खोलने पर सरकार संचालकों को भूमि एवं अन्य सुविधाएं मुहैया कराएगी। शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के आए इस बयान पर आजकल सियासत गरमाई हुई है।जब शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने पहाड़ों में निजी स्कूल खोलने पर बयान दिया तो विपक्षी नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उनके इस फैसले का स्वागत किया।
ज्ञातव्य है कि कांग्रेस सरकार के समय पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नानीसार अल्मोड़ा में 353 नाली जमीन स्कूल के नाम पर एक जिंदल को दी थी। उस समय उस ज़मीन के अलावा बहुत बड़े पैमाने पर ज़मीन हथियाई भी गई थी। स्कूल के नाम पर पूरे फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए। हरीश रावत (पूर्व मुख्यमंत्री ) ने लीज पर ज़मीन देकर उसका उद्घाटन किया और तीन तीन बार जांच करने की घोषणा भी की किंतु खुद जांच करना मुनासिब नहीं समझा। आज फिर से वही बात हम सभी के समक्ष आ रही है जो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के समय पर हुई थी ।उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष डांडाकांडा और नानीसार के प्रमुख आंदोलनकारी पी. सी. तिवारी के अनुसार जिनके द्वारा गांव वालों के साथ मिलकर नानीसार के पूरे प्रकरण की लड़ाई लड़ी गई थी , उनका कहना है कि जो ये निजी स्कूल खोलने का सवाल है इसके पीछे पहाड़ की ज़मीनों को हथियाने की एक बहुत बड़ी साज़िश है। क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के द्वारा जब गैरकानूनी रूप से नानीसार में स्कूल के नाम पर ज़मीन जिंदल को सौंप दी गई थी तो उस बहाने बहुत बड़े पैमाने पर ज़मीन पर कब्ज़ा किया गया।
वो ज़मीन उस समय हरीश रावत ने लगभग 1200 रुपया वार्षिक लगान पर गांव वालों की मर्जी के बिना उनके फर्जी दस्तावेज़ बनाकर गैरकानूनी रूप से लीज पर जिंदल को सौंप दी थी। और वहां की ज़मीन पर तमाम पेड़ कटवा कर उस जमीन पर कब्जा कर लिया था। गांव वालों को जब ये बात पता चली तो जमीन को बचाने के लिए नानीसार में एक बहुत बड़ा आंदोलन चला। बता दें कि उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी.तिवारी और उनके साथियों ने नानीसार में भू माफिया जिंदल का और उसके साथ शामिल तत्कालीन सरकार का दमन झेला हुआ है।
अभी फिर से निजी स्कूल खोलने के लिए ज़मीन देने की बात शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत द्वारा भी कही गई है कि पहाड़ों पर निजी स्कूल खोलने के लिए निजी संचालकों को भूमि और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। हजारों सरकारी स्कूलों ओर शिक्षकों से लैस उत्तराखंड के शिक्षा विभाग को बेहतर बनाने की कोशिश करने के बजाय उत्तराखंड की बची – खुची जमीनों को निजी हाथों में सौंपे जाने वाला यह बयान शिक्षा मन्त्री और सरकार की मनसा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।