चारू तिवारी
म्येरि ईज इस्कूलाक द्विपुर म बनी ठुल खिड़की में भैबैर रेडू सुणते हुये हम नानतिना पर लै आंख लगै ररुनैर भइ। हम बग्वाईपोखर (अल्म्वड़) म अपाण इस्कूलोक ठुल दंगडि और बगीच म ‘लुक्की’ (छुपम-छुपाई) खैलनैर भाइ। जस्सै आकाशवाणी बटिक ‘उत्तरायण’ कार्यक्रम उनेर भय, ईज हमुकौं जोरैल धात लगौं छी। ‘उत्तरायण’, ‘गिरि गुंजन’ और फौजी ‘भाइयों के लिये’ कार्यक्रम हम रोज सुणनैर भाय। ईज यूं कार्यक्रमों क लिजि हमर उसै ध्यान धरनैर भई जस हमर खांण-प्यंण और सैंतणंक। उन दिना रेडियो बटि भौत्ते गीत उनैर भाय- ‘ओ परुआ बौज्यू चप्पल कै ल्याछा यास/ फटफटानी हौंनी चप्पल क्यै ल्याछा यास।’ शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक गीत/कविताओं कं सुणनै हम ठुल भाय। शैद 1982-83 सैकि बात हुनैलि। मैकैं पत्त लागौ कि चैखुटि म एक कवि सम्मेलन या सांस्कृतिक कार्यक्रम हौंणौं। बाबूल कौय कि उ कार्यक्रम में हम लै जूंल। लेकिन बाबू कं जै काम पड़न्हौल वूं वहां नि अै सक।
उन दिना हमुकैं लै इतिहास, संस्कृति, साहित्य कैं जानणंक चस्क लगाण भै गौय। मैंकैं पत्त लागौ कि चौखुटियक पास बैरती गौं में बालादत्त त्रिपाठी ज्यूक पास बद्रीदत्त पांण्डे ज्यूक लिखी ‘कुमाऊं का इतिहास’ किताब छू। तब य किताब कैं मिलनैर नि भै। वीक कारण य भै कि किताब आउट आफॅ प्रिंट छी। किताब ल्हिणं और कार्यक्रम देखणां लिजी मि आपण गौं मनेला (गगास) बटी लगभग 35 किलोमीटर दूर चौखुटि एकलै पैदल ल्है गौई। उन दिनों इतुक गाड़ी लै नि चलनैर भाय। चौखुटि उन दिनों हमर लिजी बड़ भिसमंत जस हौय। सात समंदर पार जौस। बालादत्त ज्यू भाल मैंस भाय। उनूल मैं पर भरोस कर बै किताब य शर्त पर दी कि मि पड़बै उनुकूं लौटे द्यूं। भौत्ते पुरांणी किताब। जागि-जागि बै फाट्।ि उन दिनों फोटो स्टेटैक लै भलि व्यवस्था नि भै। भौत्तै कठिन होई इतू पन्नों क फोटो स्टेट करौंण। पैल्लि उन दिनों फोटो स्टेट करणं म प्लेट लागनैर भाय। डबल लै ज्यादा लाग जांछि। मि किताब कैं घर ल्याऊं। पूरि किताब उखाड़ बै चार हिस्सों में अगल कर दी। फिर हम चार दगड़ियांल किताब हातोंल लेखि दि। फिर राणिखेत जैबैर किताबैकि खूबसूरत बाइंडिंग कर बालादत्त त्रिपाठी ज्यूं कैं लौटे दी। त्रिपाठी ज्यूक भौत-भौत आभार माननूं कि उन जस लोगों क कारणैं हमूल दुनियक उज्याव देखौ। जब चैखुटियक इंटर काॅलेज में कार्यक्रम में पहुंचा तो पत्त चलौ कि वां मुख्य अतिथि हिन्दी अकादमी दिल्लिक सचिव, कुमाउनी भाषाक मर्मज्ञ डाॅ. नारायणदत्त पालीवाल ज्यू छैं। उन दिनों यास लौगनक देखण हमरि चेतनाक ठुल खिड़की खुलणं जस भौय। माइक बै आवाज आई- ‘शेरदा-शेरदा हैैगे भ्यार-भितैर/म्यर च्यौल लै धात लगूंणों शेरदा कबैर/होति हुनी मिलै कौंछि, य अड़होति हैगै/दिदी-भुलि कुनै छी य ज्वै रानैकि लै कौंण भगै।’ शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूकं सामणि बै देखण और सुणणक पैल मौक यैं मिलौ। आज उनैर पुण्यतिथि छू। आपण गीत-कविताओं म पहाड़ और आमजनैंकि पीड़ा कं बटौवणि कवि कं शत-शत नमन!
कुमाउनीक जनकवि शेरदा ‘अनपढ़’ उत्तराखण्ड साहित्यक और भाषा उन्नयनक लिजी काम करणीं भौत सम्मानित नाम छू। शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक पुर नाम शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ छू। लोग प्यारैल उनुथै ‘शेरदा’ कौंछि। उनूल आपंण जीवनक बारम बहुत सहज भावैल य कविता में व्यक्त करौ- ‘गुच्ची खैलनै बचपन बीतौ, अल्म्वाड़ गौं माल में/बुढ़ापा हल्द्वाणि कटौ, जवानी नैणिताल में/अब शरीर पंचर हैगौ, चिमाड़ पड़ ग्यीं गाल में/शेरदा सवा सेर ही, फंस गौ बड़ना जाल में।’ उनर पैदाइसौक दिन ठीक-ठीक पत्त न्हैंती। उ जमान में कैकैं आपण जनमबार याद लै नि हुनैर भै। जब बाद में उनूल आपण रचनाकर्म शुरू करौ तो सब दगड़िनाल उनर जनमबार 3 अक्टूबर, 1933 घोषित कर दी। उनर जन्म अल्म्वड़ बाजार बै तीन मील तल्ली माला गांव में हौछ। जब शेरदा चारै सालाक छि तब उनार बौज्यू य दुनिंक छोड़बैर चल बसीं। उनैर माली हालत भौते खराब छि। ईजकं आपण परिवार पालणांक लिजी जमीन और जैवर लै गिरवी धरण पडौ। भौत्ते छोटि उमर म गौं में कैके गौरु-भैंस चरौनक या नानतिनाक फाम करनणंक काम मिल गौइ। नानतिना कं झुल झुलाणांक आपण अनुभव कैं शेरदा एक कविता माध्यमैल व्यक्त करौ- ‘पांच सालैक उमर, गौं में नौकरि करण फैटूं/काम छि नान भौक, डाल हिलकूण/उलै डाड़ नि मारछी, द्विनौक है रौछी मन बहलुंण।’ य काम क बदाल म शेरदा कं आठ आन मिलछि। आठ बरसैक उमर म शहर यै ग्या। यां बचुली मास्टरनीक यां काम करन भैट। मास्टरनिलै शेरदा कं अक्षर ज्ञान करा। बार सालैक उमर म शेरदा आगरा ल्है ग्याय।
आगरा म छाटि-मोटि नौकरी करी। वां उनार ठुल दाज्यू एम्प्लोयमेंट आफिस में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी छी। एक साल वां घूमबैर 31 अगस्त, 1940 में सेनाक बच्चा कंपनी में भर्ती है ग्याय। नौकरि लागंणाक खुशी म एक कविता फुटि- ‘म्यर ग्वल-गंगनाथ दैंण है पड़ीं/भान मांजणि हाथ पर रैफल ऐ पड़ी।’ सौल-सत्र सालैक उम्र म फौज म सिपाई है ग्याय। उनुकैं सेना म मोटर ड्राइविंगक ट्रेड मिलौ। वैं गाड़ि चलौंण लै सिख। ट्रैनिंग पुरि हैछो तो पैल पोस्टिंग जालंधर म मिली। मेरठ, जालंधर, झांसी और जम्मू-कश्मीर म बार साल नौकरी करणां बाद पूना ल्हये ग्याय। उनर लेखणैंक शुरुआत लै पूना बटिक 1962 में है। उन दिनौं भारत-चीन लड़ैं चल रौछि। लड़ैं म जो सिपाइ घायल छी उनर दगड़ रौंणक मौक मिलौ। उनुहं बै लड़ैंक कुतुक बात सुण। ये आधार पर उनर पैल कविता संग्रह ‘ये कहानी नेफा और लद्दाख की’ हिन्दी में आ। य किताब उनूल ज्वानौंक बीचम बांटी। कुमाउनी म लैखणंक शुरुआत लैं यैं बै है। यैक बाद पहाड़ी महिलाओंक दर्द पर एक कविता संग्रै आ ‘दीदी-बैंणि।’ इमैं ‘शेरदा’ ल लेखौ- ‘गरीबी त्यर कारण रात दिन नि देखी/गुल्ली डंडा देखौ, शेरदा कलम-दवात नि देखी।’ ‘दीदी-बैंणि’ काव्य संग्रै क य कविता- ‘सुण लियों भला मैंसो, पहाड़ रूनैरो/नान-ठुल सब सुणौं, यौ म्यरौ कुरेदो/दीदी-बैंणि सुण लिया, अरज करुनूं/चार बाता पहाड़ा का, तुम संग कुनूं/चार बाता लिखि दिनूं, जो म्यरा दिलै में/आजकल पहाड़ में, हैरौ छौ जुलम/नानठुला दीदी-बैंणि, भाजण फै गई/ कतुक पहाउ़क बैंणि, देश में एै गयीं/भाल घर कतुक, हैगी आज बदनाम/जाग-जाग सुणि, नई एक नई काम।’
साल 1963 म पेटम अल्सर हौंणक बाद मेडिकल ग्राउंड पर रिटायर हैबैर घर यै ग्याय। तब उनैर उमर 24-25 सालैक छी। कैले उनुक बता कि यां काॅलेज म चारुचन्द्र पांडे छी। उं कुमाउनी में कविता करनीं। उनूं दगै मिलौ। शेरदा हैं पांडे ज्यू भौत प्रभावित भईं। पांडे ज्यूल उनैरि भैंट सुप्रसिद्ध लोकधर्मी ब्रजेन्द्रलाल साह ज्यू दगै करै। ब्रजेन्द्र लाल साह ज्यूंक अपाण पैल कविता सुणैं- ‘न्है घाघरि न्है सुरयाव/कसि काटीं ह्यून हिंगाव।’ य कविता सुंण बैर ब्रजेन्द्रलाल साह भौते प्रभावित हयीं। उनूल शेरदा कं रामजै कालेज म हौणि होलिक कार्यक्रम म आपण कविता सुणौं हैं बुला। वां कविता फुटी- ‘घर म न्हैति मेरि छबैलि/मैं कै दगै खेलूं होई/होई धमकी रै चैत में, सैंणि लटक रै मैत में।’ ब्रजेन्द्र लाल साह ज्यूल बता कि नैणताल म ‘गीत और नाट्य प्रभाग’ क एक सेंटर खुलणौं। वां तुमर जस कवि-कलाकारौंक जरूरत छू। तुम वां एप्लाई कर दियौ। उनूल वां एप्लाई करौ। काॅल लैटर लै ऐगौ। कुल पचास लोग छांटि ग्या। नैणताल में ‘गीत एंव नाट्य प्रभाग’ म कलाकारक रूप म नौकरी शुरू करी।
‘गीत एवं नाट्य प्रभाग’ में ‘शेरदा’ क रचनात्मकता कं एक नई दिशा मिली। यां नई-नई गीत बनी। नई-नई धुन कंपोज भईं। शेरदा ल भौत सारी कविताएं लैखीं। लोगौंल उनर कविताओं कं भौत्ते पसंद करौ। उनर आत्मविश्वास लै बड़ौ। पैलि मंचों जिली लेख। फिर कुछ साहित्यक लिजी लै। यां उनर संपर्क आकाशवाणी लखनऊ दगै हो। बाद म आकाशवाणी बैटि उनूल आपण भौत ठुल रचना-संसार बना। उनर कविता संग्रै ‘दीदी-बैणि’, ‘हसणैं बहार’, ‘हमार मैं-बाप’, ‘मेरि लटि-पटि’, ‘जांठिक घुंघुर’, ‘फच्चैक’ भौते लोकप्रिय छीं। उनार द्वि कैसट ‘हंसणैं बहार’ और ‘पंच म्याव’ नामैल बजार म आईं। कुमाऊं विश्वविद्यालय म उनार कविता लागीं। उनर गीत-कविताओं पर कतुकै शोध लै हैईं। शेरदाक रचना-संसार मानवीय संवेदनाओंल भरी छ। उं जीवन दर्शनाक कवि छैं। उनर हर कविता में जीवनक भौगि हुई यथार्थ शामिल छू। असल म उनर कविता उन लोगों आवाज छीं जो बुलै नि सकन। उं कतुकै रूपों में भ्यार आईं। प्रेम, प्रकृति, जीवन, अध्यात्म, जनसंघर्ष, आम आदमीक संकट, प्रतिकार, दरकणीं सामाजिक संरचना, बढ़ती बाजारवादी संस्कृति, समसामयिक सवालों कं खोजंण और समाजकं रस्त दिखौंणक भाव उनर कविताओं म छू। शेरदा ‘अनपढ़’ज्यू ल आपण कविताओं म जो ढंगलै समाज क देखो उकैं हम जतुक समेटनै जानूं उ बढ़ते जां। उनूल आपण कविताओं म जो शिल्प, बिंब और प्रतीक गढ़ी उ आम आदीम कं भितैर तक छुवूं। उनर कविताओं में भारी-भरकम शब्द और कथ्यैक जरूरत नि पड़नि, किलैकि उ उनर कविताओं मं आफि मौजूद रौंनि।
शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक कविताओं म आम लौंगनक उम्मीद कतुक भितैर तक छिं यकै उनैर सुप्रसिद्ध कविताल समझी जै सकौं- ‘औ परुआ बौज्यू चप्पल क्यै ल्याछा यस/फटफटानी होनी चप्पल कै ल्या छा यस।’ राजनीतिक व्यवस्था कं समझणंक लिजी उनैर एक कविता छू- ‘जां बात-बात पर हाथ चलनीं, उकैं कौनि ग्रामसभा/जां बात और लात चलनी, उकैं कौंनी विधानसभा/जां एक बुलां, सब सुणनि उकैं कौनि शोकसभा/जां सब बुलानी, क्वै नि सुणन, उकैं कौनी लोकसभा।’ शेरदा ‘अनपढ़’ कं याद करणंक मतलब छू आमजनौंक आवाज कैं सुणंण- ‘तुम भया ग्वाव गुसैं, हम भयां निगाव गुसैं/तुम सुख में लोटी रया, हम दुख में पाती रया/तुमार थाईम सुनुक र्वट, हमरि थाईन ट्वाटै-ट्वाट/तुम तड़क-भड़क में, हम बीच सड़क में/तुम सिंहासन भै रया, हम घर-घाट हैं भै रया।’ यूं छीं शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक साहित्यिक सरोकार। 20 मई, 2012 हूं हल्द्वाणि में उनर देहांत हो।
शेरदाक कुछ कविताओंक माध्यमैल उनैर कविता यात्रा कं समझणै कोशिश करनूं-
1.
आम कुणे सुन नाति बख्ताक हाल,
त्यार बुबुक बूब कूँ सी कलजुग आल।
सैणी पैराल फिर पैंट सुरयाव,
और मैंसाक ख्वार रौल पैसे धाव।
2.
मडुआ नि खाणी कुणे गयुं है ग्यी अकार,
शेरदा सैणीक देखो नौमुरी नखार।
खो हालि सिराणी मांगी रू हालि खतार,
शेरदा सैणीक देखो नौमुरी नखार।
3.
बूब जै जवान नाती जे लूल
बख्ता तेरी बले ल्ह्यून
च्येलेक लटि, ब्वारी बुलबुली
बख्ता तेरी बले ल्ह्यून।
4.
न्है घागेरी, न्है सुरयाव
कसि काटु हयून निगांव
टूटि घर छू, फूटि द्वार
जसि भिदेर उसै भ्यार
ख्वारेन चुन्गने पानी धार
जाड़ है रो जत्ती मार
5.
दातुली कुटैली हाथ कसिक थामूल
दुख-सुख हिरदै का कैहयणि कूल
तू सुवा परदेश जाले, मैं कसिक रूल?
शेरदा ‘अनपढ़’ की कविताओं में हमुकं भौत सुन्दर शिल्प, बिंब, प्रतीक और शब्द चयन मिलूं-
1.
भादव भिन निझूत कनर्इ, साइ पौणिक चाव
इन्द्रानी नौली हलानी, हौल के अडाव!
डाना काना काखिन हसणी, चैमास क ब्याव
छलके हैलो अगास ले आपुन खवर क भान
धुर जगल खकोर्इ गयी, पगोयी गयी डान
गाव गाव तलक डूबी गयी, खेत स्यार सिमार!
नटु गध्यारा दगे बमकाण फैगे गाड़!!
2.
भुर-भुर उज्यार्इ जसी जाणि रते ब्याण
भेकुवे सिकड़ी कसि उड़ी जै निसाण
खित कनै हैंसण और झू कले चांण
क्वाथिन कुत्यार्इ जै लगनु मुखक बुलाण
मिसिर जै मिठि लाग के कार्तिकी मौ छे तू
पूषेकि पाल्यु जस ओ खड्योणि को छै तू!
शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक कविताओं म व्यवस्था पर भौत प्रहार छू। भौते कविता यास छन जैमैं चेतना साथ जनवादी विचारैक अगुवाई लै देखण में ऐंछ-
1.
चार कदम लै नि हिटा
हाय तुम पटै गो छा
के दगडि़यों से गोछा।
2.
नेताज्यू बोटेकि ओट में चटण्िा चटै गर्इ,
यो-ऊ मिलौल कै सौ गिनती रटै गर्इं।
3.
बोट हरिया हीरों को हार पात सुनुक चुड़
बोटो म बसूं म्यर पहाड़ा झन चलाया छुर।
4.
जां बात और हाथ चलनी
उकैं कौनी ग्रामसभा
जां बात और लात चलनी
उकैं कौंनी विधानसभा
जां एक बुलां, सब सुणनि
उकैं कौनी शोकसभा
जां सब बुलानी, क्वै नि सुणन
उकैं कौनी लोकसभा।
5
तुम भया ग्वाव गुसांईं
हम भया निगाव गुसैं
तुम सुख में लोटी रया
हम दुख में पोती रया।
शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूल अध्यात्म कैलै भौत गहराई तक समझौ। उनार भौत कविताओं में जीवन दर्शन और अध्यात्म प्रभावी छू-
1.
जागिजा-जागिजा कै बेर दगौड़ नि हून
म्यर छू-म्यर छू कै बेर आपणनि हूंन
आंखों बटि आंसू औनि ऊनी
घुना बटिक जै के च्वीनी।
2.
जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावो-बट्यावो है गे
पराण लै छुटण नि दी, उठाओ-उठाओ हैं गे।
3.
गुणों में सौ गुण भरिया
यो दुनि में गुणै चैनी
जो फूलों में खूशबू हुनी
ऊ द्योप्त दगे पूजी जानी।
4.
मौत कुनै मारि हालो
मनखी कूना कां मरूं?
अनाड़ी
तू हार छै, मैं हारूं।
5.
खरीदनैर्इ लुकुड़ लोग
एक्के दुकान बटि
क्वै कै हूं लगनाक्
क्वै कै हूं कफनाक।
(शेरदा ‘अनपढ़’ जी दगै एक लंबी बातचीत मैल कभैं ‘जनपक्ष आजकल’ में प्रकाशित कर छी। य बातचीत हमर दगड़ि दीप भट्ट ज्यूल ल्है। वीकै आधार पर उनर जीवनक बारम लेखौ। हमूल ‘क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’ क तरफ बै 2013 म हल्द्वाणि म एमबी कालेज में उनेरि पैल पुण्यतिथि मनै। शेरदा ‘अनपढ़’ ज्यूक पोस्टर लै निकालौ।